Ved Vaani, Mahabharat Geeta Updesh: भगवत गीता हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ है. इसे जीवन का सार कहा जाता है. यदि जीवन को समझना है और ज्ञान हासिल करना है तो गीता का पाठ जरूर करना चाहिए. आमतौर पर हम सभी यही जानते हैं कि गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था और इसी मैदान से ही गीता उपदेश की उत्पत्ति मानी जाती है.


लेकिन क्या आप जानते हैं कि इससे पहले ही गीता का ज्ञान कई बार दिया जा चुका है और अर्जुन से पहले बहुतों को इसका ज्ञान प्राप्त हो चुका था. जानते हैं अर्जुन से पहले कब और किसे प्राप्त हो चुका है गीता का ज्ञान.


अर्जुन से पहले श्रीकृष्ण ने सूर्य देव को दिया गीता का ज्ञान


मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था. इसलिए इसे गीता की उत्पत्ति का स्थान कहा जाता है. लेकिन महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए कहते हैं कि, यह उपदेश वह पहले भगवान सूर्य को दे चुके हैं.


यह सुनकर अर्जुन श्रीकृष्ण से बोले- सूर्य देव तो सबसे प्राचीन देव हैं, आप पहले उन्हें उपदेश कैसे दे सकते हैं. इसका जवाब देते हुए श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे अर्जुन! तुम्हारे और मेरे पहले भी बहुत से जन्म हो चुके हैं. उन जन्मों के बारे तुम नहीं जानते, लेकिन मैं जानता हूं.


संजय ने द‍िया था धृतराष्‍ट्र को गीता का ज्ञान


जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तब संजय (धृतराष्ट्र के सारथी) अपनी दिव्य दृष्टि (जो महर्षि वेदव्यास ने दी थी) से यह सब देख रहे थे. उन्होंने गीता का उपदेश धृतराष्ट्र को सुनाया.


महर्षि वेदव्यास द्वारा श्रीगणेश को मिला गीता ज्ञान


पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना स्वयं मन ही मन की. लेकिन वह इस बात को लेकर चिंतित थे कि, इसे अपने शिष्यों को कैसे पढ़ाऊंगा. इस समस्या के हल के लिए ब्रह्मा जी महर्षि वेदव्यास के पास पहुंचे. महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मा जी से कहा कि इस ग्रंथ को लिखने के लिए पृथ्वी पर कोई नहीं है.


ऐसे में ब्रह्म जी ने इस कार्य के लिए श्री गणेश का नाम सुझाया. महर्षि वेदव्यास ने श्रीगणेश से महाभारत ग्रंथ लिखने को कहा. महर्षि वेदव्यास बोलते गए और श्रीगणेश बिना रुके लिखते गए. इस तरह से महर्षि वेदव्यास से श्रीगणेश को गीता का ज्ञान प्राप्त हुआ.


महर्षि वेदव्यास ने वैशम्पायन और शिष्यों को दिया गीता उपदेश


श्रीगणेश ने जब महाभारत ग्रंथ का लेखन कार्य पूरा किया तो महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों वैशम्पायन, जैमिनी, पैल आदि सभी को महाभारत का ज्ञान दिया और इसके गूढ़ रहस्यों के बारे में बताया. इस तरह से महर्षि वेदव्यास ने गीता का ज्ञान अपने कई शिष्यों को दिया.


वैशम्पायन से इन्हें मिला गीता का उपदेश


पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ कराया. इस यज्ञ में महर्षि वेदव्यास अपने शिष्यों के साथ पहुंचे. राजा जनमेजय ने अपने पूर्वजों यानी पांडवों और कौरवों के बारे में महर्षि वेदव्यास से पूछा. तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर उनके शिष्य वैशम्पायन ने सभा में पूरी महाभारत सुनाई. इस दौरान सभा में उपस्थित सभी लोगों ने गीता का उपदेश सुना.


ऋषि उग्रश्रवा से इन्हें प्राप्त हुआ गीता का ज्ञान


ऋषि उग्रश्रवा लोमहर्षण के पुत्र थे. एक बार वे नैमिषारण्य पहुंचे तो वहां कुलपति शौनक 12 वर्ष का सत्संग कर रहे थे. नैमिषारण्य के ऋषियों व शौनकजी ने उन्हें देख कथा सुनाने का आग्रह करने लगे. तब उग्रश्रवा राजा जनमेजय के दरबार में ऋषि वैशम्पायन से महाभारत की सुनी कथा सुनाई. इस तरह से ऋषि उग्रश्रवा ने शौनकजी और नैमिषारण्य में उपस्थित तपस्वियों को महाभारत की कथा सुनाई और गीता उपदेश दिया.


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