Ved Vaani: क्या सच में भगवान कृष्ण के रूप में प्रकट हुए थे चैतन्य महाप्रभु, कई पुराणों में मिलता है प्रमाण
Chaitanya mahaprabhu: चैतन्य महाप्रभु 16 वीं सदी के वैदिक आध्यात्मिक नेता थे. चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार मानते हैं. कई पुराणों में भी इसका प्रमाण मिलता है.
Vedas, Ved Puarana Chaitanya mahaprabhu Birth: चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के प्रचारक, महान संत, कवि और वैदिक आध्यात्मिक नेता थे. उन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की नींव रखी और संकीर्तन आंदोलन की शुरुआत की थी. भगवान कृष्ण के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी. उन्हें श्रीकृष्ण प्रेमी कहा जाता था. पुराणों में तो उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार भी माना गया है.
चैतन्य महाप्रभु के नाम का अर्थ है- चैतन्य ‘जागरुक’, महा यानी ‘महान’ और प्रभु यानी ‘भगवान या गुरु’. चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मानते हैं. हरे कृष्ण मंत्र को लोकप्रिय बनाने का श्रेय चैतन्य महाप्रभु को ही दिया जाता है. कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के समान विशेषताओं के साथ हुआ था. वैदिक साहित्य में जिस तरह से श्रीकृष्ण के होने के प्रमाण उपलब्ध है, उसी प्रकार चैतन्य महाप्रभु के भी हैं. हालांकि चैतन्य महाप्रभु ने कभी भी स्वयं को भगवान के अवतार रूप में प्रकट नहीं किया और संपूर्ण जीवन श्रीकृष्ण भक्त बने रहे.
लेकिन पुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों और महान आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा चैतन्य महाप्रभु के श्रीकृष्ण अवतार होने की पुष्टि की गई है. चैतन्य महाप्रभु का जन्म, रूप, शारीरिक विशेषताओं और लीलाओं में वह सब कुछ निहित है जो वैदिक साहित्य में भविष्यवाणी के अनुरूप हैं.
पुराणों के अनुसार चैतन्य महाप्रभु के श्रीकृष्ण अवतार के प्रमाण
अहं पूर्णो भविष्यामि युगसन्धौ विशेषतः।
मायापुरे नवद्वीपे भविष्यामि शचीसुतः।। (गरुड़ पुराण)
मैं मायापुर नवदीप धाम में कलियुग की प्रथम संध्या में शची के पुत्र के रूप में अपने पूर्णरूप में प्रकट होऊंगा.
प्रमाण- चैतन्य महाप्रभु का जन्म भी मायापुर (नवद्वीप, पश्चिम बंगाल के शहर का एक उपखंड) में कलियुग की शुरुआत के लगभग 4,5०० साल बाद 1486 में श्रीमती शची देवी के पुत्र के रूप में हुआ था.
कले: प्रथमसंध्यायां गौरांगोऽहम् महीतले।
भागिरथितटे भूम्नि भविष्यामि सनातनः।। (ब्रह्म पुराणे)
कलियुग के पहले भाग में, सुनहरे रंग में सर्वोच्च भगवान लक्ष्मी के पति बनेंगे। तब वे संन्यासी बन जाएंगे और भगवान जगन्नाथ के पास निवास करेंगे।
प्रमाण- चैतन्य महाप्रभु का पहला विवाह भी श्रीमती लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ था. हालांकि सांप के काटने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी.
पौर्णमास्यम फाल्गुनस्या फाल्गुनी-रक्ष-योगतः
भविष्यये गौरा-रूपेण सचि-गर्भे पुरंदरत (वायु पुराण)
फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन, मैं फाल्गुनी नक्षत्र के साथ, शची के गर्भ में पुरंदर द्वारा उत्पन्न स्वर्ण रूप में प्रकट होऊंगा.
प्रमाण- चैतन्य महाप्रभु का जन्म भी फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन हुआ था. उनके पिता जगन्नाथ मिश्रा जोकि पुरंदर मिश्रा के नाम से जाने जाते थे.
मुंडो गौराह सु-दिरघंगस त्रि-श्रोत-तिरा-संभव:
दयालु कीर्तन-ग्रही भविष्य्यामी कलौ युगे (मत्स्य पुराण)
कलियुग में मैं सुनहरे रंग का हो जाऊंगा. मैं लंबा हो जाऊंगा और मेरा सिर मुंडा होगा, जिस स्थान पर मेरा जन्म होगा वहां तीन नदियों का मिलन स्थल होगा. मैं बहुत दयालु होऊंगा और पवित्र नामों का जाप करने में लगूंगा.
प्रमाण- चैतन्य महाप्रभु का एक एक-दंड संन्यासी होने के नाते पूरी तरह से मुंडा सिर था जैसा कि ऐसे संन्यासियों के लिए प्रथा थी. तीन नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती नवद्वीप में ही बहती हैं.
आनंदश्रु-कला-रोमा-हर्सा-पूर्णम तपो-धन सर्वे
मामा एव द्रक्ष्यंति कलौ संन्यास-रूपिनम (भविष्य पुराण)
हे तपस्वी ऋषि, कलियुग में हर कोई मेरे दिव्य रूप को संन्यासी के रूप में देखेगा. मैं आनंद के आंसू बहाने और परमानंद के अंत में खड़े बाल जैसे लक्षण प्रदर्शित करूंगा.
प्रमाण- चैतन्य महाप्रभु भी हमेशा कृष्ण के नाम का जप करते हुए और संकीर्तन के दौरान नृत्य करते हुए पारलौकिक परमानंद के सागर में विलीन हो गए थे. उन्होंने भगवान से तीव्र अलगाव महसूस किया और उन भक्ति भावनाओं के कारण कृष्ण के लिए शुद्ध प्रेम के विभिन्न उत्साहपूर्ण लक्षण प्रदर्शित हुए. जैसे लगातार आंसू, आवाज का दम घुटना, शरीर पर बाल खड़े होना आदि.
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