Ved Vaani, 84 Lakh Yonis Mentioned in Padma Purana: हिंदू-धर्म ग्रंथों, वेदों और पुराणों में कुल 84 लाख योनियों के बारे में बताया गया है. 84 लाख योनियां, अर्थार्त सृष्टि में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु. इन्हें दो भागों में बांटा गया है, जिनमें पहला योनिज और दूसरा आयोजित है.


इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा गया है, जिनमें जलचर, थलचर और नभचर प्राणी होते हैं. पद्म पुराण के एक श्लोक में इनके बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है. जानते हैं 84 लाख योनियों के बारे में विस्तार से.


पद्म पुराण के अनुसार


जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। (78:5 पद्मपुराण श्लोक)


श्लोक का अर्थ है कि, जलचर प्राणी 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप कृमि का मतलब है कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के. इस तरह से योनियों की कुल संख्या 84 लाख बताई गई है.


84 लाख योनियों का गणनासूत्र



  1. पानी के जीव-जंतु- 9 लाख

  2. पेड़-पौधे- 20 लाख

  3. कीड़े-मकौड़े- 11 लाख

  4. पक्षी- 10 लाख

  5. पशु- 30 लाख

  6. देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि- 4 लाख


इस तरह से कुल योनियों की संख्या- 84 लाख


मनुष्य की योनि में कब मिलत है जन्म
पुराणों में कुल 84 लाख योनियों में मनुष्य की योनि को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. मान्यता है कि एक आत्मा का कर्मगति के अनुसार 30 लाख बार वृक्ष की योनि में जन्म होता है. इसके बाद 9 लाख बार जलचर प्राणियों के रूप में जन्म होता है, 10 लाख बार कृमि योनि में, 11 लाख बार पक्षी की योनि में, 20 लाख बार पशु की योनि में जन्म लेने के बाद अंत में कर्मानुसार गौ का शरीर प्राप्त करके आत्मा को मनुष्य की योनि प्राप्त होती है.


इसके बाद  4 लाख बार आत्मा मानव की योनि में ही जन्म लेती हैं. इसके बाद उसे पितृ या देव योनि प्राप्त होती है. यह सभी क्रम कर्मानुसार चलते हैं. जब आत्मा मनुष्य योनि में आकर नीच कर्म करने लगता है तो उसे पुन: नीचे की योनियों में जन्म मिलने लगता है, जिसे वेद-पुराणों में दुर्गति कहा गया है.


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