Ved Vaani: क्या वेद-पुराणों में वर्णित पुनर्जन्म की बातें सच है? किस उपनिषद में है पुनर्जन्म का सिद्धांत
Ved Vaani: सनातन धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है. कई वेद, ग्रंथ और पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसे इस बात का प्रमाण माना जाता है कि मृत्यु और पुनर्जन्म निश्चित सत्य है.
Ved Vaani, Vedas Reincarnation Theory: पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की बातें सत्य है या असत्य यह हमेशा ही चर्चा का विषय रहता है. हालांकि सनातन धर्म के वेदो, पुराणों, ग्रंथों और उपनिषदों पुनर्जन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है.
गीता में भी कृष्ण द्वारा कहा गया है कि आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर को धारण करती है. गरुड़ पुराण में जीवन-मरण और स्वर्ग-नरक से जुड़ी बातों का वर्णन मिलता है. सनातन धर्म और विश्व के प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद वसे लेकर वेद और दर्शनशास्त्र में भी इसका वर्णन मिलता है.
वेद, पुराण और उपनिषदों के अनुसार पुनर्जन्म के सिद्धांत
यजुर्वेद के चौथे अध्याय के पन्द्रहवें मन्त्र के अनुसार-
‘‘पुनर्मनः पुनरायुर्मऽआगन् पुनः प्राणः पुनरात्मामऽआगन् पुनश्चक्षुः पुनः श्रोत्रं मेऽआगन्। वैश्वानरोऽअदब्धस्तनूपाऽअग्निर्नः पातु दुरिता- दवद्यात्।’’
अर्थ: ‘हे ईश्वर जब-जब हम जन्म लें, तब-तब हमको शुद्ध मन, पूर्ण आयु, आरोग्यता, प्राण, कुशलतायुक्त आत्मा, उत्तम चक्षु और भोग प्राप्त हो. विश्व में विराजमान ईश्वर प्रत्येक जन्म में हमारे शरीरों का पालन करे, वह अग्नि स्वरूप-पाप से निन्दित कर्मों से हमें बचाए.
गीता में कहा गया है-
‘वसांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि ग्रहति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।‘
अर्थ: जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये वस्त्र धारण करता है, ठीक वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़ कर नया शरीर को धारण करती है.
यजुर्वेद के 39वें अध्याय के छठे मन्त्र में कहा गया-
‘सविता प्रथमोऽहन्नाग्नि, द्वितीये वायु स्तृतीय, आदित्यश्चतुर्थे, चन्द्रमाः पंचमऽऋतुः षष्ठे मरुतः सप्तम बृहस्पतिरष्टमे मित्रो नवमे वरुणो दशमऽइन्द्रऽ एकादशे विश्वेदेवा द्वादशे।‘
अर्थ: जीव शरीर छोड़ने के बाद पहले दिन सूर्य, दूसरे दिन अग्नि, तीसरे दिन वायु, चौथे दिन आदित्य या मास, पांचवें दिन चन्द्र, छठे दिन ऋतु (हेमन्त, वसन्त आदि), सातवें दिन मरुत यानी मनुष्य आदि प्राणी समूह, आठवें दिन बृहस्पति अर्थात् विद्वान आत्मायें बड़ों की रक्षक सूत्रात्मा वायु, नौवें दिन प्राण उदान, दसवें दिन वरुण यानी विद्युत, ग्यारहवें दिन इन्द्र अर्थात् दिव्य गुण तथा बारहवें दिन विश्व देव-ईश्वर की व्यवस्था में चला जाता है’.
गीता के अध्याय 2 श्लोक 27 में कहा गया है-
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येSर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
अर्थ: जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है. अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए.
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