Ramayan : अगर आप रामायण के बारे में थोड़ा-बहुत भी जानते होंगे तो यकीनन रावण के भाई और श्रीराम के भक्त विभीषण के नाम से आप अनजान नहीं होंगे, लेकिन विभीषण की जिंदगी के कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. रावण वध के बाद श्री राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित कर राज्याभिषेक किया था, इसके अलावा भी विभीषण पर कई और कृपाएं भी बरसी थीं. रामजी को लंका की चढ़ाई के दौरान रावण खेमे के तमाम योद्धाओं को खत्म करने में उसके छोटे भाई विभीषण की जानकारियां काफी काम आईं. इस कारण उसे घर का भेदी होने का अपयश भी मिला. माना जाता है कि राम की जीत विभीषण बिना सम्भव नहीं थी. यही कारण था कि राम ने विभीषण को लंका नरेश बनाने के साथ अजर-अमर होने का वरदान भी दिया.
सप्त चिरंजीवियों में शामिल हुए विभीषण
विभीषण को सप्त चिरंजीवियों में से एक माना जाता है. विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला. ऐसे में वे भी आज तक सशरीर मौजूद हैं. देवताओं के बाद धरती पर सबसे पहले विभीषण ने हनुमानजी की शरण लेकर स्तुति की थी. विभीषण ने हनुमान स्तुति में बहुत अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना भी की है. विभीषण के रचित इस स्त्रोत को हनुमान वडवानल स्त्रोत के नाम से जाना जाता है.
लंका में सीता की इकलौती सखी बनीं बेटी त्रिजटा
रावण ने सीता हरण के बाद उन्हें अशोक वाटिका में रखा था, वहां की मुख्य पहरेदार त्रिजटा थी. त्रिजटा विभीषण और सरमा की पुत्री और रावण की भतीजी थीं. वह लंका में सीता की इकलौती सखी बनीं थीं. त्रिजटा ने राम-रावण युद्ध के दौरान पूरा हाल सुनाया था. अशोक वाटिका में समय-समय पर वह सीता का मनोबल भी बढ़ाती थीं. कहा जाता है कि मंदोदरी ने खासतौर पर त्रिजटा को सीता की पहरेदारी पर लगाया था। पिता की तरह ही त्रिजटा भी भक्ति पक्ष की राक्षसी थी.
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