नई दिल्ली: महाभारत के लोकप्रिय पात्रों में से एक विदुर हमेशा सत्य बोलते थे. उनकी इस खूबी से प्रभावित होकर हस्तिनापुर के राजा पांडू ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री बनाया. अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और उच्च आर्दशों के चलते उनकी ख्याति जल्द ही चारों दिशाओं में फैल गई. राजा धृतराष्ट्र के भी वे सलाहकार थे. धृतराष्ट्र और विदुर के बीच जो वार्तालाप होता था वही विदुर नीति कहलाई. आइए जानते हैं कि क्या है आज की विदुर नीति-
दूसरे के धन का लालच बुराईयों को जन्म देता है: जो व्यक्ति दूसरे के धन पर नजर रखता है. वह सिर्फ अपने मानसिक तनाव को बढ़ाता है. कभी भी दूसरे के धन का लालच नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति में बुराईयों का प्रवेश होता है. व्यक्ति को अपने श्रम और प्रतिभा पर ही भरोसा करना चाहिए और इससे कमाए हुए धन में सुकुन करना चाहिए. जो व्यक्ति दूसरे की प्रगति से परेशान रहते हैं वह पतन की तरफ अग्रसर होते हैं. उनके घर में कलह शुरू हो जाती है. ऐसे लोग गलत कार्यों में लिप्त हो जाते हैं. दूसरे के धन का लालच व्यक्ति को अपराधी भी बना देता है. इस प्रवृत्ति से जितनी जल्दी हो मुक्ति पा लेनी चाहिए, नहीं तो उसे राज्य की ओर से भी दंड मिलता है.
ईर्ष्या रखने वाले जीवन में नहीं होते हैं सफल: ईर्ष्या एक बीमारी है जो व्यक्ति को बरबाद कर देती है. ईर्ष्या रखने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रहता है. उसका व्यवहार बनावटी और खोखला होता है. ईर्ष्या व्यक्ति की प्रतिभा को नष्ट कर देती है. ईर्ष्या से बचने का एक ही रास्ता है. और वो रास्ता है धर्म और अध्यात्म का. ईर्ष्या को धर्म और अध्यात्म से ही मिटाया जा सकता है. ईर्ष्या व्यक्ति की आत्मा को भी मैला कर देती है. जब तक ये मन से नहीं जाती है तब तक व्यक्ति खुद अपने से ही दूर रहता है. वह जान नहीं पाता है कि वह क्या कर रहा है. ईर्ष्या धीरे धीरे व्यक्ति कमजोर बना देती है उसका आत्मविश्वास नष्ट होने लगता है, वह मानसिक विकारों से घिर जाता है. उसके भीतर की सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है. ऐसे व्यक्ति का समाज भी तिरस्कार कर देता है. ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति का शरीर नष्ट होता हे उसका व्यवहार नहीं. अपने कार्यों से व्यक्ति मरने के बाद भी समाज में जिंदा रहता है, विचारों की सूरत में.