Vidur Niti : महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले पत्नी से जो नहीं लेते हैं सलाह, उन्हें मिलता है धोखा
विदुर की नीतियां व्यक्ति को सही और गलत का भेद बताती हैं. व्यक्ति को जीवन में किस तरह का आचरण करना चाहिए, व्यक्ति के तौर पर उसकी क्या जिम्मेदारी होती है इस बारे में भी बताती है. इसलिए आज भी लोग विदुर की नीतियों पर अमल करते हैं.
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विदुर नीति: विदुर महाभारत के लोकप्रिय पात्रों में से एक हैं. विदुर सत्य के साधक थे. जीवन भर उन्होंने सत्य का मार्ग अपनाया. इसीलिए विदुर को धर्मराज का अवतार भी कहा जाता है. वे कौरवों और पांडवों के भी प्रिय थे. वे एक दासी पुत्र थे. लेकिन अपनी योग्यता और श्रेष्ठ चरित्र के बल पर वे हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री बने. वे राजा पांडु और धृतराष्ट्र के सलाहकार थे. धृतराष्ट्र ने जब महाभारत के युद्ध को लेकर विदुर की राय जाननी चाहिए तो विदुर ही पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें महाभारत के युद्ध को विनाशकारी बताया था. विदुर की नीतियां व्यक्ति को अच्छा आचरण करने के लिए प्रेरित करती हैं. जानते हैं कि आज की विदुर नीति-
महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले पत्नी से लेनी चाहिए सलाह
पत्नी व्यक्ति की सबसे अच्छी मित्र, सलाहकार भी होती है. जो लोग इस बात को जानते हैं और मानते हैं उन्हें जीवन में संकटों का सामना नहीं करना पड़ता है. यदि संकट आ भी जाएं तो पत्नी के सहयोग से उन्हें दूर करने में मुश्किल नहीं आती है. इसलिए कोई भी बड़ा कार्य करने से पहले एक बार पत्नी से सलाह जरूर लेनी चाहिए. पत्नी कभी भी अपने पति का बुरा नहीं चाहती है.
पत्नी ही मुसीबत की घड़ी में पति का साथ परछाई की तरह निभाती है. जब सब साथ छोड़ जाते हैं तब पत्नी ही सहारा बनती है. पत्नी की क्षमताओं और योग्यता को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए. पत्नी कभी भी अपने पति को गलत सलाह नहीं देगी और न ही चाहेगी कि उसके पति की किसी तरह से कोई हानि हो. पत्नी ही एक ऐसी मित्र है जो पति के साथ किसी भी हाल में जीवन गुजरने के लिए हमेशा तैयार रहती है.
सवाल करने पर बच्चों को डांटना नहीं चाहिए
बच्चों में जिज्ञासा को पनपने दें. इसे रोके नहीं. बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए. बच्चों में सवाल पूछने और नई चीजों को जानने की जितनी ललक होगी, बच्चों के मस्तिष्क का उतना ही अधिक विकास होगा. सवाल करने पर बच्चों को भी डांटना नहीं चाहिए. इससे उनके भीतर की प्रतिभा को नुकसान पहुंचता है. अभिभावक के तौर पर बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश करनी चाहिए. सवाल करने से बच्चों की सोचने की क्षमता विकसित होती है और उनमें मौलिक चिंतन का बीज अंकुरित होता है.
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