केरल के नववर्ष का पर्व है विषु, इस दिन होती है भगवान विष्णु की पूजा
सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है तो केरल में इस दिन को विषु पर्व के नाम से मनाया जाता है. केरल में इस पर्व को नववर्ष के रूप में मनाने की परंपरा है. आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में.
विषु केरल के प्राचीनतम पर्वों में से एक है. मेष संक्रांति के दिन से केरल में नये साल का आरंभ होता है. विषु पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है. 14 अप्रैल को सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करते ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है.
15 अप्रैल को भी इस पर्व का जश्न मनाया जाता है. इस पर्व को परिवार के साथ मनाने की विशेष परंपरा है. केरल के अलावा कर्नाटक में भी इस पर्व को मनाया जाता है. इसी दिन केरल में धान के फसल की बुवाई भी शुरु होती है.
मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार योगेश्वर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का भी वध किया था. इसीलिए इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा करने का विधान है.
पौराणिक कथा के अनुसार प्रगज्योतिषपुर नगर में नरकासुर नामक दैत्य राज्य करता था. अपने तपस्या के बल पर उसने ब्रम्हाजी से यह वर मांगा कि कोई भी देवता, असुर या राक्षस मार न सके. इस वरदान के बाद वह अंहकारी हो गया और स्वयं को अमर समझने लगा. अहंकार में चूर होकर वह सभी लोकों का स्वामी बनने का सपना देखने लगा.उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु जैसे देवताओं को परास्त कर दिया. यही नहीं बहुत से संतो और 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना लिया. जब उसका अत्याचार चरम पर पहुंचने लगा तो भयभीत होकर सभी देवताओं ने भगवान श्रीकृष्ण से विनती की. भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी विनती को स्वीकार करते हुए नरकासुर पर आक्रमण कर दिया और अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर के दो टुकड़े करके उसका वध कर दिया.
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