Mahima Shani dev ki : न्याय देवता शनिदेव की उत्पत्ति के बाद त्रिदेव के आशीर्वाद से उन्हें दंड विधान, शक्ति, पराक्रम और वह सभी जरूरी अलंकरण दिए जाने लगे, जिसके माध्यम से वह सृष्टि में न्याय स्थापित कर सकते थे. इस क्रम में दिव्य दंड निर्माण की जिम्मेदारी देव विश्वकर्मा को सौंपी गई तो उन्हें खुद भी नहीं पता था कि यह शस्त्र वह अपने ही नाती के लिए तैयार कर रहे हैं. महादेव के आदेश पर विश्वकर्माजी ने शनिदेव का दंड तैयार करना शुरू कर दिया.


इस बीच देवासुर संग्राम के लिए देवराज इंद्र भी विश्वकर्माजी से इच्छित अस्त्रों को लेने पहुंचे. इस दौरान साथ खुद शनिदेव के पिता सूर्यदेव मौजूद थे. अपने अस्त्रों में हो रही देरी से नाराज इंद्रदेव ने विश्वकर्मा से नाराजगी जताते हुए चेतावनी दी, लेकिन विश्वकर्मा ने उन्हें महादेव के आदेश का जिक्र करते हुए कर्मफलदाता के दंड के निर्माण की बात बताई तो इंद्र सकते में आ गए. उन्हें महसूस हुआ कि त्रिदेव की इच्छा से उत्पन्न शनि उनके नियंत्रण में नहीं रहे तो इंद्रासन भी हाथ से छिटक सकता है.


इंद्र ने विश्वकर्माजी से दिव्य दंड देखने की इच्छा जताई, उसे देखकर वह अचंभित रह गए. उन्होंने उसे उठाने का प्रयास किया लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद दिव्य दंड नहीं हिला. इस पर मुस्कुराते हुए विश्वकर्मा जी ने कहा, हे देवराज आप जिसका दंड आप नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं, वह शक्ति आपके नियंत्रण में कैसे आ सकती है, यह सुनकर इंद्र गुस्से से तमतमा उठे, विश्वकर्मा ने उन्हें समझाया कि है देवराज आपके विधान और कार्यक्षेत्र देवताओं तक सीमित है, जबकि कर्मफल दाता और न्याय के देवता के तौर पर उत्पन्न हुई शक्ति को तीनों लोकों में न्याय और विधान स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. ऐसे में उनका दंड देव, दानव और मानव सभी पर प्रभावी रहेगा. ऐसे में किसी देवता का उसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं होगा. यह बात सुनकर वहां मौजूद सूर्य देव भी सोच में पड़ गए. 


मां के आंसू देखकर शनिदेव के क्रोध से आया तूफान
इधर, मां छाया पिता सूर्य के प्रकोप से बचाने के लिए शनि को लेकर एक जंगल में रह रही थी. इसी दौरान वह अपने भाग्य को कोसते हुए शनि की ऐसी हालत देखकर रो पड़ी, लेकिन उनके आंसू देख कर शनि देव नाराज हो गए, जिसके चलते बवंडर और प्रलय की स्थिति बन गई. जल्दबाजी में मां छाया आंसू पोछते हुए उन्हें शांत कराने लगती हैं. मां के आंसू हटने पर शनिदेव शांत होते हैं और जंगल फिर फूल पत्ते की हरियाली और नदी-झरनों से लहलहा उठता है.


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