Vivah Muhurat 2021: शादियों का सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे मे विवाह योग्य लड़के और लड़कियों के परिवार डेट फिक्स कर रहे हैं लेकिन वर-वधू की कुंडली मिलान के बाद सबसे बेहतर तारीख का चुनाव सबसे मुश्किल काम माना जाता है. आइए जानते हैं कि हिन्दू धर्म में विवाह मुहूर्त निकालने का प्रचलित तरीका.


जन्मराशि के आधार पर
1. हिंदू धर्म पद्धति के अनुसार वर-वधू की विवाह तिथि उनकी जन्मराशि के आधार पर निकाली जाती है, वर-वधू की कुंडली और गुणों का मिलान कराने के बाद शादी की जो तारीख तय की जाती है, वो विवाह मुहूर्त कहलाता है. 


2. विवाह का दिन तय करने के लिए उस दिन का व्यावहारिक होना भी जरूरी है, इसलिए भी विवाह मुहूर्त तय करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और कम महत्वपूर्ण तत्व नजरअंदाज कर देना चाहिए.


3. पारंपरिक पद्धति के मुताबिक देवशयनी और देवउठनी एकादशी के बीच के चार महीनों में शुभ कार्य प्रतिबंधित हैं. इसके धार्मिक, पौराणिक, व्यावहारिक और आर्थिक कारण भी हैं. पारंपरिक तौर पर देवउठनी एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. इस बार नवंबर-दिसंबर माह में सर्वाधिक विवाह मुहूर्त हैं. 


4. रीति-रिवाज और पंचांग के अनुसार वर-वधू की कुंडलियां मिलाई जाती हैं. इसमें वर और कन्या की कुंडलियों को देखकर 36 गुणों को मिलाया जाता है. जब दोनों के न्यूनतम 18 से 32 गुण मिल जाते हैं तो ही शादी सफल होने की संभावना बनती है.


5. वर-वधू की जन्म राशि के आधार पर विवाह के लिए तिथि, वार, नक्षत्र और समय निकाला जाता है, जो विवाह मुहूर्त कहलाता है. वर या वधू का जन्म जिस चंद्र नक्षत्र में होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह तय करने में प्रयोग किया जाता है। वर-कन्या की राशियों में समान तिथि मुहूर्त के लिए चुनी जाती है.


विवाह मुहूर्त में अहम है लग्न 
शादी के संबंध में लग्न का मतलब है फेरे का समय. लग्न निर्धारण शादी तिथि तय होने के बाद ही होता है. अगर लग्न तय करने में चूक होती है तो यह विवाह के लिए गंभीर दोष है. विवाह में तिथि को शरीर, चंद्रमा को मन, योग और नक्षत्रों को शरीर का अंग और लग्न को आत्मा माना गया है.


विवाह लग्न तय करते हुए ध्यान दें
- वर-वधू के लग्न राशि से अष्टम राशि लग्न, विवाह के लिए शुभ नहीं होता है.
- जन्म कुंडली में अष्टम भाव का स्वामी विवाह लग्न में स्थित न हो, शुभ नहीं है.
- विवाह लग्न से द्वादश भाव में शनि और दशम भाव में शनि स्थित न हो.
- विवाह लग्न से तृतीय भाव में शुक्र, लग्न भाव में कोई पापी ग्रह न हों.
- लग्न से पीड़ित चंद्र, शुक्र और मंगल अष्टम भाव में स्थित नहीं होने चाहिए.
- विवाह लग्न से सप्तम भाव में कोई ग्रह नहीं होने चाहिए.
- विवाह लग्न के द्वितीय-द्वादश भाव में कोई भी पापी ग्रह नहीं हो.


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