Weekly Vrat: इस सप्ताह 5 ऐसे व्रत और पर्व पड़ रहे हैं जिनका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस सप्ताह दुर्गाष्टमी,रामनवमी भी है इसके साथ ही एकादशी और प्रदोष व्रत भी पड़ रहा है. आइए जानते हैं इस सप्ताह के व्रत और पर्व-


1 अप्रैल: दुर्गाष्टमी


नवरात्रि की दुर्गाष्टमी सभी अष्टमियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसीलिए नवरात्रि की अष्टमी को महाअष्टमी कहा जाता है. इस दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन कहीं कहीं अष्टमी का पूजन कर नवरात्रि व्रत का समापन करने की परंपरा भी है. दुर्गाष्टमी को मां दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है. मां दुर्गा की आरती, चालीसा और मंत्रों से दुर्गाष्टमी को बड़ी ही श्रद्धाभाव से मनाया जाता है. इस दिन प्रसाद के रुप में चने और हलवा-पूरी लिया जाता है. मां को भी इसी का भोग लगाते हैं. मान्यता है कि मां दुर्गा की विधि पूर्वक जो भी पूजा और उपासना करता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन कन्याओं की भी पूजा की जाती है.


2 अप्रैल: रामनवमी


इस दिन को भगवान राम के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है. रामनवमी का पर्व पूरे देश में भक्तिभाव से मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान राम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में और कर्क लग्न में हुआ था. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म बेहद शुभ लगन और मुहूर्त में हुआ था. इस दिन घरों में भगवान राम की पूजा की जाती है. मंगल गीत गाए जाते हैं. माना जाता है भगवान राम की उपासना करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.


4 अप्रैल: कामदा एकादशी


कामदा एकादशी का व्रत चैत्र शुक्ल एकादशी को रखा जाता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सभी व्रतों में एकादशी के व्रत को सबसे श्रेष्ट माना गया है. इस दिन व्रत रखते से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा दिलीप ने इसी एकादशी के व्रत के बारे में अपने गुरु वशिष्ठ से सुना था. गुरु वशिष्ट ने उन्हें बताया कि एक बार राजा पुंडरीक किसी के श्राप से मनुष्य से राक्षस बन गया था. उस राजा की पत्नी ने चैत्र एकादशी का व्रत रखकर भगवान नारायण से प्रार्थना की थी कि मेरे इस व्रत का फल मेरे पति को प्राप्त हो जाए. भगवान नारायण ने पत्नी के व्रत का फल राक्षस बन चुके पति राजा पुंडरीक को दे दिया. जिससे वह राक्षस से एक बार फिर से राजा बन गया. इस व्रत को रखने से पिशाच योनि से भी मुक्ति मिलती है.


5 अप्रैल: प्रदोष व्रत


प्रदोष का व्रत रखने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं. यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है.प्रदोष व्रत की पूजा संध्याकाल में करने की परंपरा है. प्रदोष व्रत रखने से शनि ग्रह की अशुभता भी दूर होती है. जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि अशुभ फल प्रदान कर रहे हैं उन्हें इस दिन का व्रत रखने से लाभ मिलता है. इस दिन सफेद वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है. भगवान का स्मरण कर इस दिन शंकर जी का अभिषेक किया जाता है. साथ ही भगवान शंकर की प्रिय चीजों को चढ़ाया जाता है. इस दिन पंचाक्षरी मंत्र का जप करना श्रेष्ठ फलदायी माना गया है.


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