Kanwar Yatra: क्या होती है कांवड़ यात्रा, इसका इतिहास क्या है, जानिए सब कुछ
सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं. इस दौरान कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है. लेकिन क्या आपको पता है कि कांवड़ यात्रा का इतिहास क्या है. आइये जानते हैं.
25 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने जा रहा है. सावन का महीना भगवान शिव और उनके उपासकों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव को खुश करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा निकालते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करते हैं.
यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ किसी पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं और इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं. इस कांवड़ को लगातार यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इस यात्रा को कांवड़ यात्रा और यात्रियों को कांवड़िया कहा जाता है. पहले के समय लोग नंगे पैर या पैदल ही कांवड़ यात्रा करते थे. हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक और दूसरे साधनों का भी इस्तेमाल करने लगे हैं.
जानिए क्या है कांवड़ यात्रा का इतिहास
कहा जाता है कि भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे. मान्यता है कि वे सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास 'पुरा महादेव' गए थे. उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था. उस समय श्रावण मास चल रहा था. तब से इस परंपरा को निभाते हुए भक्त श्रावण मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे.
जानिए क्या होता है कांवड़ यात्रा का नियम
कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को एक साधु की तरह रहना होता है. गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का पूरा सफर भक्त पैदल, नंगे पांव करते हैं. यात्रा के दौरान किसी भी तरह के नशे या मांसाहार की मनाही होती है. इसके अलावा किसी को अपशब्द भी नहीं बोला जाता. स्नान किए बगैर कोई भी भक्त कांवड़ को छूता नहीं है. आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसके अलावा भी चारपाई पर ना बैठना आदि जैसे नियमों का भी पालन करना होता है.
इन स्थानों पर जाना पसंद करते हैं श्रद्धालु
सावन की चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना फलदायक माना जाता है. ज्यादातर कांवड़िए मेरठ के औघड़नाथ, पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर में पहुंचना ज्यादा पसंद करते हैं. कुछ अपने गृहनगर या निवास के करीब के शिवालयों में भी जाते हैं.
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