Jivitputrika Vrat 2021 Katha:  हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखा जाता है. यह व्रत छठ व्रत की तरह तीन दिन तक चलता है. माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत को संतान प्राप्ति और उसकी लंबी आयु के लिए रखती हैं. इस व्रत में जीऊतवाहन की पूजा की जाती है.पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ी जाती है.


धार्मिक मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत {जितिया की व्रत} कथा पढ़ने भर से ही धन-धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है. इससे संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है.


जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (jitiya vrat katha)


पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक पेड़ पर गुरुड़ और लोमड़ी रहते थे. इन दोनों ने कुछ महिलाओं को जितिया व्रत करते हुए देखा, तो इनके मन में भी जितिया व्रत करने का विचार आया. दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन के समक्ष व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने का संकल्प लिया. परंतु जिस दिन जितिया व्रत था उसी दिन गांव के एक बड़े व्यापारी का निधन हो गया. उसके शाव को देखकर उसे लालच आ गयी.  लोमड़ी अपनेको रोक न पाई और चुपके से भोजन कर लिया और उसका व्रत टूट गया.



दूसरी ओर वहीं गरुड़ ने व्रत का पालन करते हुए उसे पूरा किया. परिणामस्वरुप, दोनों अगले जन्म में एक ब्राह्मण के यहां चील, बड़ी बहन शीलवती और लोमड़ी, छोटी बहन कपुरावती के रूप में जन्मीं. चील शीलवती को एक-एक करके सात लड़के पैदा हुए. जबकि लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही मर जाते. शीलवती के सभी लड़के बड़े होकर सभी राजा के दरबार में काम करने लगे. कपुरावती के मन में उन्हें  देख इर्ष्या की भावना आ गयी, उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए और उन्हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया. यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया. इससे उनमें जान आ गई.