Vaikuntha Ekadashi Shubh Muhurt 2020: मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को वैकुंठ एकादशी कहते हैं. इसे मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. इस साल वैकुंठ एकादशी/ मोक्षदा एकादशी 25 दिसंबर 2020 को है. हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रहकर और विधि विधान पूर्वक विष्णु भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा करने और व्रतकथा को पढ़ने से व्रती की सभी मनोकामना पूरी होती है तथा भगवान विष्णु उनके लिए वैकुंठ का द्वार खोल देते हैं. व्रती को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है.


वैकुंठ एकादशी की कथा: गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे. राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था. एकबार राजा ने स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं. प्रातः होते ही वह अपने स्वप्न के बारे में विद्वान ब्राह्मणों को बताया और राजा ने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है. उन्होंने मुझे से कहा कि हे पुत्र मुझे नरक से मुक्त कराओ. जब से मैंने यह शब्द सुना हूं, तब से मैं बेचैन हूं.


ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. वे आपकी समस्या का हल जरूर निकालेंगें. यह सुन राजा पर्वत ऋषि के आश्रम गए और साष्टांग दंडवत करते हुए मुनि को अपनी पूरी दास्तान सुनाई.




राजा का दुःख सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे. फिर बोले हे राजन! मैंने तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया. उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया. उसी पापकर्म के चलते उन्हें नरक जाना पड़ा.


राजा द्वारा उपाय पूंछने पर मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इससे तुम्हारे पिता की नरक से अवश्य मुक्ति होगी. राजा ने सपरिवार वैसा ही किया. इसके प्रभाव से  राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए.


वैकुंठ एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त:




  1. एकादशी तिथि प्रारंभ- 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से

  2. एकादशी तिथि समाप्त- 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक


मोक्षदा एकादशी पूजा विधि: ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि करके पूजा स्थल/ मंदिर की सफाई करें. उसके बाद पूजा स्थल पर गंगाजल छिडककर पवित्र करे तथा भगवान गणेश, विष्णु और मां लक्ष्मी को गंगाजल से स्नान करवाए. अब भगवान को रोली, चंदन, अक्षत और तुलसी दल आदि अर्पित करें. भगवान को भोग लगाकर गणेश जी की आरती करें. फिर विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की आरती करके प्रसाद वितरण करें.