हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली वाल्मीकि जयंती इस बार 31 अक्तूबर को है. जिसे  रामायण महाकाव्य के रचियता महर्षि वाल्मिकी के जन्म दिवस के रुप मे मनाया जाता है। रामायण महाकाव्य...जिसमें भगवान राम के जन्म से लेकर सीता के धरती में समाने तक का वृतांत है, 21 भाषाओं में उपलब्ध है। हालांकि रामायण वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में लिखी थी और यही सबसे प्राचीन रामायण है. इसीलिए इन्हें आदिकवि" भी कहा जाता है। वाल्मिकी जयंती को हर साल पूरे धूमधाम से मनाया जाता है,  इस मौके पर महर्षि वाल्मीकि की झांकी भी निकाली जाती है तमाम बाल्मीकि मंदिरों में पूरी श्रद्धा भाव के साथ महर्षि वाल्मीकि की पूजा की जाती है.


जन्म को लेकर नहीं स्पष्ट प्रमाण


यूं तो महर्षि वाल्मिकी के जन्म के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है लेकिन कहा जाता है कि इनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के यहां माना जाता है। भृगु ऋषि इनके बड़े भाई हुए.कहते हैं महर्षि वाल्मीकि ने ही प्रथम श्लोक की रचना की थी. 


इस वजह से नाम पड़ा वाल्मीकि


कहते हैं एक बार महर्षि वाल्मीकि ध्यान में पूरी तरह से मग्न थे। तब उनके पूरे शरीर पर दीमक चढ़ आई. लेकिन महर्षि  ने साधना पूरी होने के बाद ही आंखे खोली और फिर दीमकों को हटाया. चूंकि दीमको के घर को वाल्मिकी कहा जाता है। इसीलिए इनका नाम वाल्मिकी हुआ।


राम के त्यागने के बाद वाल्मीकि आश्रम में ही रही थीं माता सीता


माना ये भी जाता है कि जब प्रभु श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया था तब माता सीता कई सालों तक महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रहा करती थी. यहीं पर उन्होंने लव और कुश दो पुत्रों को जन्म दिया और यहीं पर उन्हें वन देवी के नाम से जाना गया. इसीलिए महर्षि वाल्मीकि का भी उतना ही महत्व है जितना की रामायण में वर्णित राम, सीता, लक्ष्मण और बाकी किरदारों का है.  हर साल वाल्मीकि जयंती को पूरे धूमधाम और श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है और इस बार यह जयंती 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी.