Ravan: रावण शस्त्र और शास्त्र का ही नहीं था ज्ञाता, संगीत का भी था बड़ा जानकार, बजाता था ये वाद्य यंत्र
Ravan: आमतौर पर रावण के अवगुणों का जिक्र होता है लेकिन उसमें कई ऐसे गुण थे जिसकी प्रशंसा स्वंय हनुमान जी ने भी की है. रावण कौन सा वाद्यंत्र बजाता था, उसने एक अनोखा वाद्यंत्र भी बनाया था.
Ravan: जब भी रावण का जिक्र होता है, हमारे मन में उसकी नकारात्मक छवि उभरती है, जाहिर है रावण अधर्म का प्रतीक था, पापी था. उसके अनैतिक कार्य और अहंकार ही उसके पतन का कारण बना. आमतौर पर रावण के अवगुण की बात होती है लेकिन अधर्मी रावण (Ravan) में अनेकों खूबियां भी थी.
रामायण के अनुसार स्वंय हनुमान जी (Hanuman ji) भी कला देखकर प्रभावित हुए थे. महापराक्रमी रावण अस्त्र शस्त्र के अलावा संगीत का भी बड़ा कलाकार था. क्या आप जानते हैं रावण कौन सा वाद्य यंत्र बजाता था, कहा जाता है कि रावण ने स्वंय एक वाद्य यंत्र (Music instrument) का निर्माण भी किया था, आइए जानें.
क्या है रावण की खूबियां ? (Qualities of Ravana)
कहते हैं दशानन (रावण) को वेदों का ज्ञान कंठस्थ था, बलशाली होने के साथ, अस्त्र-शस्त्र, ज्योतिष, वास्तु और विज्ञान, दिव्य और मायावी शक्तियों का ज्ञाता था. कहा जाता है कि त्रैतायुग में उसके बराबर प्रखर बुद्धि का प्राणी पृथ्वी पर कोई दूसरा नहीं हुआ. संगीत में भी रावण की अद्भुत रूचि थी.
रावण किस वाद्य यंत्र को बजाया करता था ? (Ravana Play Veena)
संगीत से रावण को बेहद लगाव था. रावण वीणा बजाने में निपुण था. माना जाता है कि रावण जब वीणा पर तान छेड़ता था तो स्वर्ग लोग से देवता भी उसका वीणा वादन सुनने पृथ्वी पर उतर आते थे. अप्सराएं मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगती थी. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण वीणा बजाता था. रावण के ध्वज पर भी वीणा का चित्र दिखाई देता है.
रावण ने बनाया ‘रावण हत्था’वाद्यंत्र (Ravana Made ravanahatha)
पौराणिक मान्यता के अनुसार रावण ने भी एक वाद्य यंत्र का अविष्कार किया था जिसका नाम ता रावण हत्था. जिसे बेला भी कहा जाता था. रावण हत्था को वायलिन का पूर्वज भी कहा जाता है.
राजस्थान और गुजरात में ये काफी लोकप्रिय है, ये यहां के प्रमुख वाद्य यंत्रों में से एक है. एक प्रचलित मान्यता के अनुसार रावण ने अपनी हाथ की नाड़ी काटकर रावण हत्था के तार बनाए थे.
वाइलिन की तरह दिखने वाले इस लोक वाद्य यंत्र को दिलरुबा, सारंगी और पखावज से भी जोड़कर देखा जाता है, इस वाद्य यंत्र को राजाओं के दरबार में भरपूर संरक्षण मिला. ऐसी मान्यता है कि श्रीलंका से हनुमान जी भारत लेकर आए.
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