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कुंभ में जो दिवंगत होते हैं, धर्म-परंपरा के अनुसार उनकी आत्म का क्या होता है?

धार्मिक स्थलों पर यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो इसे लेकर शास्त्र क्या कहते है? वहीं मान्यता क्या है, आइए जानते हैं.

प्रयागराज के संगम नगरी की पवित्र भूमि और मौनी अमावस्या के दिन का विशेष धार्मिक महत्व है. इसलिए इस दिन करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचे. लेकिन मौनी अमावस्या पर स्नान से पहले रात करीब एक बजे संगम नोज पर भीड़ के कारण भगदड़ मच गई और दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हो गया. सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, महाकुंभ में हुए भगदड़ से 30 लोगों की मौत हुई है.

महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान को अधिक महत्व दिया जाता है. कुंभ में इस दिन किए स्नान को अमृत स्नान कहा जाता है. यही कारण है कि श्रद्धालु इस पवित्र स्थान पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए बेताब रहते हैं. महाकुंभ के दौरान जिस स्थान पर भगदड़ मची, उसे संगम नोज कहा जाता है. यह वही स्थान है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है. यहीं पर अदृश्य सरस्वती नदी आकर गंगा में विलीन हो जाती है.

प्रयागराज में वैसे तो कई घाट और तट हैं, लेकिन यहां स्नान करना सबसे अधिक पुण्यकारी और मोक्षदायिनी माना जाता है. इसलिए यहां स्नान करने को लोग अधिक पवित्र मानते हैं. कुंभ के दौरान साधु-संत और संन्यासी तो यहां स्नान करते ही हैं, साथ ही आम लोग भी यहां स्नान करने के लिए ललायित रहते हैं.

मृत्यु हर स्थिति में दुखद घटना होती है. हालांकि धर्म शास्त्रों में मृत्यु को अटल सत्य कहा गया है. गीता में भी श्रीकृष्ण मृत्यु को लेकर कहते हैं कि, "अहं बीजप्रदः पिता." मैं सभी जीवों का परम पिता हूं. यानी मृत्यु के बाद आत्मा का एक और ठिकाना होता है और वो है आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में विलीन होना.

पुराणों के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा का पुनर्जन्म होता है और या फिर वह परमात्मा में विलीन हो जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ में जो दिवंगत होते हैं, उनकी आत्मा का क्या होता है. धर्म शास्त्रों में इसे लेकर क्या कहा गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुछ पवित्र जगहों पर मृत्यु होने से आत्मा को आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.

इन जगहों पर मृत्यु से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

  • काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है. मान्यता है कि यहां मृत्यु होने से आत्मा को मोक्ष मिलता है. 
  • बद्रीनाथ में मृत्यु होने से आत्मा का मिलन परमात्मा से हो जाता है. 
  • गंगा तट पर देह त्यागने वालों की आत्मा को सीधे विष्णु के परमधाम में स्थान मिलता है.  

जीवन और मृत्यु दोनों से जुड़ी है गंगा

पुराणों में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को तीर्थराज कहा गया है. वहीं गंगा जीवन और मृत्यु दोनों से जुड़ी है. धार्मिक अनुष्ठान से लेकर मृत्यु के कर्मकांड मां गंगा के बिना अधूरे हैं. हिंदू धर्म के अनेक पर्व-उत्सवों का मां गंगा से सीधा संबंध है. इसलिए जीवन से मृत्यु तक हर संस्कार में गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया है.

  • महाभारत के मुताबिक, जितने समय तक गंगा में अस्थियां पड़ी रहती हैं, उतने समय तक व्यक्ति स्वर्ग में रहता है.
  • पद्मपुराण के अनुसार, बिना इच्छा के भी अगर किसी व्यक्ति का निधन गंगा में हो जाए, तो वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है.

धार्मिक स्थल में दिवंगत होने वालों की आत्म का क्या होता है?

धर्म-शास्त्रों के मुताबिक, धार्मिक स्थलों पर देहत्याग करने वाले जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं. शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि गंगा तट पर जिनकी मृत्यु हो जाती है, उन्हें सीधा विष्णु के परमधाम में स्थान मिलता है. मान्यता है कि धार्मिक स्थलों पर यमराज और उनके दूतों का प्रवेश वर्जित होता है, इसलिए इन स्थानों पर दिवंगत होने वाली आत्मा नर्क नहीं जाती है. यहां देह त्याग करने वाली दिवंगत आत्मा सीधे परमात्मा से मिल जाती है.

ये भी पढ़ें: Kalpvas: कल्पवास के 21 नियम क्या हैं, कुंभ के बिना भी क्या कर सकते हैं कल्पवास

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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