Shami Plant worship: शमी के वृक्ष और उसके महत्व की चर्चा रामायण, महाभारत और पुराणों में मिलता है. इसका संबंध श्री राम भगवान और पांडवों से भी रहा है. शमी की लकड़ी का प्रयोग कुछ विशेष यज्ञों में किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि शमी के वृक्ष की पूजा करने से शनि का दुष्प्रभाव कम हो जाता है. इससे शनि कि ग्रह को शांत किया जा सकता है. हिंदू धर्म में प्रचलित धर्म ग्रन्थों के मुताबिक़, जिस व्यक्ति के ऊपर शनि का कुप्रभाव है. उस व्यक्ति को अपने घर में शमी का पेड़ लगाना चाहिए और समय – समय पर उसका पूजन करना चाहिए. आइये जानें शमी के वृक्ष का धार्मिक महत्व.


शनि के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए करते हैं शमी वृक्ष की पूजा


हिंदू धर्म ग्रन्थों में शनि के प्रभाव को कम करने के लिए दो वृक्षों की चर्चा की गई है. इसमें शमी का वृक्ष और पीपल का पेड़ है. माना जाता है कि इन दोनों वृक्षों की पूजा करने से शनि के प्रभाव को कम किया जा सकता है. शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को शमी का वृक्ष अपने घर के इर्द-गिर्द लगाना चाहिए. उसके बाद हर शनिवार को सरसों के तेल का दीपक शमी के वृक्ष के नीचे जलाना चाहिए.  इसके अलावा शमी वृक्ष के फूल और पत्तों के प्रयोग से भी शनि का कुप्रभाव शांत होता है. मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगा रहने से टोने, टोटके और नकारात्मक ऊर्जा का घर पर प्रभाव नहीं पड़ता.



शमी के वृक्ष का महत्व रामायण भी मिलता है. रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम लंका पर युद्ध से पहले विजय मुहूर्त में हवन किया था, तो शमी के वृक्ष को उसका साक्षी बनाया था. इसी प्रकार महाभारत के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने जब बृह्न्नलला का रूप धारण किया था, तो अपना गाण्डीव धनुष शमी के वृक्ष पर ही छिपाया था. शमी के पत्तों का प्रयोग भगवान गणेश और दुर्गा मां की पूजा में भी किया जाता है.