Kalash Pujan: संसार में हम कुछ भी करें परन्तु वह जल के बिना संभव नहीं है, जल में अपार और असीमित शक्ति है इसलिए भारत की संस्कृति मनुष्य को प्रत्येक मांगलिक आदि कार्यों से पहले जल की पूजा कराती है और अप्रत्यक्षत : यह संदेश देती है कि संसार में जल से अमूल्य कुछ भी नहीं है. यह अमृत है, रस है, इसकी सदैव रक्षा करना, इसे बचाना, इसका मान सम्मान करना मानव का धर्म है. जल शक्ति की कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए. जल में ऐसे गुण समाविष्ट है कि उसके संपर्क में आने से सब कुछ धुल जाता है. जल की संगति का अर्थ है, विकारों को पवित्र और निर्मल बनाना.
कलश पूजन के पीछे बहुत से रहस्य गर्भित हैं. कलश को उस शुद्ध जल का प्रतीक मानकर पूजा जाता है जो मनुष्य के जीवन को संचालित करता है. उसे विकार रहित, रसपूर्ण, शुद्ध, शांत और शीतल बनाता है. हमारे सभी सांस्कृतिक संस्कारों में, मांगलिक या अन्य किसी कार्य के आरंभ में कलश पूजन अनिवार्य है. ऐसा प्रतीत होता है कि संसार की समस्त क्रियाएं इसी कलश रूपी रहस्यमयी शक्ति के चारों ओर चक्कर लगा रही हैं. कलश को सुख-समृद्धि, धन-धान्य और मंगल कामना का प्रतीक माना जाता है.
धार्मिक शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु की नाभि कमल से सृष्टि की उत्पत्ति हुई और कमल से ब्रह्माजी की. कलश में रखा जल, उस जल स्रोत का प्रतीक होता है जिससे यह सृष्टि बनी थी. कलश को लेकर एक कहानी यह भी है कि समुद्र मंथन के समय देव और असुरों के समक्ष अमृत से भरा कलश प्रकट हुआ. यही कलश, इस शाश्वत जीवन का प्रतीक है. अगर देखा जाए तो मां लक्ष्मी के हाथ में भी धन से भरा कलश है, जो धन-धान्य और सुख-समृद्धि का प्रतीक है. ये तो कलश के शास्त्रीय धार्मिक आधार हैं . कलश जलपात्र होता है और जल के बिना मनुष्य का जीवन असंभव है. रहीम दास जी के द्वारा जल पर लिखा यह दोहा शायद ही किसी ने सुना हो -
“रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून..”
अर्थात् पानी के बिना यह संसार सूना है. कलश पूजन में यह बात समाहित है कि जीवन में जब भी समस्याएं और दुख उत्पन्न हों, क्रोधाग्नि बढ़े , आवेश आ जाए, मन निराश हो, अपवित्रता की मात्रा बढ़ जाए तब इस शुद्ध पवित्र जल का सेवन करना चाहिए. इसके उपयोग से सभी प्रकार के दुख और रोग स्वतः धुल जाएंगे. कलश में उस दिव्य शक्ति का निवास माना गया है, जिसके केवल सामने रखकर पूजने मात्र से मनुष्य समस्याओं से रहित हो जाता है.
इस कलश को नाभि कमल का प्रतीक माना जाता है. जिससे जगत का सृजन और विकास हुआ है. क्या हम नहीं जानते कि नाभि कोई भी हो, वह आरंभ और अंत का कारक होती है. मनुष्य की नाभि ही लीजिए, जब मनुष्य गर्भ में होता है तो उसमें सर्वप्रथम नाभि के माध्यम से ही जीवनी शक्ति, रक्त संचार आरंभ होता है और यह नाभि माता की नाभि से जुड़ी होती है. कैसा अद्भुत खेल है प्राकृतिक ऊर्जाओं का, एक नाभि दूसरी नाभि से जुड़कर शक्तिपात करके सृजन करती रहती है. कलश पूजन इसी ब्रह्म ऊर्जा का प्रतीक है जिसके माध्यम से हमारे पूर्वजों ने हमारा ध्यान इसी ऊर्जा के अस्तित्व की ओर आकर्षित किया है. हमें यह समझाने का प्रयास किया गया है कि हमें जीवनभर प्राकृतिक ऊर्जाओं से सामंजस्य बनाकर रखना होगा और उन्हें जीवन में उचित ढंग से प्रयुक्त करना होगा.
कलश ऊर्जा का पिंड के जैसा होता है, भारतीय संस्कृति में नवरात्र स्थापना के समय घट स्थापना या कलश स्थापना की जाती है. इसी घट या कलश के समक्ष बैठकर नौ दिन तक मंत्र, यंत्र या तंत्र. जैसा भी व्यक्ति चाहे, साधना करता है. यह कलश दैवीय शक्ति का प्रतीक होता है. इसके स्पर्श मात्र से दुःख, कष्ट दूर होने लगते हैं. इसे देवी मां की शक्ति कहा जाता है.
कलश पूजन की महत्वपूर्ण संस्कृति के वैज्ञानिक रहस्यों में यह भी बताया गया है कि मांगलिक और धार्मिक कार्यों में कलश पूजन के समय कलश को जल से भरा जाता है. परन्तु मृत्यु, जीवन का अंतिम महासत्य है जिसे टाला नहीं जा सकता और भारतीय संस्कृति में मृत्यु के समय शव दहन के लिए जो अग्नि ले जाई जाती है, वह भी कलश में ही ले जाई जाती हैं और मानव के अंतिम संस्कार के समय भी ध्यान आकर्षित कराया जाता है कि जीवन भर इस कलश पात्र में जल भरकर पूजा कराई जाती रही है क्योंकि जल में जीवनी शक्ति है परन्तु अब अंतिम समय इस कलश में अग्नि रखकर इस दैहिक शरीर को भस्मीभूत करके समष्टि ऊर्जा में भेजा जाता है. इससे यह सिद्ध होता है कि कलश पूजन हमारे जीवन के आरंभ से लेकर अंत तक चलता है , यह आदि भी है तो अंत भी .
जिस घर में मांगलिक कार्यों में कलश पूजन का प्रावधान है. उस घर में सुख-समृद्धि भरपूर रहती है. मां लक्ष्मी की कृपा बरसती रहती है. घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है. पानी से भरा हुआ कलश घर के पूजा स्थल में रखने से घर की संपन्नता में स्थिरता आती है.
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