दुर्गा पूजा के उत्सव में सिंदूर की होली खेलने की परंपरा बंगाल में बहुत प्रचलित है. नवरात्रि के दसवें दिन जब मां दुर्गा अपने पिता के घर से पति के घर जाती है तब उनके स्वागत और सम्मान में सिंदूर की होली खेली जाती है. लोग एक-दूसरे पर सिंदूर डालकर खुशियां बांटते हैं और मां दुर्गा का जश्न मनाते हैं. यह पर्व सामाजिक एकता और आनंद की भावना को दर्शाता है. सिंदूर की होली खेल कर लोग एक-दूसरे का स्नेह बढ़ाते हैं और मां दुर्गा से जीवन में खुशियों की कामना करते हैं. ऐसे में यह परंपरा दुर्गा पूजा का एक अंग बन गई है. 


जानें क्यों खेली जाती है सिंदूर की होली 
दुर्गा पूजा के दौरान नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के मायके यानि अपने पिता के घर में रहने की परंपरा इस त्योहार की एक मुख्य विशेषता है. पूरे नौ दिन मां का भव्य स्वागत और सत्कार किया जाता है. प्रत्येक दिन उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. लोग व्रत रखकर और भोग लगाकर मां को प्रसन्न करते हैं. नौंवें दिन महानवमी मनाई जाती है. इस अवसर पर दुर्गा के आगमन का स्वागत करने और उनके सौंदर्य को और निखारने के लिए सिंदूर की होली खेली जाती है. यह एक तरह की शुभकामनाएं देने का प्रतीक भी माना जाता है. सिंदूर की होली का शुभ मुहूर्त में खेली जाती है. दसमी को मां अपने ससुराल लौट जाती हैं जिससे शोक मनाया जाता है. 


पारंपरिक पोषाक पहन कर खेलते हो सिंदूर की होली 
दुर्गा पूजा के अवसर पर बंगाल में सिंदूर की होली एक प्रमुख परंपरा है. विजयदशमी यानी दशहरा के दिन बंगाल की सभी शादीशुदा महिलाएं इस रस्म को निभाती हैं. इसके लिए वे बंगाल की पारंपरिक सफेद और लाल बॉर्डर वाली साड़ी पहनती हैं. इसके बाद वे देवी दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर आपस में सिंदूर से होली खेलती हैं. एक-दूसरे पर सिंदूर फेंककर वे खुशियां बांटती हैं और मां दुर्गा के जीवन में सुख-शांति की कामना करती हैं. घरों के बाहर भी विभिन्न प्रकार के प्रतीक बनाकर सिंदूर से सजाए जाते हैं. इस तरह सिंदूर की होली एक ऐसी परंपरा बन गई है जो बंगाली संस्कृति की अमूल्य विरासत का हिस्सा है और जिसे हर साल बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. 


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