हिंदू कैलेंडर में अधिक मास की अवधारणा अंग्रेजी कैंलेंडर के लीप वर्ष जैसी ही है. लीप ईयर हर चार साल बाद आता है जब फरवरी में 29 दिन होते हैं. वहीं हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह प्रकट होता है, जिसे अधिकमास कहा जाता है. इसे मल मास और पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है.
अधिक मास की शुरुआत शुक्रवार से होगी. 18 सितंबर 2020 को पंचांग के अनुसार प्रतिपदा की तिथि है. इस दिन चंद्रमा और सूर्य दोनों ही ग्रह कन्या राशि में विराजमान रहेंगे.
तीन साल में आने का कारण
भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है. अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है. सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए इसका आगमन होता है.
प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों होता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है. इसे ही अधिक मास कहते हैं.
इस मास का महत्व
हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है. लोग इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवतभक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग जैसे धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं. ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है.
इन कामों की है मनाही
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र काम वर्जित माने गए हैं. इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आमतौर पर नहीं किए जाते हैं. माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है. इसी वजह से इसका नाम मल मास पड़ा है.
भगवान विष्णु अधिक मास के स्वामी माने जाते हैं. पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है. इसीलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है.
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