(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
World Water Day 2023: भगवान शिव स्वयं ही जल हैं, आदिग्रंथ और पुराणों में वर्णित है जल की महिमा
World Water Day 2023: सृष्टि के प्रारंभ से ही प्राणियों के लिए जल का विशेष महत्व रहा है. हिंदू धर्म के आदिग्रंथों और पुराणों में भी जल के महत्व और निर्मल महिमा का वर्णन किया गया है.
World Water Day 2023 Significance in Hindu culture: हर साल 22 मार्च के दिन को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है. जल दिवस मनाने का उद्देश्य है जीवन में जल के महत्व और उपयोगिता को समझाना और जल संरक्षण पर ध्यान देना. इस साल विश्व जल दिवस की थीम 'परिवर्तन में तेजी’ (Accelerating Change) है.
हिंदू धर्म में जल का महत्व
विश्व जल दिवस को सभी देशों में और सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है. लेकिन हिंदू धर्म में जल का विशेष धार्मिक महत्व होता है. इसलिए किसी भी पूजा-पाठ की शुरुआत में सबसे पहले शुद्ध जल का छिड़काव कर शुद्धिकरण की जाती है और जल से भरा कलश स्थापित किया जाता है. हिंदू धर्म में नदी को भी मां तुल्य मानकर अराधना की जाती है. पूजा-पाठ के साथ ही कई मंत्र-श्लोक में भी जल का महत्व मिलता है. आदिग्रंथों और पुराणों में भी जल के महत्व का वर्णन किया गया है.
- पुराणों में कहा गया है कि धरती पर जल का भार धरती से 10 गुणा अधिक है.
- कहा जाता है कि, भाव, मंत्र, तांबे का पात्र और तुलसी से अपवित्र जल भी पवित्र हो जाता है.
- गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना गया है. वेद, पुराण, रामायण महाभारत सभी धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है.
- शिवपुराण में कहा गया है कि, भगवान शिव स्वयं ही जल हैं.
मत्स्य पुराण में कहा गया है-
शरद काले स्थितं यत् स्यात दुक्त फलदायकम्
वाजपेयति राजाभयां हेमंते शिशिरे स्थितम्
अध्वमेघ संयं प्राह वसंत समये स्थितम्
ग्रीष्मअपि तत्स्थितं तोयं राज सूयाद् विशिस्यते।
इसका अर्थ है कि, जलाशय में वर्षाकाल तक ही जल रहता है, जोकि अग्निस्त्रोत यज्ञ का सीमित अवधि तक फल देने वाला है. हेमंत और शिशिर काल तक रहने वाला जल वाजपेय और अतिराम जैसे यज्ञ का फल देता है. वसंतकाल तक रहने वाला जल अश्वमेघ यज्ञ के समान फल देता है और जो जल ग्रीष्मकाल तक रहता है, वह राजसूय यज्ञ के समान फल देता है. यही कारण है कि हिंदू संस्कृति में आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठानों में जल महत्वपूर्ण है. वेद, उपनिषद, स्मृतियों और नीति ग्रथों में जल के महत्व पर जोर दिया गया है.
ऋग्वेद में कहा गया है-
अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तये।
देवा भवत वाजिन:।
इसका अर्थ है- हे देवों, तुम अपनी उन्नति के लिए जल के भीतर मौजूद अमृत और औषधि को जानकर जल के प्रयोग से ज्ञानी बनो.
महर्षि वेदव्यास जी महाभारत के सभापर्व में कहते हैं-
आत्मप्रदानं सौम्यत्वमभ्दयश्चैवोपजीवनम्।
यानी परहितार्थ आत्मदान, सौम्यत्वं तथा दूसरों को जीवनदान की शिक्षा जल से लेनी चाहिए.
जल के महत्व से जुड़े हैं ये व्रत-त्योहार
- अक्षय तृतीया पर मिट्टी के पात्र में जल भरकर दान करने का महत्व है. इस दिन किए जलदान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
- वैशाख एकादशी पर प्याऊ बनवाने से करोड़ों महायज्ञ के समान फल मिलता है.
- निर्जला एकादशी व्रत में जल का त्याग करना पड़ता है. इस व्रत से जल की उपयोगिता और जल के महत्व का पता चलता है.
- पूर्णिमा और अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है.
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