इन्फ्लूएंजा को लेकर किए गए एक अध्ययन में कई नई चीजें पता चली हैं. अध्ययन में सामने आया है कि इन्फ्लूएंजा के प्रारंभिक संक्रमणों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में वायरस विभिन्न उम्र के लोगों को कैसे प्रभावित करेगा और फ्लू के टीके के प्रभाव को भी प्रभावित कर सकता है.


ई-लाइफ में प्रकाशित रिसर्च के निष्कर्षों से सीजनल इन्फ्लूएंजा इंफेक्शन एवं एज रिस्क और समान रूप से वैक्सीनेटेड पॉपुलेशन में में वैक्सीन के इफेक्ट के अनुमानों को इंप्रूव करने में मदद मिल सकती है. सीजनल इन्फ्लूएंजा जो ए, बी और सी तीन प्रकार का होता है. साइंस डेली के अनुसार सी बहुत कम होता है. इन्फ्लूएंजा एक क्यूट रेस्पायरेटरी इफेक्शन होता है.


शिकागो यूनिवर्सिटी इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन डिपार्टमेंट के  सारा कोबे के अनुसार "एक निश्चित आयु वर्ग में इन्फ्लूएंजा संक्रमण का खतरा समय के साथ बदलता है, उम्र के अलावा अन्य कारक संक्रमण के प्रति हमारी संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकते हैं.


इन्फ्लुएंजा ए वायरस को उप-वर्गों में बांटा गया है. ए (एच 1 एन 1) और ए (एच 3 एन 2) वर्तमान में मनुष्यों में सर्कुलेट हो रहा है. वायरस ए (एच 1 एन 1) को ए (एच 1 एन 1) पीडीएम 09 के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह 2009 की महामारी का कारण बना और इसने ए (एच 1 एन 1)  वायरस को रिप्लेस कर दिया जो कि इससे पहले के वर्ष में मनुष्यों में था


हर साल 6 लाख तक मौतें


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार  इन्फ्लुएंजा वैश्विक स्वास्थ्य के लिए 10 प्रमुख खतरों में से एक है. हर साल इसके लगभग एक अरब मामले सामने आते हैं और 2,90,000 से 6,50,000 इन्फ्लूएंजा रेस्पायरेटरी संबंधी मौतें हो  जाती हैं


उम्र के आधार पर प्रभावित करता है इंफेक्शन


अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने 2007-2008 से 2017-2018 तक मार्शफील्ड एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी एरिया विस्कॉन्सिन में वैक्सीन प्रभावशीलता के स्टेटिकल मॉडल लागू किया.


इसमें सामने आया कि कम आयु में इंफेक्शन लोगों के जोखिम को कम करता है जबिक बाद में उसी प्रकार के इंफेक्शन के लिए चिकित्सा की आवश्यकता होती है. एच 3 एन 2 की तुलना में एच 1 एन 1 के लिए उनका प्रभाव अधिक प्रभावी होता है. इसमें यह बात भी सामने आई कि फ्लू के वैक्सीन की प्रभावशीलता उम्र और जन्म के साल के हिसाब से अलग–अलग होती है.