एक नई रिसर्च के मुताबिक, अमेरिका और कनाडा में बेचे और और इस्तेमाल किए जा रहे आधे से ज्यादा कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स में जहरीले केमिकल्स की मौजूदगी का पता चला. नॉत्रे डेम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आम इस्तेमाल होनेवाली 230 से ज्यादा कॉस्मेटिक्स की जांच की. उन्होंने जांच के लिए लिपस्टिक, मसकारा, फाउंडेशन, लिप बाम, ब्लश, नेल पॉलिश को शामिल किया और पाया कि 52 फीसद में पर-फ्लूरो-अलकिल या पॉली-फ्लूरो-अलकिल के घटक या PFAS थे और आसान भाषा में ‘फॉरेवर केमिकल्स’ भी कहा जाता है.
कॉस्मेटिक्स में जहरीले केमिकल्स का पर्दाफाश
फाउंडेशन, लिपस्टिक और आई प्रोडक्ट्स जैसे मसकारा में PFAS का अधिक लेवल था जबकि आई ब्रो में उसका लेवल कम पाया गया. रिसर्च में बताया गया कि ये केमिकल्स पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं और किडनी कैंसर, टेस्टीक्यूलर कैंसर, हाईपरटेंशन, थॉयराइड रोग, जन्म के वक्त शिशु के वजन में कमी, बच्चों में इम्यूनिटी कम करने के संबंध से भी जोड़ा गया है.
बयान में कहा गया कि शोधकर्ताओं ने हर प्रोडक्ट्स में फ्लोराइन के लेवल का परीक्षण किया, जो प्रोडक्ट में PFAS के इस्तेमाल का एक संकेतक है. उन्होंने बताया कि लिप प्रोडक्ट्स में 55 फीसद, लिपिस्टक में 62 फीसद, फाउंडेशन (लिक्विड और क्रीम) में 63 फीसद, मसकारा में 47 फीसद और वाटरप्रूफ मसकारा में 82 फीसद फ्लोराइन का लेवल मिला. आई प्रोडक्ट्स जैसे शैडो, लाइनर, क्रीम, पेन्सिल्स के 58 फीसद के साथ-साथ पाउडर, ब्लश, स्प्रे समेत फेस प्रोडक्ट्स के 40 फीसद में भी फ्लोराइन का अधिक लेवल था.
आधे से ज्यादा प्रोडक्ट्स में PFAS का खुलासा
रिसर्च में विशेष ब्रांड के नाम का खुलासा नहीं किया गया. नॉत्रे डेम में फिजिक्स के प्रोफेसर और शोधकर्ता ग्राहम पेसली ने नतीजों को खास तौर पर चिंताजनक बताया है. उनका कहना है कि कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स को आंख और मुंह के आसपास लगाया जाता है. प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल होनेवाले PFAS केमिकल्स एक शख्स के लिए जोखिम हैं क्योंकि स्किन के जरिए शरीर के अंदर अवशोषित हो जाते हैं.
इन प्रोडक्ट्स के डिस्पोजल और निर्माण से जुड़े प्रयावरणीय प्रदूषण का अतिरिक्त जोखिम भी है जो बहुत ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकता है. पेसली ने कहा रिसर्च से इन प्रोडक्ट्स में बड़े पैमाने पर जहरीले केमिकल्स के इस्तेमाल का संकेत मिला, लेकिन गौर ध्यान देनेवाली बात ये है कि कॉस्मेटिक्स में फ्लोराइन युक्त केमिकल्स की पूरी सीमा का दोनों देशों में सख्त लेबलिंग की कमी के कारण अनुमान लगाना मुश्किल है.
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