अभिभावकों के लिए किशोरों की समस्याओं को समझना चुनौतीपूर्ण काम है. मानसिक परेशानियों के लक्षण पहचानने में कई महीने लग जाते हैं. कुछ माता-पिता इसलिए भी उनकी मानसिक स्थिति को नजरअंदाज कर देते हैं कि उनके बच्चों को 'क्रेजी' कहा जाने लगेगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआत में ही ध्यान देकर किशोर को मानसिक परेशानियों से छुटकारा दिलाया जा सकता है. अगर आपको संदेह हो रहा है कि उसे मानसिक बीमारी है तो प्रोफेशनल की मदद लेना उचित रहेगा. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए मासूम को गैर दोस्ताना वातावरण से बचाना जरूरी हो जाता है. शारीरिक और सामाजिक बदलाव, आर्थिक चुनौतियां, दुर्व्यवहार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बनते हैं. तनाव के अलावा ज्यादा स्वतंत्रता, साथियों संग सामंजस्य बिठाने की चाहत, लैंगिक रुजहान और तकनीकी सुविधा मानसिक परेशानियों में इजाफा करते हैं.
किशोरों की मानसिक परेशानियों को समझिए
सोशल मीडिया का प्रभाव, लैंगिक भेदभाव एक किशोर की वास्तविक और भविष्य की चाहत के बीच असंतुलन पैदा करते हैं. साथियों के साथ मेलजोल और उनकी बराबरी करने की चाहत भी परेशानी बढ़ाने में अहम भूमिका अदा करती है. हिंसा और आर्थिक चुनौतियां भावनात्मक रूप से मजबूत होने के खतरे के तौर पर जानी जाती हैं. आंकड़ों के मुताबिक करीब 20-30 फीसद मासूम इस तरह की चुनौतियां का सामना कर रहे हैं. टीन एज में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे से गुजरना सामान्य घटना है. इसलिए जहां तक संभव हो फौरन पोफ्रेशनल से संपर्क करना चाहिए.
चेतावनी के संकेत को न करें नजरअंदाज
व्यस्कों और किशोरों में मानसिक रोग के पीछे कलंक बहुत बड़ा कारण माना गया है. जिसके बारे में लोग बात करने या मदद हासिल करने से कतराते हैं. जरूरी है कि दोस्तों से बात की जाए. पूर्वाग्रह से बचते हुए उन्हें बात करने के लिए हौसला बढ़ाना चाहिए. जब कोई किशोर अपने से ज्यादा तनाव का बोझ झेलता है तो काउंसलर की मदद लेना जरूरी हो जाता है. अगर अभिभावक इतने ज्यादा शर्मिले हैं कि उन्हें काउंसलर से मदद लेने में झिझक हो रही है तो ऑनलाइन विकल्प का दरवाजा खुला है. अभिभावकों को अपने बच्चों में तनाव के चेतावनी संकेत को तलाश करना चाहिए. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बच्चों पर मानसिक रोग का लक्षण नहीं दिखाई दे.
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