Women Equality: पूरे विश्व में महिलाओं की स्थिति को अधिक बेहतर और मजबूत बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2010 में यूनाइटेड नेशन (UN) की जनरल असेंबली ने यूएन वुमेन (UN Women) की स्थापना की. महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के साथ ही इस इकाई का उद्देश्य विश्वभर में जेंडर इक्वेलिटी (लैंगिग समानता) लाना है. ताकि अलग-अलग फ्रंट पर भेदभाव का सामना कर रही महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही अधिकार और अवसर मिल सकें (gender equality). यूएन वीमन ((UN) Women) की स्थापना के संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने इस दिशा में सख्ती से कदम उठाए और इनका सकारात्मक परिणाम भी हमें अब देखने को मिल रहा है. लेकिन कोरोना महामारी ने इन प्रयासों को भारी नुकसान पहुंचाया है.


जेंडर इक्वेलिटी और महिलाओं की स्थिति


यूएन वुमेन की स्थापना के बाद जिस तरह के कदम महिलाओं की बहेतरी के लिए उठाए गए हैं, उसका रिजल्ट भी अब सामने आ रहा है. जेंडर इक्वेलिटी पर एक दशक में हुए बदलावों पर जारी यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब पहले की तुलना में अधिक बच्चियां स्कूल जाने लगी हैं. पार्लियामेंट और कोर्ट जैसे सम्मानीय संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर अब महिलाओं की नियुक्तियां पहले की तुलना में कहीं अधिक हो रही हैं. हालांकि इस दिशा में अभी और काम किया जाना बाकी है. क्योंकि पुरुषों की तुलना में अभी भी इन संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी काफी कम है.


कम उम्र में विवाह के मामलों में भी पिछले एक दशक में काफी कमी आई है. हालांकि इन सभी अच्छे सुधारों के बावजूद महिलाओं के जीवन में कुछ बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं. जैसे, यौन हिंसा. यूएन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात स्वीकार की गई है कि आज के समय में भी हर 5 में से 1 महिला यौन हिंसा का शिकार होती है. ज्यादातर मामलों में पीड़ित महिलाओं की उम्र 15 से 49 साल के बीच होती है और अपराधी कोई ऐसा व्यक्ति होता है, जो महिला का संगा संबंधी या क्लोज रिलेटिव होता है. 


कोरोना का महिलाओं की स्थिति पर असर


पिछले एक दशक के हालातों की पड़ताल, सुधार और बदलाव के साथ ही महिलाओं की स्थिति पर यूएन द्वारा जारी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि कोरोना महामारी का असर महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए किए गए पिछले एक दशक के सभी प्रयासों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है. क्योंकि कोरोना के बाद आर्थिक स्थिति, पारिवारिक स्थिति और सामाजिक स्थिति में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं. ऐसे में महिलाओं द्वारा अनपेड ड्यूटी को करने की मजबूरी बढ़ गई है.


उदाहरण के लिए आर्थिक तंगी झेल रहे परिवारों को यदि किसी बच्चे की पढ़ाई छुड़वानी पड़े तो लोग पहले बेटी का स्कूल जाना बंद कराएंगे ऐसे केस देखने को भी मिल रहे हैं. घर और परिवार में बुजुर्गों की तबीयत खराब होने पर या किसी तरह की समस्या होने पर महिलाओं को अपने काम की कुर्बानी देनी होगी और ऐसे काम करने होंगे, जिनके लिए उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाएगा. इतना ही नहीं कोरोना के कारण महिलाओं और बच्चियों के प्रति शारीरिक हिंसा के मामलों में भी बढ़ोतरी देखी गई है. जो कि चिंता का विषय है. कोरोना के समय लगे लॉकडाउन के समय और इसके बाद महिलाओं के प्रति होने वाली शारीरिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई है. हालांकि यूएन वीमन इन सभी हालातों को बेहतर बनाने के प्रयासों में लगा हुआ है.


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