बहुत कम समय में कोरोना वायरस की महामारी से दुनिया भर में अप्रत्याशित बदलाव आए हैं. उन बदलावों में से एक प्रमुख है घर से काम करने की संस्कृति का विकास. ये कोविड-19 का खास पहचान बन गया है. सोशल डिस्टेंसिंग कोरोना वायरस से दूर रहने की सुरक्षात्मक रणनीति का एक अहम हिस्सा है. लिहाजा, बहुत सारे दफ्तरों की जगहें ऑनलाइन शिफ्ट हो गई हैं. इसका मतलब हुआ कि हमारे जैसे लोग करीब एक साल से घर पर रहते हुए काम कर रहे हैं.


मगर ज्यादातर लोगों ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि इससे उनकी सामान्य दिनचर्या प्रभावित प्रभावित हुई है. घर से काम करने के दौरान हमने कुछ आदतें अपना ली हैं जिसे किसी भी तरह सेहतमंद नहीं कहा जा सकता. वर्क फरोम होम नियम का पालन ​​करने के नियमित कार्यक्रम नहीं होने और भविष्य के बारे में अनिश्चितता से हमारा शरीर प्रभावित हुआ है.


खानपान के लिए तय समय नहीं


क्या आपको याद है दफ्तर जाने के लिए सुबह के वक्त कितनी तेजी होती थी? हम या तो बहुत जल्दी ब्रेकफास्क कर लेते या घर छोड़ने से पहले कुछ फल उठा लेते या ऑफिस की कैंटीन में हल्का नाश्ता कर लेते. इस दौरान समय का थोड़ा बहुत हेरफेर होता, मगर खानपान का समय रोजाना तय रहता. लेकिन घर से काम करने के विकल्प ने हमारे रूटीन के एहसास को उलट पुलट कर रख दिया है और खानपान का कोई निश्चित समय नहीं रहा.


इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि अगर आप दो भोजन के बीच बड़ा अंतर रखते हैं या शरीर के लिए जरूरी मात्रा में खाना नहीं खा रहे हैं, तो ऊर्जा लेवल में कई आ जाएगी जिसका सीधा असर आपके ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर होगा. उससे ज्यादा अगर आप अपने खानपान के समय को तय नहीं कर पा रहे हैं, तो आपका पूरा शरीर प्रभावित हो जाएगा. पाचन से लेकर मेटाबोलिज्म तक की कीमत आपको चुकानी होगी. अंत में जीवन शैली से जुड़ी बीमारी जैसे मोटापा और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाएगा.


नींद की कमी की समस्या
महामारी ने ज्यादातर लोगों के लिए नींद की कमी की समस्या पैदा कर दिया है. पर्याप्त नींद के लिए जरूरी है कि छह से आठ घंटा रात में सोया जाए. मगर तनाव के चलते हम उचित स्लीप साइकिल को तय कर पाने में असमर्थ हैं. आपको बता दें कि एक स्लीप साइकल लगभग 90 मिनट तक रहती है. उस समय के दौरान हमें नींद के पांच अलग चरणों से गुजरना पड़ता है.


अब, नींद की कमी से ध्यान लगाने की क्षमता घटने का डर है और आपको चिड़चिड़ा बना सकता है. ये काम करने की गुणवत्ता और निजी संबंधों पर सीधा प्रभाव डालता है. इसके अलावा, माना जाता है कि कम नींद से शरीर में सूजन पैदा हो सकता है जिसके नतीजे में कई तरह की शारीरिक बीमारियां होने का डर रहता है.


निजी, प्रोफेशनल जिंदगी असंतुलित


हम सभी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी के बीच लक्ष्मण रेखा खींचने की कोशिश करते हैं. कोरोना महामारी के आने से हमारे घर हमारे दफ्तर बन गए हैं. सोफा पर बैठे हुए हम मीटिंग में शिरकत कर रहे हैं और डाइनिंग टेबल पर बैठकर प्रजेंटेशन दे रहे हैं. शुरू में इस तरह काम करने से थोड़ा सुविधाजनक लग सकता है लेकिन धीरे-धीरे ये हमारी निजी जिंदगी में दाखिल हो जाता है.


आराम के समय के मुकाबले हमारा दिमाग बेडरूम में काम के साथ ज्यादा जुड़ा होता है. हो सकता है कुछ लोगों के लिए काम के समय की अवधि सामान्य से ज्यादा हो गई हो. इन सभी कारणों से हमारी अपनी निजी जिंदगी को देने के लिए बहुत कम समय मिल पाता है. इससे निश्चित रूप से हमारा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है और महामारी की चुनौती को ज्यादा मुश्किल बना दिया है.


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