सावधान ! मौत की ओर ले जाने वाले वीडियो गेम्स से बच्चों को ऐसे बचाएं
जी हां ‘ब्लू व्हेल’ गेम एक ऐसा ही खूनी खेल है जिसके अंतिम पड़ाव में खेलने वाले को अपनी जानी देनी पड़ती है. ‘ब्लू व्हेल’ नाम का गेम बच्चों को सुसाइड की ओर धकेलने की वजह बन रहा है और चिंता की बात ये है कि भारत में इस गेम की एंट्री हो चुकी है.
नई दिल्लीः वीडियो गेम्स का बच्चों को हमेशा से ही चस्का रहा है. लेकिन आजकल कई ऐसे वीडियो गेम्स आ गए हैं जो बच्चों को मौत की ओर धकेल रहे हैं. जी हां ‘ब्लू व्हेल’ गेम एक ऐसा ही खूनी खेल है जिसके अंतिम पड़ाव में खेलने वाले को अपनी जान देनी पड़ती है. ‘ब्लू व्हेल’ नाम का गेम बच्चों को सुसाइड की ओर धकेलने की वजह बन रहा है और चिंता की बात ये है कि भारत में इस गेम की एंट्री हो चुकी है.
‘ब्लू व्हेल’ जो है एक खूनी गेम- रूस में करीब 160 लोगों की जान लेने के बाद अब ये गेम भारत में भी पहुंच गया है. इस खूनी गेम का पहला शिकार मुंबई के अंधेरी में रहने वाला 14 साल का मासूम बना है. क्या है ये ‘ब्लू व्हेल’ गेम और ये कैसे खेला जाता है? आखिर क्यों पता होने के बाद भी लोग अपनी जान गंवा देते है! जानें
जानकारों के मुताबिक़ इस गेम की शुरूआत साल 2013 में रूस में हुई. 26 साल के इया सिदोरोव नाम के एक शख्स ने इस गेम को बनाया. ये गेम ‘VKontakte’ नाम की यूरोपियन सोशल साइट के जरिए खेला जाने लगा. सिदोरोव पर आरोप है की उसने ख़ुद 16 बच्चों को इस गेम के जरिए आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया. इस मामले में उसकी गिरफ़्तारी भी हुई लेकिन इसके बाद भी यह गेम अमेरिका, इंग्लैंड, सऊदी अरब तक पहुंचा. अब ये भारत तक पहुंच चुका है.
सोशल मीडिया के जरिए दिया जाता है मौत का इंविटेशन ये गेम क्लोज्ड ग्रुप में खेला जाता है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप जैसे साइट्स पर इंविटेशन के जरिए इस गेम में आप शामिल हो सकते हैं. इस गेम के कुल 50 पड़ाव होते हैं जिससे आपको 50 दिनों में पूरा करना होता है. हर पड़ाव में एक चैलेंज आपको दिया जाता है जिसे पूरा करने पर आपको उसकी तस्वीर इस गेम के एडमिन को ग्रुप पर भेजनी होती है.
आप इस गेम से बाहर निकल भी सकते है लेकिन अगर आप गेम से बाहर निकलने की कोशिश करेंगे तो इस गेम को चलाने वाले आपके परिवार को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते है. इस गेम में हाथ की नसों को काटने जैसे टास्क भी दिए जाते हैं. इसलिए इस खूनी गेम के जरिए बच्चों को उनकी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है क्योंकि ये लोग किशोर अवस्था के बच्चों को इस गेम मे शामिल करते हैं जिनके पास बहुत ज्यादा समझ नहीं होती है कि किस गेम में किस हद तक जाना एडिक्शन नहीं होता.
एबीपी न्यूज ने डॉक्टर्स की इस बारे में सलाह मांगी-ऐसे बचाएं बच्चों को डॉक्टर अमिताभ साहा का कहना है कि हर गेम हर किसी के लिए नहीं बना होता. लिहाजा पैरेंट्स को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि उनको अपने बच्चों को कहां गाइड करना चाहिए और कहां नहीं. साथ ही उनका ये भी कहना है कि बच्चों को खासतौर पर स्कूल जाते बच्चों को मोबाइल फोन या कंप्यूटर का ऐक्सस नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे बच्चें कही ना कही ऐडिक्ट होते जा रहे है. कम उम्र में बच्चों को इंटरनेट पर मिलने वाली हर चीज का एक्सेस मिल जाना उनके मानसिक विकास के लिए भी सही नहीं है.
ब्लू व्हेल गेम जैसी घटनाओं से बचाने के लिए इस बात का ध्यान देना चाहिए कि बच्चे किसी भी रिस्क टेकिंग बिहेवियर से ना जुड़े जैसे एल्कोहल, जुआ या और कोई एडिक्शन. क्योंकि इस तरह के गेम्स से बच्चों को किसी भी चीज की लत लगते देर नहीं लगती है, इससे उनके दिमाग में ऐसी चीजों को लेकर एडिक्शन फैक्टर आ जाता है.
डॉ अमरजीत सिंह
डॉ. अमरजीत सिंह का कहना है कि बच्चों में आ रही परेशानियों का सबसे बड़ा कारण है कि पैरेंट्स अपने बच्चों को एक क्वॉलिटी टाईम नहीं दे रहे हैं जिसकी वजह से बच्चों में गलत आदतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. पैरेंट्स अपने काम में इतने बिजी हो गए हैं कि वो बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाईल फोन या लैपटाप पकड़ा देते हैं जिससे बच्चों को कुछ भी करने की आजादी मिल जाती है.
बच्चों को ऐसी घटनाओं से बचाने के लिए सबसे पहले उनके साथ क्वॉलिटी टाईम बिताएं और उनसे दोस्ती करके उनके मन की बात जानें. छोटे बच्चों को गैजेट्स न दें और अगर दे रहे हैं तो उन पर नजर रखें कि वो इंटरनेट पर क्या कर रहे हैं, साथ ही फोन या जो वेबसाइट बच्चों के लिए सही नहीं है उन पर चाइल्ड लॉक लगाए.
डॉ. अमरजीत कहते हैं कि ज्यादातर ऐसे मामलों में बच्चों में साइकॉलिजिकल प्रॉब्लम्स होती है जिससे वो गलत आदतों की लत में पड़ जाते हैं. 9-12 साल की उम्र एक ऐसी उम्र है जिसमें बच्चों को करियर गाइडेंस की जरूरत होती है इसलिए उनको फोन या कंप्यूटर देने की जगह उन्हें सही राह दिखाई जानी चाहिए. अगर बच्चा आपकी बातें नहीं मानता या गलत आदतों में पड़ गया है तो तुरंत उसे डॉक्टर के पास लेकर जाएं.
डॉ आरती आनंद डॉक्टर आरती आनंद का कहना है कि पैरेंट्स को घर पर अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए और वो बच्चों के सामने खुद भी फोन का कम इस्तेमाल करें क्योंकि बच्चें आपने पैरेंट्स को फॉलो करते हैं. बच्चों को 2 घंटे से ज्यादा वीडियो गेम मत खेलने दीजिए. पेरेंट्स को बच्चों को बाहर खेलने के लिए भेजना चाहिए, उन्हें आउटडोर गेम्स में भाग दिलाना चाहिए. वहीं जो बच्चे इन सब चीजों के ज्यादा एडिक्ट हो गए हैं और वो अपने पेरेंट्स की बात भी नहीं मानते तो उन्हें तुरंत काउंसलर के पास लेकर जाएं.
क्या 'ब्लू व्हेल गेम' की टास्क पूरा करने के लिए 14 साल के बच्चे ने की सुसाइड?