रहस्य और इतिहास की भूलभुलैया है गोलकोंडा किला, यह नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
यह किला जहां अपनी वास्तुकला और दिलचस्प इतिहास के लिए जाना जाता है. वहीं यह अपने में कई रहस्य भी समेटे हुए है.
राजा महाराजाओं का दौर बीते हुए जमाना हो चुका है लेकिन उनके द्वारा बनाए गए महल और किले आज भी पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. गोलकोंडा का किला हैदाराबाद के सबसे महशूर पर्यटन स्थलों में से एक है. यह किला जहां अपनी वास्तुकला और दिलचस्प इतिहास के लिए जाना जाता है वहीं यह अपने में कई रहस्य भी समेटे हुए है.
गोलकोंडा का यह किला हुसैन सागर झील से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसे बनाने की शुरुआत 13वीं शताब्दी में काकतिया राजवंश द्वारा की गई थी लेकिन यह पूरा हुआ 1600 के दशक में.
इस किले के निर्माण की शुरूआत कैसे हुई इसको लेकर एक कहानी मशहूर है. कहते हैं कि एक दिन एक चरवाहे लड़के को पहाड़ी पर एक मूर्ति मिली. तत्कालीन शासक काकतिया राजा को जब इस मूर्ति के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे पवित्र स्थान मानकर उसके चारों ओर मिट्टी का एक किला बनवा दिया. इसे ही आज गोलकोंडा का किले के नाम से जाना जाता है.
किले की खास बातें
- यह किला 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है
- किले में आठ दरवाजे और 87 गढ़ हैं
- किले का मुख्य द्वार ‘फतेह दरवाजा’13 फीट चौड़ा और 25 फीट लंबा है
- ‘फतेह दरवाजा’ को स्टील स्पाइक्स के साथ बनाया गया है जो इसे हाथियों से बचाते थे
- दरबार हॉल से इस किले का शानदार नजारा दिखता है
- दरबार हॉल का निर्माण पहाड़ी की चोटी पर किया गया है
- दरबार हॉल तक पहुंचने के लिए 1000 सीढ़ीयां चढ़नी पड़ती हैं
किले के रहस्य
- अगर किले के तल पर ताली बजाई जाए तो उसकी आवाज बाला हिस्सार गेट से गूंजते हुए पूरे किले में सुनाई देती है.
- ऐसा कहा जाता है यहां एक रहस्मय सुरंग है जिसका निर्माण आपातकालीन स्थिति में शाही परिवार के लोगों को सुरक्षित बाहर पहुंचाने के लिए किया गया था. हालांकि अब तक इस सुरंग का कुछ पता नहीं चल पाया है.
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