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Golden Temple: इस दिवाली जाएं गोल्डन टेंपल और खास ढंग से मनाएं त्योहार, पहले जान लें यहां के बारे में कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स
Diwali In Amritsar: इस दिवाली को मनाएं खास तरीके से और दर्शन करें स्वर्ण मंदिर के. यहां जाने से पहले जान लें गोल्डन टेंपल के बारे में कुछ खास बातें जो आपको इस ट्रिप पर जाने के लिए मोटिवेट करेंगी.
Know Some Facts About The Golden Temple: इस दिवाली कहीं घूमने जाने का प्लान है तो अमृतसर को एक ऑप्शन के रूप में रख सकते हैं. जब बात अमृतसर की हो तो गोल्डन टेंपल का नाम सबसे ऊपर आता है, जिसे अमृतसर का दिल भी कहते हैं. यहां की दिवाली खास होती है. अगर इस मौके पर आप स्वर्ण मंदिर के दर्शन करेंगे तो आपके कमाल की आतिशबाजी और जगमगाते नजारे देखने को मिलेंगे. मंदिर को इतनी खूबसूरती से सजाया जाता है कि यहां की सुंदरता और बढ़ जाती है. यहां के बारे में कुछ खास फैक्ट्स हैं जो इस जगह को और स्पेशल बनाते हैं. तो ट्रिप पर जाने से पहले जान लीजिए गोल्डन टेंपल से जुड़े कुछ फैक्ट्स.
गोल्डन टेंपल से जुड़ी कुछ खास बातें –
- गोल्डन टेंपल देश के सबसे ज्यादा विजिट किए जाने वाले पूज्य स्थलों में से एक है. ये देश का सबसे प्रचलित गुरुद्वारा है जिसे श्री हरमिंदर साहिब के नाम से भी जानते हैं.
- पुरातन कथाओं में ऐसा वर्णन मिलता है कि यहां भगवान बुद्ध ने एक बार मेडिटेशन किया था. तब यहां आसपास जंगल हुआ करते थे. यही नहीं भगवान बुद्ध ने इस जगह हो मेडिटेशन के लिए आइडियल भी बताया था.
- टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक इस मंदिर का केवल नाम ही गोल्डन टेंपल नहीं है बल्कि मंदिर को बनाने में सच में बहुत से गोल्ड का इस्तेमाल हुआ है. 90 के दशक में मंदिर के रेनोवेशन में करीब 500 किलो सोने की फॉइल का इस्तेमाल किया गया था.
- स्वर्ण मंदिर दुनिया में सबसे बड़ी लंगर सेवा का आयोजन करता है. हर दिन सैकड़ों हजारों भक्तों को लंगर परोसा जाता है. भोजन करने के लिए सभी एक साथ फर्श पर बैठते हैं. जो लोग मंदिर जाते हैं और लंगर के लिए बैठते हैं उन्हें समान माना जाता है.
- चाहे आप बच्चे हों या वृद्ध अगर आप करना चाहते हैं तो स्वर्ण मंदिर में स्वयंसेवा कर सकते हैं. मंदिर में स्वयंसेवा करने के लिए आपको सिख होने की जरूरत नहीं है. हालांकि यहां सिखों को अपने जीवन का एक हफ्ता अपनी इच्छा से समर्पित करने के लिए मोटिवेट किया जाता है.
- मंदिर सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला है. 1588 में, गुरु अर्जन देव ने सूफी संत मियां मीर को मंदिर की आधारशिला रखने के लिए आमंत्रित किया, जो दुनिया को यह बताने के लिए एक इशारा था कि मंदिर हर किसी को आने की अनुमति देगा, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या पंथ के हों.
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