उत्तराखंड विधानसभा में सामान्य नागरिक संहिता (यूसीसी) को पेश किया जा चुका है. इसमें ऐसा प्रावधान भी किया गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को भी अपना रिश्ता रजिस्टर्ड कराना होगा. इसके तहत लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान जन्मे बच्चे को वैध माना जाएगा. हालांकि, धर्म परिवर्तन से संबंधित मामलों में लिव-इन वाले रिश्तों को रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा. एबीपी ने इस मामले में कई लोगों से बातचीत की. आइए जानते हैं कि इस मसले पर उनकी क्या राय है?


क्या बोले सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट?


इस संबंध में एबीपी ने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय से बातचीत की. उन्होंने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को सरकार कानून ला रही है तो इसमें कई फायदे छिपे हैं. इस तरह का कानून बनने से युवतियों के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी आने की उम्मीद बढ़ेगी. एक-दूसरे का फायदा उठाने के मकसद से बनने वाले रिश्तों में भी गिरावट आएगी. हालांकि, कानून के दायरे में बने रिश्ते मजबूत होंगे. एक तरह से यह रिश्ता बिन फेरे शादी जैसा रहेगा, क्योंकि ब्रेकअप होने पर भी आपको जानकारी देने का प्रावधान रहेगा.


प्रावधान के खिलाफ हैं कई कपल


जब इस मसले को लेकर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों से बात की गई तो उन्होंने साफ-साफ कहा कि कानूनी तौर पर इसकी जरूरत नहीं थी. इस कानून के तहत रजिस्ट्रेशन कराने और कागजी कार्रवाई करने के लिए बार-बार रजिस्ट्रेशन ऑफिस जाना होगा. अगर कोई कपल महज चंद महीनों के लिए साथ है तो उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा. पहले रिश्ते का रजिस्ट्रेशन कराना होगा और ब्रेकअप होने के बाद उसकी जानकारी भी देनी होगी, जिससे उन्हें परेशानी बढ़ने की आशंका है. वहीं, ऐसे लोग तो बुरी तरह डरे हुए हैं, जो अपने पैरेंट्स से छिपकर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. 


पैरेंट्स ने यूं जताई खुशी


उत्तराखंड विधानसभा में पेश हुए बिल के इस प्रावधान से कई माता-पिता बेहद खुश हैं. उनका मानना है कि यह कानून पूरे देश में लागू होना चाहिए. वे कहते हैं कि एक मामले में अदालत ने लिव-इन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत सुरक्षा दी थी. वहीं, कई बार लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही लड़कियां प्रेग्नेंट हो जाती हैं. ऐसे में उन बच्चों का भविष्य खतरे में नहीं पड़ेगा. अगर लिव-इन में रहने वाला कोई शख्स अपनी पार्टनर को छोड़ देता है तो महिला मुआवजे की भी मांग कर सकती है. 


लिव-इन रिलेशनशिप के लिए ये हैं शर्तें



  • एक विवाहित व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकेगा.

  • लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से पहले पंजीकरण कर्मचारी आवेदक की जांच करेगा.

  • रजिस्ट्रेशन से पहले पंजीकरण कर्मचारी को लिव-इन जोड़ों को बुलाने या पूछताछ करने का अधिकार होगा.

  • लिन-इन पंजीकरण प्रक्रिया 30 दिन में पूरी होगी.

  • लिन-इन समाप्ति की सूचना देना अनिवार्य होगा.

  • लिव-इन में रहने वालों की जानकारी पुलिस स्टेशन को भी दी जाएगी.

  • अगर एक महीने के भीतर लिव-इन पंजीकरण नहीं होता है तो तीन महीने की कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना लग सकता है.

  • लिव-इन के बारे में गलत जानकारी देने पर तीन महीने की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.


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