नई दिल्ली: कहा जाता है जब तक दुनिया में प्यार जिन्दा रहेगा लैला-मजनूं, रोमियो-जूलियट और शीरीं-फरहाद जैसे नाम अपनी प्रेम कहानियों के चलते एक मिसाल के तौर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे. ये नाम प्यार में कभी एक तो नहीं हुए मगर ये वो नाम हैं जो इश्क-व-जुनून में मर मिटने वाले रूमानियत के फरिश्तों की तरह हमेशा याद किए जाएंगे.
आखिर मोहब्बत के ज़िक्र के वक्त इनका नाम इतने अदब के साथ क्यों लिया जाता है? इसके पीछे भी प्यार की ऐसी दर्द भरी दास्तानें हैं जिसे जानना हर प्यार करने वालों को ज़रूरी है.
लैला-मजनू
बात 7वीं सदी की है जब अरब के रेगिस्तानों में अमीरों का बसेरा हुआ करता था. उन्हीं अमीरों में अरबपति शाह आमरी के बेटे क़ैस इब्न आमरी जिसे लोग क़ैस 'मजनूं' भी कहते थे. उसी क़ैस को एक लड़की से मोहब्बत हो गई. उस लड़की का नाम लैला था. इस प्रेम कहानी के बारे में बताने वाले कई लोगों ने इसका ज़िक्र किया है कि लैला एक सियाहफाम यानी एक काली लड़की थी. जिस पर एक गोरे नौजवान क़ैस का दिल आ गया था.
मशूहर सूफी कवि बुल्लेशाह लिख गए हैं कि एक बार जब लोगों ने क़ैस से पूछा कि ऐ मजनूं तुमने इस लड़की में क्या देखकर मोहब्बत की? यह लड़की काली है और तुम गोरे! तब क़ैस यानी मजनूं ने यह कर जवाब दिया कि क़ुरान शरीफ के हर हर्फ काले रंग के अक्षर में ही लिखे गए हैं... और जहां आशिक का दिल आता है वहां काले और गोरे का अंतर नहीं रह जाता है.
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लैला भी क़ैस के प्यार में गिरफ्तार थी. मगर लैला के घर वालों को क़ैस यानी मजनूं के साथ यूं इश्क़ फरमाना नागवार गुजरा. इसके बाद उन्होंने लैला की शादी बख्त नाम के शख्स से कर दी. मगर वो इश्क़ ही क्या जिसमें बग़ावत न हो! लैला ने अपने शौहर से साफ-साफ कह दिया कि वो क़ैस के अलावा किसी और की नहीं हो सकती. वह बीमार रहने लगी. इतनी बीमार की वह मौत के कगार पर पहुंच गई.
लैला की ऐसी हालत सुन कर मजनूं उससे मिलने अरब के तपते रेगिस्तानों में गिरता-भागता गर्म धूल की थपेड़ों में मारा-मारा फिरता जब लैला के करीब पहुंचा, तब लोग उसकी हालत देख कर उसे पत्थर मार कर भगाने लगे.
ऐसा कहते हैं कि दोनों के प्यार में इतनी शिद्दत और ताक़त थी कि तकलीफ एक को होती तो दर्द दूसरे को होता. जब लोग मजनूं को भगाने के लिए पत्थर मारते तब मजनूं के जिस्म पर फेंका गया हर एक पत्थर लैला को जख्मी कर जाता था. मजनूं से न मिलने के गम में लैला की मौत हो जाती है. कहते हैं लैला की मौत के तुरंत बाद मजनूं की भी सांसें हमेशा के लिए थम जाती है.
रोमियो-जूलियट
प्यार, मोहब्बत और त्याग की रोशनाई में शेक्सपियर ने लिखा था रोमियो और जूलियट पर नाटक. ऐसी ट्रैजिक लव स्टोरी जिसकी हैप्पी एंडिंग शेक्सपियर ने अपने नाटक में नहीं की थी. रोमियो और जूलियट की कहानी इटली के वेरोना की है. रोमियो और जूलियट के परिवारों में खानदानी दुश्मनी थी लेकिन खानदानी रंजिश से अनजान रोमियो और जूलियट एक दूसरे को दिल दे बैठे. कहा जाता है कि दोनों ने परिवारों को बताए बिना शादी भी कर ली थी. सुहाग रात से पहले रोमियो के हाथों से जूलियट के भाई की हत्या हो जाती है. रोमियो को शहर छोड़ना पड़ता है.
उधर जूलियट पर उसके परिवार वाले दूसरे लड़के पेरिस से शादी के लिए दबाव डालते हैं. परिवार को धोखा देने के लिए जूलियट नींद की दवा खा लेती है. परिवार वाले मरा समझ लेते हैं. लेकिन रोमियो, जूलियट के प्लान से बेखबर था. रोमियो जब उसके पास लौटा तो उसे मरा हुआ समझ लिया. जूलियट के बिना रोमियो टूट चुका था. उससे रहा नहीं गया. उसने सोचा कि जूलियट के बिना क्या जीना. वो भी वहीं जाएगा जहां जूलियट गई है. रोमियो ने अपनी भी जान दे दी.
जब तक जूलियट की नींद टूटती तब तक बहुत देर भी हो चुकी थी. रोमियो को मरा देखकर जूलियट ने भी वही सोचा कि बिना रोमियो वो जीकर क्या करेगी. एक दूसरे के दीवाने जूलियट और रोमियो एक दूसरे से बिछड़ने के गम में बारी-बारी मौत को गले लगा लेते हैं. सिर्फ इस आस में साथ जी नहीं पाए तो क्या हुआ साथ मर तो सकते हैं.
शीरीं-फरहाद
अर्मेनिया के बादशाह की बेटी शीरीं की खूबसूरती पर पर्शिया के बादशाह खुसरो का दिल आ गया था. खुसरो ने शीरीं से शादी करने की मंशा ज़ाहिर की. शीरीं ने शादी के लिए एक शर्त रखी कि वह पर्शिया के लोगों और उसके लिए दूध का दरिया (नहर) लाकर दे दे.
शीरीं की शर्त को खुसरो ने स्वीकार ली इसके बाद शीरीं और खुसरो की शादी हो गई. शर्त के मुताबिक, खुसरो को पर्शिया के लोगों के लिए नहर खुदवानी थी. खुसरो ने नहर खोदने का काम शुरू करवाया. इस नहर को खोदने का काम उस शख्स को दिया गया जिसका नाम फरहाद था. खुसरो ने फरहाद को बुलावा भेजा और शीरीं से मुलाकात करवाई ताकि शीरीं की देख-रेख में फरहाद नहर की खुदाई ठीक तरह से कर सके. मगर शीरीं की खूबसूरत देखते ही फरहाद उसे अपना दिल दे बैठा. फरहाद शीरीं के साथ इश्क-ए-हकीकी कर बैठा था और वह शीरीं के प्यार में इस क़दर पड़ गया था कि वह उसे अपना पीर मानने लगा.
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फरहाद शीरीं की रट लगाने के साथ नहर को खोदने लगा. एक दिन जब शीरीं, फरहाद के रू-ब-रू हुई तो फरहाद ने उसके कदमों पर झुक कर अपने प्यार का इजहार किया. फरहाद का ऐसा करना शीरीं को अच्छा नहीं लगा और शीरीं ने उसे झिड़क दिया. फरहाद ने शीरीं का नाम लेकर पूरी नहर खोद डाली.
जब खुसरो को फरहाद के इस इश्किया जुनून के बारे में पता चला तो उसने अपना आपा खो दिया. फरहाद को जान से मारने के लिए खुसरो ने योजना बनाई. खुसरो के वजीर ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और वजरी ने खुसरो के माध्यम से एक ऐसे नामुमकिन काम को पूरा करने की शर्त फरहाद को दी, जिसे पूरा करने के बाद वह शीरीं को अपना बना पाएगा. शर्त यह थी कि फरहाद को पहाड़ियों के आर-पार सड़क बनानी होगी. वजीर जानता था कि फरहाद यह नहीं कर पाएगा. दीवाने फरहाद ने यह शर्त कबूल कर ली और सड़क बनाते-बनाते उसने खाना-पीना छोड़ दिया और दिन रास शीरीं की रट लगाता सड़क बनाने का काम पूरा करने लगा.
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मोहब्बत के इस पुजारी के ऊपर आखिर में शीरीं का दिल पसीज गया और वह भी फरहाद को चहाने लगी. फरहाद के इश्क़-व-जुनून ने सड़क बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया था. जिसे देख खुसरो घबरा गया और फरहाद को झूठी खबर पहुंचा दी कि शीरीं ने खुदकुशी कर ली है. जिसे सुन कर फरहाद दीवारों पर सिर पटक-पटक अपनी जान दे दी. जब शीरीं को फरहाद की मौत और खुसरो के इस धोखे के बारे में पता चला तो उसने भी फरहाद के कदमों में अपनी जान दे दी.
रूमानियत, मोहब्बत, इश्क-ए-मिजाजी से होते हुए इश्क-ए-हकीकी तक का सफर करने वाले ये सभी किसी के प्रति प्यार की ऐसी परिभाषाएं देकर गए, जिसके अलग-अलग मायने होते हैं. किसी प्यार करने वाले को किसी इंसान के अंदर खुदा नजर आने लगता है तो कोई इंसान खुदा को ही अपना प्यार समझता है.