(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
वेलेंटाइन डे स्पेशल: 'पुरुष की कामुकता आग की तरह है तो स्त्री की पानी...', महर्षि वात्सायन और संत वेलेंटाइन में क्या फर्क है?
पूरी दुनिया में जब प्रणय संबंधों पर खुलकर बातचीत करना मना था तो उससे सैकड़ों साल पहले भारत में कामसूत्र जैसे ग्रंथ की रचना हो चुकी थी.
आधुनिकता का लबादा ओढ़े यूरोप में जिस समय इश्क का नाम लेने पर लोगों को सूली पर चढ़ा दिया जाता था, उससे हजारों साल पहले ही भारत में महर्षि वात्सायन कामसूत्र की रचना कर चुके थे. वो स्त्री-पुरुष की कामुकता पर एक पूरा ग्रंथ रचते हैं. वेलेंटाइन डे पर जारी बहस के बीच इस बात को समझना भी जरूरी है कि भारत में सैकड़ों साल पहले से ही प्रेम संबंधों पर खुलकर बात होती रही है.
वात्सायन अपने ग्रंथ कामसूत्र में लिखते हैं कि पुरुष और स्त्री की कामुकता में बहुत अंतर होता है. पुरुष एक आग की तरह होता है जो जितनी जल्दी जलता उतनी ही तेजी से बुझ भी जाता है. वहीं स्त्री की कामुकता पानी की तरह होती है जो धीरे-धीरे लहर के समान उठती है और उतना ही समय शांत होने में लेती है.
स्त्री-पुरुष के बीच शारीरिक संबंधों में गड़बड़ी इसी अंतर को समझ न पाने की वजह से भी होती है और इस अंतर को ही मिटाने के लिए आज के डॉक्टर 'फोर प्ले' की सलाह देते हैं. जिसे महर्षि वात्सायन दूसरी या तीसरी सदी में ही अपनी किताब कामसूत्र में 'स्पर्शों' के जरिए समझाते हैं.
इतना ही नहीं कामसूत्र में वात्सायन लिखते हैं कि स्त्री-पुरुष के बीच झगड़ा होना जरूरी है. हर स्त्री को नखरे दिखाने, गुस्से में अपने गहने तक तोड़ सकती है, वहीं पुरुष उसके पैरों में सिर रखकर मनाए. लेकिन ये सब घर के अंदर तक ही सीमित हो.
वात्सायन के कई सदियों बाद प्रेम की भाषा को खजुराहो और अजंता-एलोरा की गुफाओं में स्त्री-पुरुष के शारीरिक संबंधों के साथ उकेर कर कई मूर्तियां बनाई गईं. जिनको देखकर विदेशी आज तक हैरान हो रहे हैं. लेकिन भारत में अब 'प्रेम की भावना' कई तरह की मानसिकता और सामाजिक मनोविज्ञान के जंजीरों में जकड़ गई है.
21वीं सदी है. दुनिया अब प्यार के इजहार करने के लिए 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाती है. खास बात ये है कि यूरोप के इतिहास में वेलेंटाइन को भी संत का दर्जा मिला हुआ है. हालांकि महर्षि वात्सायन और यूरोप के संत वेलेंटाइन के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं है. लेकिन इस दिन को अगर भारत के नजरिए से देखें तो कई तरह के विरोधाभास देखने को मिलते हैं.
( मध्य प्रदेश के खजुराहो की तस्वीर)
कौन थे संत वेलेंटाइन
270 ईसवी में रोम में प्यार और शादी के खिलाफ एक शाही फरमान था. राजा क्लाउडियस को लगता है कि प्यार और शादी के चक्कर में उसके महान साम्राज्य के सैनिकों का ध्यान भंग होता है और ये उनकी सेना को कमजोर कर देगा. राजा ने सैनिकों की शादी करने पर रोक लगा दी. लेकिन क्लाउडियस के राज्य में ही संत वेलेंटाइन बिलकुल अलग राय रखते थे और इस शाही फरमान के खिलाफ प्रचार करने लगे. उन्होंने घूम-घूम कर कई शादियां कराईं जिसे राजा का सीधा विरोध समझा गया. जिस क्लाउडियस ने इश्क की शमा को हमेशा के लिए बुझाने का ऐलान कर रखा था उसको जलाए रखने के लिए एक संत ने बगावत की मशाल थाम रखी थी. किंग आगबबूला हो गया. शाही फरमान निकल चुका था...संत वेलेंटाइन को फांसी पर चढ़ा दिया जाए.
जिस संत ने कई घर बसाए उसके सांसों की डोर थमा दी गई. संत वेलेंटाइन का शव फांसी पर लटका था. लोगों की आंखों में आंसू थे. संत के प्राण जा चुके थे..मोहब्बत का पैगाम पूरी दुनिया में फैलता चला गया. मोहब्बत अब एक तारीख थी...14 फरवरी.
महर्षि वात्सायन और संत वेलेंटाइन के जीवन के बीच सैकड़ों साल का फर्क है. वात्सायन ने कामसूत्र के जरिए जहां मानवीय कामुकता के अहसासों को चरम तक पहुंचाने का रास्ता बताया तो संत वेलेंटाइन की मौत ने प्रेमी-प्रेमिकाओं को प्रेम संबंध और भावनाओं को व्यक्त करने की तारीख दी.
वेलेंटाइन डे और भारत
इसे विडंबना ही कहा जाए कि जिस देश में स्त्री-पुरुष के स्पर्शों और शारीरिक सुखों को लेकर खुलकर हजारों सालों से बातचीत होती रही है. वहां पर अब वेलेंटाइन डे संस्कृति पर खतरा बताया जाता है.
ये कहना भी गलत नहीं होगा भारत में वेलेंटाइन डे को बढ़ावा देने में बाजार का बड़ा हाथ रहा है. इस दिन बाजारों में जिस तरह तमाम तरह के गिफ्ट आइटमों से दुकानें सजती हैं और इसको लेकर मार्केटिंग की जाती है और जो आक्रामक रणनीति अपनाई जाती है. चकाचौंध के बीच प्रेमी-प्रेमिकाओं के बीच भावनाओं की जगह भौतिकता ज्यादा दिखाई देती है.
भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों में इस दिन को पाश्चत्य यानी पश्चिमी संस्कृति का नतीजा बताया जाता है और इसको लेकर कई संगठनों का विरोध भी देखा गया है. कुछ जगहों पर तो मारपीट की भी घटनाएं सामने आती रही हैं.
भारत में इस दिन को सिर्फ 'गर्लफ्रेंड और ब्वॉयफ्रेंड' के नजरिए से देखा जाता है और इसको लेकर एक निगेटिव छवि भी बनती है. हालांकि इसको बड़े कैनवास से देखें तो संत वेलेंटाइन डे ने स्त्री-पुरुषों के बीच न सिर्फ प्यार पनपाने की, शादी तक की वकालत की है. भारतीय परिवारों में इस दिन को रोमांटिक संबंधों के नजरिए से देखा जाता है, यूरोप में ये किसी भी तरह के आपसी संबंधों को तरोताजा बनाए जाने के मौके पर देखा जाता है.
वेलेंटाइन डे और बाजार
दुनिया के बाकी देशों की तरह ही बाजारवाद ने वेलेंटाइन डे को भारत में काफी लोकप्रिय बनाया है. वेलेंटाइन डे से पहले टीवी, रेडियो तमाम मीडिया संसाधनों में कई ऐसे प्रोडक्टों के विज्ञापनों की बाढ़ सी आती है जो इस दिन को स्पेशल बनाने का दावा करते हैं. प्रचार की रणनीति इतनी आक्रमक होती है कि लोग इससे प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाते. अर्थशास्त्र की भाषा में इसे 'उपभोक्तावाद' की संज्ञा दी जाती है. यहां तक की कई होटल और रेस्त्रां में तो लंच, डिनर तक में भी भारी छूट और स्पेशल ऑफर दिए जाते हैं ताकि लोग अपने पार्टनर के साथ वहां पर आएं.
एक आंकड़े में तो यहां तक दावा किया गया है कि साल 2021 में भारत में वेलेंटाइन डे को लेकर ही करीब 7 हजार करोड़ का व्यापार का हुआ. इसको लेकर बाजार साल दर साल बढ़ता जा रहा है.