डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें निरंतर देखभाल और मॉनिटरिंग की जरूरत होती है. डायबिटीज के प्रकार को तय करनेवाली कई वजहें ब्लड में शुगर लेवल बढ़ाना शुरू कर देती हैं. सामूहिक रूप से इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है. ब्लड में हाई शुगर लेवल दिल, किडनी और अन्य जरूरी अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है.


इसलिए डाइट और दवा से स्थिति को नियंत्रण करने की जरूरत होती है. लेकिन, डायबिटीज के मरीजों को कम ब्लड शुगर या हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा ज्यादा हो सकता है. ये उस वक्त होता है जब ब्लड शुगर लेवल नीचे गिरने लगता है. इससे थकान, नींद, बेहोशी और मौत भी हो सकती है. इसलिए, जरूरी है कि आप अपने ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखें.


ब्लड शुगर कम कब समझा जाता है?
कम ब्लड शुगर को 70 mg/dl से कम ब्लड ग्लूकोज लेवल के तौर पर निर्धारित किया जाता है. कम ब्लड ग्लूकोज के लक्षणों में चक्कर, भ्रम, कंपन, घबराहट और भूख शामिल है. कई रिसर्च से पता चला है कि डायबिटीज के 2-4 फीसद मरीजों की मौत हाइपोग्लाइसीमिया से होती है. टापइ 1 डायबिटीज के मरीज, इंसुलिन पर निर्भर, बुजुर्ग मरीजों को कम शुगर या हाइपोग्लाइसीमिया का ज्यादा खतरा होता है.


हाइपोग्लाइसीमिया का कैसे हो प्रबंधन?
अगर डायबिटीज के मरीजों को ऊपर बताए गए लक्षणों का सामना होता है, तो उन्हें फौरन अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल की जांच करानी चाहिए. अगर ब्लड ग्लूकोज लेवल 70 mg/dl से कम है, तो कार्बोहाइड्रेट्स का सेवन मरीज को करना चाहिए. शुद्ध ग्लूकोज का इस्तेमाल पसंदीदा इलाज का तरीका है. लेकिन कार्बोहाइड्रेट्स युक्त ग्लूकोज के वाली किसी से ब्लड ग्लूकोज बढ़ जाएगा. मरीज के बेहोश होने की सूरत में, उन्हें फौरन पास के अस्पताल जाना चाहिए.


हाइपोग्लाइसीमिया की रोकथाम कैसे करें?
फोर्टिस अस्पताल नोएडा में कंसलटेन्ट डॉक्टर अनुपम बिस्वास का कहना है कि हाइपोग्लाइसीमिया की रोकथाम डायबिटीज प्रबंधन का बुनियादी हिस्सा है. मरीजों को उस स्थिति के बारे में समझना चाहिए जिससे कम ब्लड शुगर होने का खतरा बढ़ता है.


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