वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने अपने बजट भाषण के दौरान 'व्हाइट पेपर' लाने की घोषण की थी. साथ ही उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा था कि साल 2014 से पहले भारत की अर्थव्यवस्था क्या थी और फिर संकट से निकालने के लिए बीजेपी सरकार ने किस तरह से मेहनत की है. इस बात को भी सबके सामने रखेंगे. कांग्रेस के 'कुप्रबंधन' को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने 1 फरवरी को कहा था कि सरकार सदन में 'श्वेत पत्र' रखेंगी. वहीं संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार जल्द ही 'श्वेत पत्र' पेश कर सकती है.
क्या होता है व्हाइट पेपर?
व्हाइट पेपर (White Paper) यानि श्वेत पत्र एक तरह का सूचनात्मक रिपोर्ट होता है. जिसमें सरकार की नीतियों, उपलब्धियों और बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों की चर्चा की जाती है. सरकार जब श्वेत पत्र लाने की घोषणा करती है इसका साफ अर्थ है कि वह किसी मुद्दे पर चर्चा, कार्रवाई या सुझाव देने या किसी खास मामले पर निष्कर्ष के लिए श्वेत पत्र का इस्तेमाल करती है.
'व्हाइट पेपर' का इस्तेमाल सरकारें, संगठन या विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है. इसका साफ मकसद होता है डिसीजन-मेकिंग में मदद करना. अगर किसी समस्या का समाधान प्रस्तावित करना है या किसी सिफारिश पर कार्रवाई करना है तो सरकारें श्वेत पत्र पेश कर सकती है. श्वेत पत्र किसी भी सुधार, विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक संकेतकों का डीटेल्ड असेसमेंट होता है.
श्वेत पत्र की खासियतें
श्वेत पत्र में किसी विषय विशेष, मुद्दे, नीति की व्यापक और विस्तृत जानकारी होती है.
व्हाइट पेपर की टोन न्यूट्रल रहती है यानि उसमें पूर्वाग्रह नहीं बल्कि जानकारी और विश्लेषण दिया रहता है.
व्हाइट पेपर में गहन विश्लेषण और अनुसंधान के आधार पर नीति परिवर्तन, पहल और सुधार के साथ-साथ प्रस्ताव और सिफारिशें शामिल होती है.
श्वेत पत्रों में जो भी मुद्दों का विश्लेषण दिया जाता है वह तर्कों और सिफारिशों, सोर्स, निष्कर्षों और विशेषज्ञ के राय के आधार पर दिया जाता है.
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