CBI Case: केजरीवाल बोले- आलोक वर्मा की नियुक्ति पर SC का फैसला PM मोदी के लिए कलंक

CBI Vs CBI Case: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के अधिकार वापस लेने के केन्द्र के फैसले को रद्द कर दिया है. शीर्ष अदालत का यह फैसला मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा का कार्यकाल जनवरी के अंत तक है.

ABP News Bureau Last Updated: 08 Jan 2019 02:21 PM
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को कहा कि सीबीआई के दो वरिष्ठ अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने का सरकार का निर्णय केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की अनुशंसा पर लिया गया था.
राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, सीबीआई प्रमुख को देर रात एक बजे हटाया गया था क्योंकि वह राफेल घोटाले की जांच शुरू करने वाले थे.
सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि आलोक वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार को एक तमाचे जैसा है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''सुप्रीम कोर्ट द्वारा आलोक वर्मा को दोबारा नियुक्त किया जाना पीएम के लिए कलंक है. मोदी सरकार ने सभी संस्थानों और लोकतंत्र को तबाह कर दिया है. क्या सीबीआई डायरेक्टर को इसलिए हटाया गया था ताकि आलोक वर्मा को राफेल मामले में पीएम के खिलाफ जांच से रोका जा सके?''
आलोक वर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है. कांग्रेस ने कहा, ''आलोक वर्मा को गैरकानूनी ढ़ंग से सीबीआई डायरेक्टर पद से हटाया गया था. अब उनकी नियुक्ति हुई है. हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं.''
सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा अपने सरकारी आवास 2 जनपथ पर ही मौजूद हैं. कोर्ट के फैसले के बाद अब वर्मा सीबीआई मुख्यालय जा सकते हैं.
प्रशांत भूषण ने फैसले के बाद कहा, ''आलोक वर्मा को बहाल कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति समिति (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्षी दल के नेता और जस्टिस) एक सप्ताह के भीतर उनके नीतिगत कामों पर फैसला लें.''
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई में जारी लड़ाई पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चयन समिति तथ्यों के आधार पर विचार करे.
मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. अदालत ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला निरस्त कर दिया है. हालांकि वर्मा कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाएंगे. सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा का कार्यकाल जनवरी के अंत तक है.
आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के मसले पर जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला पढ़ना शुरू किया.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई छुट्टी पर हैं. कोर्ट 12 में जस्टिस संजय किशन कौल फैसला पढ़ेंगे. सीजेआई रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल ने सीबीआई संबंधी मामलों की सुनवाई की है.

सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है. सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. जिसके बाद सरकार ने 23 अक्टूबर को दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था. इस मसले को अलग-अलग याचिकाओं के जरिए कोर्ट में रखा गया है.

बैकग्राउंड

नई दिल्लीः सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला देगा. आज सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट में इस पर फैसला आ सकता है. कोर्ट ने वर्मा के ऊपर लगे आरोपों की सीवीसी से जांच तो करवाई, पर सुनवाई को सिर्फ इस सवाल तक सीमित रखा कि निदेशक को छुट्टी पर भेजने का सरकार का आदेश तकनीकी रूप से सही था या गलत. ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि कोर्ट के आदेश में सीवीसी रिपोर्ट की चर्चा होगी या नहीं.


क्या है मामला सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. जिसके बाद सरकार ने 23 अक्टूबर को दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था. इस मसले को अलग-अलग याचिकाओं के जरिए कोर्ट में रखा गया है.


वर्मा की दलील आलोक वर्मा की तरफ से वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने दलीलें रखीं. इसके अलावा उनके पक्ष में कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और राजीव धवन जैसे वकीलों ने भी जिरह की. सब का कहना था कि किसी भी स्थिति में सरकार सीबीआई निदेशक को उनके पद से अलग नहीं कर सकती. निदेशक का 2 साल का तय होता है. उन पर कार्रवाई से पहले निदेशक का चयन करने वाली समिति से मंजूरी ली जानी चाहिए थी.


सरकार का जवाब इसके जवाब में सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सीवीसी की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क रखे. उन्होंने कहा कि चयन समिति का काम सिर्फ सीबीआई निदेशक चुनना है. नियुक्ति सरकार करती है. इसलिए, इस तरह की कार्रवाई का सरकार को अधिकार है. सीबीआई के दोनों आला अधिकारियों का झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया था कि वो एक दूसरे के ऊपर छापा डलवाने लगे थे. एजेंसी की साख को बचाने के लिए दोनों को काम से अलग करना ज़रूरी था. दोनों को पद से ना तो हटाया गया है, न उनका ट्रांसफर किया गया है.


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कोर्ट के कड़े सवाल सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों से कड़े सवाल किए. कोर्ट ने सरकार से पूछा अधिकारियों का विवाद जुलाई से चल रहा था. ऐसे में अक्टूबर के अंत में अचानक सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर जाने को क्यों कहा गया? 3 महीने में एक बार भी चयन समिति से चर्चा क्यों नहीं नहीं की गई?


चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता पक्ष के वकीलों से पूछा, "क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सीबीआई निदेशक किसी भी हाल में छुआ नहीं जा सकता? चाहे कुछ भी हो, उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हो सकती? अगर ऐसा है तो संसद ने जो कानून बनाया है, उसमें खास तौर पर ऐसा क्यों नहीं लिखा है?"


सीवीसी रिपोर्ट को लेकर सस्पेंस गौरतलब है कि सीबीआई निदेशक का कार्यकाल जनवरी के अंत तक है. जानकारों का मानना है कि अगर कोर्ट सरकार के आदेश को तकनीकी रूप से सही मानता है तो निदेशक के ऊपर लगे आरोपों की सीवीसी जांच करता रहेगा. अगर सरकार के आदेश को कोर्ट गलत पाता है, तब भी सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में निदेशक के खिलाफ जिन गंभीर बातों का इशारा किया है, उनके मद्देनजर उन्हें पद पर बहाल कर पाना मुश्किल होगा.


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