14 Phere Review: फिल्मों में शादियों की थीम वाली कहानियों की सफलता की गारंटी दूसरे विषयों के मुकाबले अधिक मानी जाती है. रिकॉर्ड भी इसके पक्ष में है. निर्देशक देवांशु सिंह की डेब्यू फिल्म 14 फेरे भी इस धारणा को और पक्का करती है. बिहार का लड़का और राजस्थान की लड़की. दोनों जवान और खूबसूरत. दिल्ली के कॉलेज में मिलते हैं. प्यार होता है. पढ़ाई के बाद फटाफट एक ही मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग जाती है. नए जमाने के हिसाब से वे लिव-इन में रहने लगते हैं. मगर शादी कैसे होगी? दोनों ही जिन सूबों से आते हैं, वहां के रईस-बाहुबली-बिजनेसमैन अपनी पारंपरिक सोच और बंदूकों से आन-बान-शान बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में हीरो-हीरोइन की लड़ाई सिर्फ एक पक्ष से नहीं है. दोनों को दो पक्षों से जूझना पड़ेगा. लड़ना पड़ेगा. कुछ चोरी-छुपे करना पड़ेगा तो कुछ झूठ बोलने पड़ेंगे. लेखक-निर्देशक की जोड़ी ने इसी हिस्से में रोमांस के साथ कॉमेडी के लिए स्पेस बनाई और उससे सफलतापूर्वक दर्शकों को गुदगुदाया है.
जी5 पर रिलीज हुई पौने दो घंटे से कुछ अधिक की यह फिल्म पारंपरिक सिनेमा के दर्शकों के लिए है. परिवार और भारतीय संस्कारों के बीच यहां मॉडर्न जिंदगी की बुनावट भी है. ठाकुर परिवार के संजय लाल सिंह (विक्रांत मैसी) और जाट परिवार की अदिति (कृति खरबंदा) घर से दूर रह कर भी अपने-अपने पिता से खौफ खाते हैं. उनकी बात से बाहर नहीं जाते. इस तरह से दोनों संस्कारी हैं. दोनों जानते हैं कि उनके घर में लव मैरिज को मंजूरी नहीं मिलेगी.
संजय और अदिति अपने करिअर में सफल हैं और कंपनी का बॉस उन्हें अमेरिका भेजने के लिए राजी है, इसके बावजूद वे अपने-अपने पिता और भाई से डरते हैं. वे भागना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि ढूंढ कर गोली मारी जा सकती है. अतः वे रास्ता निकालते हैं कि ऐसा कुछ प्लान किया जाए, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. जहां चाह, वहां राह.
संजय-अदिति अपने लिए रंगमंच के कलाकारों के बीच किराए के माता-पिता (गौहर खान-जमील खान) खोज निकालते हैं. गौहर और जमील पहले संजय के माता-पिता बन कर जयपुर में अदिता के पिता और भाई को शादी के लिए मनाते हैं और उसके बाद जहानाबाद जाते हैं. वहां अदिता के माता-पिता बन कर वे संजय के परिवार को शादी के लिए राजी करते हैं. इस तरह संजय और अदिति अब दो शादियां करेंगे. 14 फेरे लेंगे. मगर क्या सचमुच बात बन गई है और आसानी से बिना हंगामे के फेरे भी हो जाएंगे?
14 फेरे दर्शक को एक के बाद एक दो शादियों के ताने-बाने में उलझाए रहती है और तेज गति से चलती है. फिल्म में कसावट है और निर्देशन भी अच्छा है. कहीं-कहीं आपको थोड़ा कनफ्यूजन हो सकता है लेकिन बात उलझती नहीं है. विक्रांत मैसी और कृति खबरंदा पूरी फिल्म अपने कंधों पर लेकर बढ़ते हैं. बीते एक-डेढ़ साल में विक्रांत ने ओटीटी पर अपनी खास पहचान बना ली है. वह लगातार काम करते हुए अपने प्रशंसकों की संख्या बढ़ाते आए हैं.
कारगो, डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे, गिन्नी वेड्स सन्नी, रामप्रसाद की तेहरवीं से लेकर हसीन दिलरुबा जैसी फिल्मों के साथ उन्हें क्रिमिनल जस्टिस्टस और मिर्जापुर में सराहा जा चुका है. जबकि गेस्ट इन लंदन, वीरे की वेडिंग, यमला पगला दीवानाः फिर से और पागलपंती जैसी फिल्मों के साथ कृति खरबंदा फैमेली एंटरटेनर फिल्मों के दर्शकों के बीच पहचान बनाने में कामयाब रही हैं. गौहर खान, जमील खान और विनीत कुमार भी 14 फेरे में अपने रंग में नजर आते हैं. उन्होंने अपनी-अपनी भूमिकाओं को खूबसूरती से निभाया है. फिल्म का गीत-संगीत और कैमरावर्क अच्छा है.
फिल्म शुरू से अंत तक शादी की बातों के ट्रेक पर ही चलती है. इधर-उधर नहीं होती. पारंपरिक परिवारों में लड़के-लड़कियों के दूसरी जाति या धर्म में शादी का विरोध यहां खुल कर उभरता है. संजय की बहन पहले ही प्रेम विवाह करके घर से भाग चुकी है तो अदिति के पिता को डर है कि उनकी छोटी बेटी स्वाति जयपुर से बहुत दूर कलकत्ता चली गई तो कहीं हाथ से न निकल जाए. दिल्ली तक गई बेटी अदिति की बागडोर तो उन्हें अपने हाथ में महसूस होती है क्योंकि दिल्ली से जयपुर खास दूर नहीं है.
फिल्म में संजय और अदिति की लव स्टोरी के बीच परिवार हाशिये पर नहीं है. वास्तव में परिवार के मुखियाओं के पास ही सबकी लगाम नजर आती है. परिवार के साथ नायक-नायिकाओं का जुड़ाव भी यहां खूब दिखता है. लंबे समय बात आपको ऐसा नायक मिलता है जो लगातार अपनी मां-बहन के लिए स्नेह रखते हुए, उनके प्रति चिंचित है. शादी के बाद उन्हें अकेले नहीं छोड़ देना चाहता. इस लिहाज से यह फिल्म आज के जमाने में प्रेम और परिवारों को साथ बनाए रखने की एक कोशिश भी है. जिसमें सबको थोड़ा-थोड़ा सामंजस्य बैठाना होगा.