Aranyak Review: डेब्यू सीरीज में छाप नहीं छोड़ पाईं रवीना टंडन, आरण्यक पर मंडराता है कैंडी का साया
Aranyak Review: वेब सीरीज कैंडी और नेटफ्लिक्स की आरण्यक में समानताएं साफ दिखती हैं. यह निराशाजनक है कि रवीना टंडन के लिए पॉकेट स्क्रीन का डेब्यू खास उम्मीदें नहीं जगाता.
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विनय वाइकुल
रवीना टंडन, परमब्रत चक्रवर्ती, आशुतोष राणा, जाकिर हुसैन, मेघना मलिक
Aranyak Review: नेटफ्लिक्स (Netflix) की क्रिएटिव टीम और निर्माता-निर्देशकों ने गूगल पर अरण्यक (Aranyak) का अर्थ खोज लिया होता तो उन्हें पता चल जाता है कि ऐसा कोई शब्द नहीं है. सही शब्द है, आरण्यक. आरण्यक हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ, वेद का हिस्सा हैं. आरण्यक का अर्थ होता है, जो अरण्य यानी वन से जुड़ा है. विदेशी प्लेटफॉर्म हिंदी के दर्शक तो चाहता है लेकिन उसे हिंदी की कतई परवाह नहीं है. साफ है कि यह ओटीटी हिंदी के दर्शकों के लिए कितना संजीदा है. दूसरी समस्या कंटेंट की है. बीते सितंबर में ही डिज्नी हॉटस्टार पर वेबसीरीज (Disney Hotstar Web Series) आई थी, कैंडी (Candy). आरण्यक (Aranyak) की पूरी कहानी पर डिज्नी की वेब सीरीज की छाया मंडराती रहती है. साफ है कि ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर अच्छे आइडियों का अकाल है और एक-दूसरे के यहां सेंधमारी जारी है. ओटीटी प्लेटफॉर्मों का एक पक्ष यह भी है कि इन्होंने घर बैठ चुके हीरो-हीरोइनों का भला किया है और उन्हें काम मिलने लगा है. लेकिन दर्शक उन्हें देखने के इच्छुक हैं, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
फ्लॉप है रवीना टंडन का ओटीटी डेब्यू
आरण्यक से रवीना टंडन ने अपना ओटीटी डेब्यू किया है और वह निराश करती हैं. पूरी कहानी में वह सिरोना नाम के एक काल्पनिक पुलिस थाने की मुख्य अधिकारी बनी हैं, जिसका नाम है कस्तूरी डोगरा. वह साल भर की छुट्टी लेने वाली हैं. कस्तूरी की जगह लेने के लिए अंगद मलिक (परमब्रत चक्रवर्ती) की एंट्री होती है. तभी इलाके में एक विदेशी लड़की की हत्या हो जाती है. उसकी लाश जंगल में पेड़ पर टंगी मिलती है. हत्या से पहले उसका रेप हुआ था.
अचानक इलाके में बात चल पड़ती है कि 19 साल बाद नर-तेंदुआ वापस आ गया है. पहले भी वह यही करता था. लड़कियों का रेप और हत्याएं. नर-तेंदुआ मिथक है या सचाई. करीब 40 से 45 मिनट की आठ कड़ियों में आरण्यक दो सवालों के जवाब ढूंढती है. पहला, विदेशी लड़की हत्या किसने की और क्यों की. दूसरा, नर-तेंदुए की हकीकत क्या है.
एपिसोड में हैं गड़बड़ियां
आरण्यक की गड़बड़ियां पहले ही एपिसोड से नजर आने लगती हैं. माहौल पहाड़ी हैं और इसके किरदारों की बोली में हरियाणवी टच है. उधर, कस्तूरी गैस पर खाना पका रही है और उसकी बेटी यह कहते हुए घर से बाहर जाती है कि वह लकड़ी लेकर वापस लौटेगी. कस्तूरी बताती है कि उसका अपने ससुर, पूर्व पुलिस अधिकारी महादेव डोगरा (आशुतोष राणा) से रिश्ता गुरु-शिष्य वाला है, लेकिन इस रिश्ते की शिद्दत किसी दृश्य में स्थापित नहीं होती.
ऐसी तमाम खामियां यहां है, जिससे पता चलता है कि निर्माता रमेश सिप्पी-सिद्धार्थ रॉय कपूर और नेटफ्लिक्स की टीम ने सही रिसर्च नहीं किया. कहानी को एपिसोड दर एपिसोड जबर्दस्ती खींचा जाता है. एक के बाद एक किरदार आते हैं, जो अपनी-अपनी दुनिया में रमे हैं. आरण्यक के सभी किरदार गढ़े हुए लगते हैं. एक भी सहज नहीं दिखता. सभी हाइपर हैं. वे सामान्य नहीं हैं. उनका एक-दूसरे के कनेक्ट भी सहज नहीं दिखता.
कमजोर कहानी
कहानी के तमाम किरदारों के सिरे लेखकों ने कृत्रिम प्रयासों से जोड़े हैं. राजनेता बने जाकिर हुसैन और मेघना मलिक की प्रतिद्वंद्विता की बात हो या फिर कस्तूरी और अंगद का आमने-सामने होना, हर बार यही लगता है कि घटनाओं को जोड़-घटा कर बैठाया गया है.
सीरीज में ड्रग्स और सेक्स की बात लगातार सामने आती है और नर-तेंदुए का मिथक नकली साबित होगा, यह आप कहानी शुरू होते ही समझ हैं. हर किरदार पर रेप और हत्या शक करने की ट्रिक भी कहानी को आगे बढ़ाने के लिए आजमाई गई है. लेकिन इसमें निरंतर प्रवाह नहीं है. एक किरदार शक के दायरे में आता है और फिर बरी हो जाता है. इसके बाद दूसरे की बारी आती है. इस तरह कहानी क्रमशः ढीली हो जाती है. आरण्यक का क्लाइमेक्स बेहद निराशाजनक है.
बेअसर किरदार
रवीना टंडन से लेकर कोई भी ऐक्टर यहां असर नहीं छोड़ता. रवीना पुलिस अधिकारी बनने के बावजूद अपनी लिपस्टिक पर अधिक ध्यान देती नजर आती हैं. सच तो यह है कि रवीना के अभिनय की एक सीमा है और इसके दायरे में फिल्म में काम तो चल सकता है परंतु कंटेंट की मांग करने वाले ओटीटी पर नहीं. ऐसे में रवीना के लिए यहां भविष्य बहुत उज्ज्वल नजर नहीं आता.
परमब्रत चक्रवर्ती अच्छे अभिनेता है मगर यहां उनके हिस्से कुछ खास नहीं आया है. इसी तरह आशुतोष राणा, जाकिर हुसैन और मेघना मलिक जैसे अभिनेताओं की प्रतिभा को सीरीज में निर्देशक ने बेकार किया है. ये सभी सिर्फ कहानी के एक्स्ट्रा की तरह नजर आते हैं. निर्देशक ने इन्हें एक-एक ट्रेक देकर छुट्टी पा ली है. मजे की बात यह है कि सभी किरदारों के चेहरे पर आपको शुरू से अंत तक एक ही भाव नजर आता है. चाहे कहानी किसी भी मोड़ पर हो.
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