मिडिल क्लास के सुख भी सार्वजनिक होते हैं और दुख भी सार्वजनिक होते हैं. इन्हीं सुख-दुख और आशा-निराशा की कहानी कहती वेब सीरीज गुल्लक का तीसरा सीजन ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर रिलीज हो गया है. मिश्रा दंपति और उनके दो जवान होते बेटों की जिंदगी की इस कहानी में 2019 और 2021 की तरह इस बार भी पांच एपिसोड हैं. जो अलग-अलग घटनाओं को सामने लेकर आते हैं. गुल्लक का यह सीजन अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप गुदगुदाता और रुलाता है. इसके किस्से, इसके संवाद, अभिनेताओं की अदाकारी और निर्देशक की पकड़ गुल्लक सीजन 3 को अवश्य देखे जाने वाले कंटेंट की श्रेणी में रखते हैं.


एक छोटे शहर के बिजली विभाग में काम करने वाले संतोष मिश्रा (जमील खान) की जिंदगी पुराने ढर्रे पर चल रही है और उन्होंने ईमानदारी का साथ छोड़ा नहीं है. पत्नी शांति मिश्रा (गीतांजलि कुलकर्णी) हमेशा की तरह थोड़ा है थोड़े की जरूरत है वाले अंदाज में मौजूद हैं. जबकि बड़ा बेटा अनु (वैभव राज गुप्ता) एमआर टाइप नौकरी करते हुए कुछ अपने सपनों को पूरा करने के ख्वाब देखता है तो कुछ घर का सहारा बनने की भी कोशिश करता है. छोटा वाला अमन (हर्ष मायर) दसवीं में स्कूल के टॉप थ्री में आने के बाद असमंजस में है आगे क्या पढ़ाई करे.




यहां पांच एपिसोड में मिश्रा परिवार की जिंदगी की पांच अलग-अलग तस्वीरें दिखता है. एक तरह से यह उनकी जिंदगी के ऐसे अध्याय हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से भी देखा जाए तो एंटरटेन करते हैं. दिल को छूते हैं। पहले एपिसोड, मिशन एडमिशन में जहां अमन की स्कूल की मोटी फीस और अनु के महंगे जूते खरीदने के सपने का द्वंद्व है तो दूसरे एपिसोड, एलटीए में संतोष मिश्रा एक रात परिवार को बाहर डिनर पर ले जाने का प्रोग्राम बना लेते हैं, लेकिन जब मिडिल क्लास की जिंदगी सार्वजनिक हो तो पड़ोसियों की रसोई गैस भी उसी टाइम खत्म हो जाती है. ऐसे में क्या ‘मी टाइम’ और ‘फैमिली टाइम’ जैसी चीज संभव हो सकती है. पहले दो एपिसोड में जब लगता है कि गुल्लक के इस सीजन का ग्राफ पिछली बार की तरह ही है, तभी तीसरे के साथ कहानियां नई रफ्तार और नया रोमांच सामने लेकर आती हैं.




अगुआ में मिश्रा फैमिली में संतोष के बचपन के दोस्त राम शिरोमणि अपनी युवा बेटी के साथ आते हैं क्योंकि इस शहर में उन्होंने योग्य वर देखा है. संतोष मिश्रा शादी की जमाने का जिम्मा लेते हैं और पूरा परिवार जोश-खरोश के साथ जुट जाता है लेकिन एपिसोड मार्मिक अंदाज में खत्म होता है. इसी तरह अगली कहानी सत्यनारायण की व्रत कथा एंटी-क्लाइमेक्स पैदा करती है, जबकि अंतिम एपिसोड इज्जत की चमकार इस सीरीज को हाई-पॉइंट पर ले जाता है. अपनी ईमानदारी के कारण संतोष बाबू नौकरी से सस्पेंड हो जाते हैं और बड़ा बाबू उनसे कहता है, ‘भूख की वजह से कभी कोई सस्पेंड आदमी नहीं मरता है. शर्म के मारे मरता है.’ अंतिम एपिसोड इस सीजन का शिखर बिंदु है.




गुल्लक सपरिवार के साथ देखने योग्य सीरीज है. ओटीटी प्लेटफॉर्मों में इसने अपनी सादगी-सरलता से अलग पहचान बनाई है. नए सीजन में वह सब बातें बरकरार है, जिसके लिए दर्शकों ने गुल्लक के पहले दो सीजन पसंद किए. वास्तव में मध्यम वर्गीय परिवारों पर किसी की नजर नहीं है। उनके सुख-दुख की बातों से सत्ता और समाज का उच्च तथा निम्न वर्ग लगभग अप्रभावित है. सीरीज के अंत में बैकग्राउंड से आती आवाज बताती है कि मिडिल क्लास के साथ सिस्टम, सरकार और कानून नहीं खड़े होते. कुछ लोग खड़े होते हैं. प्यार का चेहरा अगर दिखता तो इन्हीं कुछ लोगों की तरह नजर आता. इस तरह गुल्लक पूरे मध्यमवर्ग की कहानी बन जाती है. उसके सुख-दुख-चिंताओं और खुशियों की कहानी.



जमील खान और गीतांजलि कुलकर्णी यहां सहजता से किरदार में डूबे हैं लेकिन इस सीजन में वैभव राज गुप्ता जरा अलग अंदाज में उभर कर सामने आए हैं. हर्ष मायर ने अपना रोल बखूबी निभाया है जबकि मिश्रा परिवार की पड़ोसन के रूप में सुनीता राजवार समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं. दर्शकों को बांधे रखने में गुल्लक की सफलता का बड़ा श्रेय इसके लेखक दुर्गेश सिंह को जाता है. वह आम जीवन और उसकी भाषा के साथ साहित्यिक मूल्यों को भी यहां स्थापित करते चलते हैं। दूसरे सीजन की तरह पलाश वासवानी ने तीसरे सीजन में निर्देशन को खूबसूरती से साधा है. वे मुद्दे की बात पर बने रहते हैं. भटकते नहीं हैं. सिनेमा का हर माध्यम एक टीम वर्क है और गुल्लक में वह आपको नजर आता है.


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