(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Haseen Dillruba Review: रोमांस और रोमांच है एक ही कहानी में, Taapsee Pannu ने जमाया रंग
Haseen Dillruba Review: हसीन दिलरुबा को तापसी पन्नू अपने परफॉरमेंस से मनोरंजक बनाती हैं. इस रोमांटिक थ्रिलर में प्यार और नफरत साथ-साथ आगे बढ़ते हैं. जितनी नफरत बढ़ती है, उतना प्यार भी बढ़ता है.
विनिल मैथ्यू
तापसी पन्नू, विक्रांत मैसी, हर्षवर्द्धन राणे, आदित्य श्रीवास्तव
अमर प्रेम वही है जिस पर खून के हल्के हल्के-से छींटे हों, ताकि उसे बुरी नजर न लगे. फिल्म हसीन दिलरुबा के इस डायलॉग से ही आप समझ सकते हैं कि इसमें ऐसे प्रेम की कहानी है जो खून-खराबे या कत्ल के बगैर पूरी नहीं हो सकती. विज्ञापन फिल्मों से सिनेमा की दुनिया में आए विनिल मैथ्यू सात साल बाद अपनी दूसरी फिल्म लाए हैं. 2014 में उन्होंने बनाई थी, हंसी तो फंसी (सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणीति चोपड़ा). हसीन दिलरुबा उनकी पहली फिल्म के रोमांस से बिल्कुल जुदा है. लेकिन इतना जरूर है कि यहां भी जिस लड़की, रानी कश्यप (तापसी पन्नू) की कहानी उन्होंने कही है, उसे देख कर पहली नजर में कोई ‘सटकी हुई’ मानेगा.
सुंदर, सुशील, वेजिटेरिन, गोरी और हिंदी साहित्य में एम.ए. रानी की कुंडली का मंगल बहुत भारी है. इसलिए पांच साल में दो ही रिश्ते आए. वह लव मैरिज करना चाहती है लेकिन परिवार अरेंज्ड मैरिज कराता है. दिल्ली में मेक-अप का जॉब करने वाली रानी पर्याप्त विकल्पों के अभाव में ज्वालापुर (जिलाः हरिद्वार, उत्तराखंड) के इलेक्ट्रिक इंजीनियर रिशु (विक्रांत मैसी) को जीवन साथी चुनती है. सीधे-सादे इमोशनल रिशु को वह समझा देती है कि उसने जो लड़की चुनी है, उसमें तन-मन-धन का कॉम्बिनेशन है.
रिशु रानी की अदा पर फिदा हो जाता है और उसका दिल जीतने की कोशिश करता है मगर बाद में पछताता है कि उसने दिल जीतने के बजाय रेशमी जिस्म को जीतने की कोशिश की होती तो रानी उसकी मौसी के बेटे नील (हर्षवर्द्धन राणे) के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाती. यही कहानी का हाई-पॉइंट है. रानी और नील की पिक्चर पूरा मोहल्ला देख चुका है. अब रिशु-रानी के रिश्ते का क्या भविष्य हो सकता है?
कैसी है फिल्म
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई हसीन दिलरुबा रोचक थ्रिलर है, जो धीमी रफ्तार और भावनात्मक दोहरावों के साथ शुरू होती है लेकिन धीरे-धीरे पटरी पर आकर रफ्तार पकड़ लेती है. रानी पर पति के कत्ल का इल्जाम है और पुलिस पूछताछ में वह उनके रिश्तों के बारे में जो बातें बताती है, उनसे खुद घिरती जाती है. तापसी पन्नू ने रानी की भूमिका को बढ़िया ढंग से निभाया है और शुरू से अंत तक छाई हैं.
सितारों ने कैसी एक्टिंग की है?
विक्रांत मैसी शुरू में बोर करते हैं लेकिन फिर उनके किरदार का ग्राफ बदलता है. वहीं हर्षवर्द्धन राणे अपनी भूमिका में जमे हैं. भले ही उन्हें मौका कम मिला. तापसी के किरदार में निरंतर छटाएं बदलती हैं और वह हर कुछ मिनट बाद नए रंग और नई साड़ी या अन्य ड्रेस में दिखाई देती हैं. चाहे बिंदास लड़की का अंदाज हो या फिर अपने आत्मग्लानि से भर कर अपराध को स्वीकार करने वाली गृहिणी का रूप, तापसी प्रभावित करती हैं.
फिल्म की कमियां
फिल्म शुरू के करीब आधे घंटे एक जगह ठहरी मालूम पड़ती है. हर्षवर्द्धन की एंट्री के साथ वह करवट बदलती है. कुछ रोचक सिलवटें पैदा होती हैं. यहां से विनिल और उनकी टीम ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. हसीन दिलरुबा उन दर्शकों के लिए है, जो रोमांस-रोमांच एक ही कहानी में देखना चाहते हैं. हिंदी फिल्मों में बीते कुछ वर्षों से दिल्ली केंद्र में थी और तमाम कहानियां राजधानी की पृष्ठभूमि पर रची जाती थीं मगर यह ट्रेंड अब बदल रहा है. नए और गुमनाम-से शहर केंद्र में आ रहे हैं. इसीलिए नायिका यहां दिल्ली से निकल कर ज्वालापुर आ जाती है. फिर यहीं जम जाती है.
फिल्म इस दौर की लड़कियों के सपनों के राजकुमार की तस्वीर भी खींचती है और आम लड़कों की मुश्किल भी बताती है. नायक सवाल करता है कि आपको कैसा लड़का चाहिए था रानी जी? रानी कहती है, ‘जिसका सेंस ऑफ ह्यूमर हो. डैशिंग हो. नॉटी हो. प्यार में पागल हो. कभी-कभी तो बाल खींच ले, कभी-कभी चूम ले. थोड़ा सरफिरा.’ एक तरह से सिक्स-इन-वन टाइप लड़का चाहने वाली नायिका से रिशु कहता है, ‘आपको तो पांच-छह लड़के एक साथ चाहिए रानी जी. अब एक में कहां मिलेगा यह सब.’
क्यों देखें
हसीन दिलरुबा शादी के शुरुआती दिनों/महीनों में आने वाली समस्याओं को मजाकिया लहजे में सामने रखती है. जिब उम्मीदों और सपनों को झटके लगने पर हालात बिगड़ते-बनते हैं. जहां लड़की को ससुराल में एडजस्ट होने की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. अपनी मां और मौसी से लगातार फोन पर संपर्क में रहने वाली रानी खीझ कर उनसे कहती है, ‘कभी होमली फील कराओ, कभी मैनली फील कराओ... कितनी फीलिंग्स देनी पड़ेंगी’ रिश्ते को बनाने या बनाए रखने के लिए. यहां नायिका को जासूसी उपन्यास पढ़ने का शौक है और वह लेखक दिनेश पंडित की फैन है. पंडित की बातों को वह जिंदगी में जगह-जगह आजमाती है और यह कहानी का अहम बिंदु है. पंडित फिल्म में नहीं दिखता मगर उसकी बातें रानी के माध्यम से कई जगहों पर गुदगुदाती है.
हसीन दिलरुबा की स्क्रिप्ट कहीं-कहीं जुगनू की तरह जगमगाती है और इमोशनल उतार-चढ़ाव के साथ तापसी का परफॉरमेंस दर्शक को बांधे रहता है. यह उत्सुकता बनी रहती है कि पुलिस पूछताछ में पति की हत्या के आरोप में घिरती जा रही रानी अंत में फंसेगी या बचेगी? फिल्म की लंबाई सवा दो घंटे के लगभग है.