Panchayat Session 2 Review: अमेजन प्राइम पर फुलेरा ग्राम पंचायत का दूसरा सीजन तय तारीख से करीब 36 घंटे पहले रिलीज कर दिया गया है. कारण बताया गया, जनता की डिमांड. ऐसा कम होता है. इसमें संदेह नहीं कि यह वेब सीरीज हिंदी में आ रहे तमाम कंटेंट से अलग खड़ी है और इसकी कहानी में देश-समाज की खुशबू है. रहन-सहन और विचारों में पश्चिमी होते जा रहे लोगों को भारतीय ग्रामीण जीवन से रू-ब-रू कराती इस कहानी के सभी किरदार देसी हैं. कास्टिंग इतनी अच्छी है कि छोटी से छोटी भूमिका निभाने वाला कलाकार भी अपने रोल में फिट है.


पंचायत के दूसरे सीजन में औसतन 35-35 मिनट के आठ एपिसोड हैं और कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहले सीजन में खत्म हुई था. पंचायत सचिव अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) अब भी पंचायत के दफ्तर में रहते हुए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, ताकि जितनी जल्दी हो सके यहां से निकला जाए. गांव प्रधान मंजू देवी (नीना गुप्ता) और उनके पति बृजभूषण दुबे (रघुबीर यादव) की युवा बेटी रिंकी (सानविका) यहां केंद्र में हैं. पंचायत सचिव सहायक विकास (चंदन रॉय) और उप-प्रधान प्रहलाद पांडे (फैसल मलिक) को लगता है कि अभिषेक और रिंकी के बीच ‘कुछ-कुछ’ शुरू हो चुका है. कहानी इसके विस्तार में नहीं जाती लेकिन ये दोनों तमाम प्रसंगों में साथ-साथ नजर आते हैं.



इस सीजन में कहानी तालाब की खुदाई से निकलने वाली मिट्टी को ईंट-भट्टे वाले परमेश्वर (श्रीकांत वर्मा) को बेचने की बात से शुरू होती है और गांव में सीसीटीवी लगने पर भूषण (दुर्गेश कुमार) और उनकी पत्नी क्रांति देवी (सुनीता राजवर) के तेज-तर्रार तेवरों तक आती है. दोनों गांव की प्रधानी का चुनाव लड़ने के मूड में हैं और उसी हिसाब से छोटी-मोटी राजनीति करते हुए फुलेरा पंचायत के कामकाज में थोड़ा तड़का लगाते रहते हैं. इस सीजन में गांव के खुले में शौच मुक्त होने से लेकर नशा मुक्ति तक की बातें हैं. यहां सड़क की भी बड़ी समस्या है और मुख्य सड़क से गांव के अंदर आने तक एक किलोमीटर का रास्ता गड्ढों और धूल से भरा है. इस मोड़ पर एंट्री होती है विधायक चंद्र किशोर सिंह (पंकज झा) की, जिससे कहानी में गर्मी बढ़ती है. इस सीजन का अंत चौंकाता है.


पंचायत सीरीज की खूबी इसका ग्रामीण जीवन है और दूसरे सीजन में भी इस जीवन की छोटी-छोटी बातें आपका मनोरंजन करती हैं. गांव की समस्याएं तो अपनी जगह हैं, लेकिन वहां की छोटी-छोटी खुशियां और सहजता जो अब शहरी जीवन से लगभग गायब हैं, वह पंचायत में नजर आती हैं. लेखक चंदन कुमार ने पूरे सीजन को बढ़िया ढंग से लिखा है. संवाद चुटीले हैं और कई ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जो आपको खूब गुदगुदाती हैं. गांव का ‘कल्चर यह है कि बिजली जाने से पहले खाना-पीना हो जाना चाहिए’ और ‘वफादारी का तो आजकल अचार भी नहीं बनता’ जैसे संवाद याद रह जाते हैं.


पिछले सीजन की तरह जितेंद्र कुमार इस बार भी छाए हैं और उनका अभिनय देश-काल-किरदार के अनुकूल है. रघुबीर यादव और नीना गुप्ता की जोड़ी बढ़िया लगती है. दोनों के बीच की नोकझोंक मनोरंजक है. सानविका को सीमित मौका मिला है, लेकिन वह स्क्रीन पर प्रभाव छोड़ती हैं। फैजल मलिक, चंदन रॉय, दुर्गेश कुमार और सुनीता राजवर इन एपिसोड्स की मजबूत कड़ियां हैं. पंकज झा छोटे-से स्पेस के बावजूद अपनी जगह दर्ज कराते हैं.


पंचायत 2 में कुछ गाने भी हैं और वे भर्ती के नहीं लगते. दो-एक तो काफी अच्छे ढंग से तैयार किए गए हैं और उन्हें अलग से भी सुना जा सकता है. नए सीजन के तमाम फ्रेम पहले वाले की तरह हैं और वे ग्रामीण जीवन को खूबसूरती से दिखाते हैं. पंचायत में सादगी है और बिना किसी तामझाम के वह अपनी बात मजबूती से कहती है. पंचायत उस भारत की तस्वीर दिखाती है, जहां इंटरनेट ठीक से नहीं पहुंचा है और सीसीटीवी बकरियां ढूंढने के काम आ रहे हैं. इसे देखते हुए आप उस विकास को ठीक-ठीक समझ सकते हैं, जिसकी बातों की रफ्तार बहुत तेज है. सनसनी, अपराध, खून, रहस्य, रोमांच और सेक्स से लथपथ कहानियों से इतर आप कुछ देखना चाहते हैं तो पंचायत पर ठहर सकते हैं. आपने अभी तक पंचायत नहीं देखी है तो देख सकते हैं. अगर आप इस वेब सीरीज का पहला सीजन देख चुके हैं, तो दूसरा कतई निराश नहीं कहेगा.


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