Aafat-e-Ishq Movie Review: तुम जिसे ढूंढ रहे हो वह तुम्हें ढूंढ रहा है. महाकवि रूमी की लिखी इस खूबसूरत पंक्ति के साथ जब यह फिल्म शुरू होती है तो लगता है कि आपकी अच्छे सिनेमा की तलाश संभवतः यहां खत्म हो. आफत-ए-इश्क 2015 की हंगरी में बनी फिल्म लीजा, द फॉक्स फेयरी का आधिकारिक हिंदी रूपांतरण है. एक ऐसी युवती की कहानी, जो 30 बरस की हो रही है मगर उसकी जिंदगी में कोई प्रेमी नहीं आया. वह अनाथ है. अकेली है. एक भूत उससे प्यार करता है और वह उससे बातें भी करती है. जिस बीमार रईस महिला की युवती देखभाल करती है, वह कहती है कि जिसका कोई नहीं होता, उसके भूत होते हैं. लेकिन क्या भूतों से प्यार किया जा सकता है, उनके साथ जिंदगी के ख्वाब सजाए जा सकते हैं?
जी5 पर रिलीज हुई आफत-ए-इश्क में लल्लो (नेहा शर्मा) तब मुश्किल में पड़ जाती है, जब पाती है कि उससे प्यार करने वाला हर नौजवान मौत की नाव में जिंदगी की नदी से पार हुआ जा रहा है. तब उसे प्यार करने से डर लगने लगता है. कहानियों में जिंदगी और जिंदगी में कहानियां ढूंढने वाली, किताबी किस्सों की शौकीन लल्ली मानने लगती है कि वह शापित लाल परी है. एक ऐसी शमा जो खुद तो जल जाएगी मगर जो परवाना पास आएगा, वह भी जलकर खाक हो जाएगा. तब क्या सचमुच लल्लो की जिंदगी दीवार पर चिपकी मृत रंगीन तितलियों की तरह हो जाएगी या कोई आएगा, उसकी ही तरह शिद्दत से मोहब्बत को जीने वाला! फिल्म समझाती है कि लकीरों पर मत जाओ क्योंकि नसीब उनके भी होते हैं, जिनके हाथ नहीं होते.
प्रेम कहानियां पुरानी पड़ जाती हैं. समय के साथ पेड़ के सूखे पत्तों की तरह झर भी जाती हैं. मगर फिर समय के साथ वे नए पत्तों की तरह पनपती हैं. इसलिए प्रेम कभी चलन से बाहर नहीं होता. इसलिए आफत-ए-इश्क में लल्लो के जीवन में प्रेमियों के आने और मौत की राह चले जाने के बीच एक अनसुना पन्ना खुलता है. किसी जमाने में लाल परी नाम की एक सुंदर वेश्या की कहानी सामने आती है. कौन थी लाल परी और क्या है उसका लल्लो से कनेक्शन. फिल्म इसकी तलाश करती है. लल्लो के सिरे लाल परी से जोड़ती है. यहीं से फिल्म की मुश्किलें शुरू होती हैं क्योंकि लाल परी के साथ लल्लो की कहानी का मिक्स आश्वस्त नहीं करता.
आफत-ए-इश्क की सबसे बड़ी समस्या है, इसकी बेहद धीमी गति. गनीमत इतनी है कि यह स्लो मोशन में नहीं चलती. शुरुआत से आप इंतजार करते हैं कि फिल्म अब गति पकड़ेगी, तब पकड़ेगी. कोई धक्का इसे बढ़ाएगा. मगर ऐसा नहीं होता. कहानी का मूल आइडिया चमकदार होने के बावजूद पटकथा थकेली है. एक बार आपको पता चल जाता है कि लल्लो का हर आशिक मारा जाएगा तो सवाल उठता है कि आगे क्या? कहानी में हालात दाएं-बाएं करके एक ही चौराहे पर पहुंचते हैं. कॉमिक और हॉरर जैसी परिस्थितियां बांधने में नाकाम रहती हैं. नेहा शर्मा के किरदार के अलावा अन्य किसी एक्टर की भूमिका साफ नहीं है. ऐसा लगता है कि वे सभी सिर्फ कॉमेडी करने आए हैं. चाहे जासूसनुमा पुलिसवाले विक्रम बने दीपक डोबरियाल हों या प्रेम में यहां-वहां दाने चुगते प्रेम गुंजन बने अमित सियाल. अन्य कलाकार भर्ती के मालूम पड़ते हैं.
आकस्मिक मौतों की कहानी में जिस थ्रिल की जरूर होती है, वह सिरे से गायब है. लल्लो के खिलाफ मामला पुलिस में भी जाता है कि क्योंकि कुछ आशिक उसके घर में मरे मिलते हैं. कहीं उसके हाथ तो खून से रंगे नहीं. इस एंगल को भी लेखक-निर्देशक धार नहीं दे सके. पुलिस अफसर बने दर्शन जरीवाला का होना न होना यहां बराबर है. कुल जमा नेहा शर्मा के हिस्से में ही फिल्म के ध्यान आकर्षित करने वाले चुनिंदा दृश्य हैं, जिनमें वह खूबसूरत दिखी हैं. बाकि सब आते-जाते हैं. आत्माराम नाम के भूत बने नमित दास लंबा टिकते हैं लेकिन बीच में अचानक गायब होकर अंत में प्रकट होकर अपने राज खोलते हैं. मगर बात नहीं बनती. गीत-संगीत औसत है. कैमरा वर्क (श्रेया गुप्ता) और आर्ट वर्क जरूर ध्यान खींचता है. ये दोनों स्क्रीन पर फिल्म को समृद्ध बनाते हैं. विज्ञापन फिल्में बनाने वाले इंद्रजीत नट्टोजी अगर विज्ञापनों वाली कसावट आफत-ए-इश्क में ला पाते तो बात कुछ और होती.
ये भी पढ़ें-
Bhavai Review: राम-रावण की कहानी में नए जमाने की लव स्टोरी, सही और गलत सोच का टकराव है यहां