Apurva Review: इस फिल्म में कुछ खास नहीं है लेकिन जो आम है वो बहुत खास है. एक अकेली लड़की क्या कुछ कर सकती है ये फिल्म बताती है कि एक लड़की अगर अकेली है तो कोई कुछ भी नहीं कर सकता. ये फिल्म बताती है कि सिर्फ महंगे सेट्स और विदेशी लोकेशन्स से ही ऐसी फिल्म नहीं बनती जो आपको बांधे रखे.


कहानी
ये कहानी है अपूर्वा नाम की लड़की की जो अपने मंगेतर का जन्मदिन मनाने के लिए आगरा जा रही है. वो जिस सरकारी बस से जा रही है उसे चार लुटेरे लूट लेते हैं और उसे किडनैप करके अपने साथ ले जाते हैं. ये चारों उसका रेप करना चाहते हैं. एक बार कोशिश भी करते हैं लेकिन कर नहीं पाते ...फिर क्या होता है....ये जानने के लिए आपको डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर ये फिल्म देखनी चाहिए. 96 मिनट की ये फिल्म आपको बताएगी कि एक अकेली लड़की अगर हिम्मत करे तो वो बड़ी से बड़ी मुसीबत को हरा सकती है. 


एक्टिंग
तारा सुतारिया ने अपने करियर का बेस्ट परफॉर्मेंस दिया है, अपूर्वा के किरदार में उन्होंने जान डाल दी है. अब तक हमने उन्हें ग्लैमरस रोल्स में ही देखा लेकिन यहां वो दिखाती हैं कि वो एक्टिंग भी कर सकती हैं और अच्छी एक्टिंग कर सकती हैं.  ये पहली फिल्म है जिसमें वो टाइटल रोल निभा रही हैं और इसके साथ वो पूरी तरह से जस्टिस करती हैं. चाहे वो डर के एक्सप्रेशन्स हों या फिर किसी क्रिमिनल को ही मार डालने के बाद का गिल्ट. आप उनसे कनेक्ट करते हैं. अभिषेक बनर्जी ने कमाल का काम किया है. वो गैंगस्टर बने हैं और उन्होंने वो डर पैदा करने की कोशिश की है जिसकी उनसे उम्मीद थी. वो काफी नेचुलर लगते हैं और यही उनकी खासियत है. राजपाल यादव ने निराश किया, वो इससे बहुत बेहतर रोल पहले निभा चुके हैं. उन्हें अब ऐसे रोल या तो करने नहीं चाहिए या फिर कुछ अलग तरह से करने चाहिए. उन्हें यहां बर्बाद कर दिया गया. धैर्य करवा इम्प्रेस करते हैं. उनकी एक्टिंग में दम लगता है. सुमित गुलाटी ने भी गैंगस्टर के किरदार में कमाल का काम किया है.


कैसी है फिल्म
देखिए ये कोई महान फिल्म नहीं है लेकिन ये फिल्म देखनी चाहिए. क्योंकि ऐसी फिल्में हिम्मत देती हैं. हौसला देती हैं. शुरुआत से ही फिल्म मुद्दे पर आ जाती है.कैरेक्टर्स के बारे में बताने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया गया है और ये सही भी है. हल्का फुल्का फ्लैशबैक आता है जो जरूरी है. फिर कुछ ही देर बाद जब अपूर्वा किडनैप होती है तो फिल्म पेस पकड़ती है और आपको लगता है कि अब क्या होगा. यही फिल्म की खासियत है. फिल्म जो ज्यादा लंबा नहीं खींचा गया है, फिल्म 96 मिनट की है.


डायरेक्शन
निखिल नागेश भट का डायरेक्शन अच्छा है. उन्होंने तारा सुतारिया से बेहतरीन काम करवाया है. बिना किसी बड़े सेट्स और कॉस्टयूम के एक अच्छी फिल्म बनाई है. हां..राजपाल यादव जैसे कलाकार को वो अच्छे से इस्तेमाल नहीं कर पाए.


कुल मिलकर ये फिल्म देखी जा सकती है. वुमन सेंट्रिक फिल्में वैसे भी कम बनती हैं और बनती हैं तो ज्यादातर में दम नहीं होता लेकिन ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी.


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