Ayushmati Geeta Metric Pass Review: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा आपने खूब सुना होगा. कई जगह लिखा भी देखा होगा लेकिन बहुत सी जगह अब भी ऐसी हैं जहां बेटी को क्यों पढ़ाओ, कैसे पढ़ाओ, ये सवाल किए जाते हैं.


ये फिल्म इसी नारे को आगे बढ़ाती है, और बताती है कि पढ़ाई सिर्फ बेटी के लिए नहीं, मां, भाभी, मामी, चाची सबके लिए जरूरी है. फिल्म अहम मुद्दे को उठाती है और सीधे सिंपल तरीके से अपनी बात कह जाती है. डायरेक्टर प्रदीप खैरवार ने इस कहानी को छोटे बजट में असरदार तरीके से बनाया है.


कहानी
बनारस में रहने वाली गीता की मां का सपना था कि वो मैट्रिक पास कर ले, लेकिन रिजल्ट के दिन गीता का रिश्ता आ जाता है और गीता फेल हो जाती है. गीता के पिता रिश्ते से इनकार कर देते हैं लेकिन लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं क्योंकि पहले मिल चुके हैं.


फिर कुछ ऐसा होता है कि गीता को गांव छोड़ना पड़ता है और शादी करने की मजबूरी सामने आ जाती है लेकिन गीता तो मैट्रिक पास किए बिना शादी नहीं कर सकती. फिर क्या होता है, ये थिएटर में देखिए, छोटी और अच्छी फिल्मों को सपोर्ट कीजिए तभी अच्छा सिनेमा बनने को हिम्मत कोई जुटा पाएगा. इस फिल्म को असरदार तरीके से लिखा है नवनीतेश सिंह ने.


कैसी है फिल्म
ये फिल्म जिस मुद्दे को उठाती है वो काफी अहम है. फिल्म की ओपनिंग मजेदार तरीके से होती है, फिर फिल्म अच्छी पेस से आगे बढ़ती है, पढ़ाई क्यों जरूरी है ये समझाती है और एजुकेशन सिस्टम के स्कैम भी उजागर करती है.


आपको फिल्म देखकर लगता है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा क्यों जरूरी है, फिल्म का बजट और प्रोडक्शन वैल्यू जरूर छोटी है लेकिन फिल्म का मकसद बड़ा है और ये अपने मकसद में कामयाब होती है.


एक्टिंग
अतुल श्रीवास्तव फिल्म की जान हैं, वो वैसे भी इतने कमाल के और मंझे हुए एक्टर हैं कि उनकी एक्टिंग को रिव्यू नहीं किया जा सकता. यहां भी वो गीता के पिता के किरदार में जान डाल गए हैं. अलका अमीन का काम अच्छा है.


इस फिल्म के लीड पेयर ने एक्टिंग के मामले में निराश किया वरना ये और अच्छी फिल्म बनती. कशिका कपूर और अनुज सैनी दोनों को देखकर लगता है कि उन्होंने एक्टिंग में मैट्रिक छोड़िए 5वीं भी पास नहीं की.


वो कहीं अच्छे एक्सप्रेशन नहीं दे पाते और उन्हें देखकर लगता है कि इन्हें अभी एक्टिंग में काफी कुछ सीखने की जरूरत है. पंचायत के नए सचिव विनोद सूर्यवंशी का काम अच्छा है. प्रणय दीक्षित का काम अच्छा है, छोटे से रोल मैं अरुणा गिरी ने भी असर छोड़ा है.


कुल मिलाकर ये फिल्म देखनी चाहिए क्योंकि ऐसी फिल्में देखेंगे तो ही अच्छी फिल्मों बनाने की हिम्मत की जाएगी.


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