Bad Boy Review: बेहद घिसी-पिटी है 'बैड बॉय' की कहानी, नमाशी चक्रवर्ती की एक्टिंग भी खराब, टॉर्चर करती है फिल्म
Bad Boy Review: मिथुन चक्रवर्ती के बेटे नमाशी ने फिल्म 'बैड बॉय' से बॉलीवुड में डेब्यू किया है. फिल्म की कहानी बेहद घिसी पिटी है और फर्स्ट हाफ में भी बोरियत महसूस होने लगती है.
राजकुमार संतोषी
नमाशी चक्रवर्ती, अमरीन कुरैशी
Bad Boy Review: बॉलीवुड वालों को एक शब्द से बड़ी चिढ़ है नेपोटिज्म (Nepotism), वो कहते हैं हमारे बच्चे बहुत मेहनत करते हैं फिर जाकर उन्हें फिल्म में लिया जाता है.लेकिन भाई तुम्हें पॉपकॉर्न की कसम है कि फिल्म बनाने के बाद एक बार देख लिया करो और देश की जनता को ऐसे जुल्म से बचा लिया करो तो ही सही मायने में आप हीरो बनाने जाओगे. एक और स्टार किड का लॉन्च हुआ है. मिथुन चक्रवर्ती के बेटे Namashi Chakraborty और साथ में लॉन्च हुआ हैं Amrin qureshi. फिल्म को डायरेक्ट किया है कई शानदार फिल्में बनाने वाले राजकुमार संतोषी ने.
कहानी
इसकी कहानी इतनी घिसी पिटी है कि खुद ये कहानी भी कहती है कि बख्स दो अब मुझे. एक गरीब लड़का जो टपोरी है और एक अमीर लड़की. लड़की के पिता उसूलों वाले.दोनों को प्यार हो जाता है और फिर दोनों कैसे एक होते हैं.ये कहानी इतनी ज्यादा घिस चुकी है कि इसपर कोई फिल्म बनाने की कैसे सोच सकता है ये जानकर हैरानी होती है.बॉलीवुड के पास नई कहानियां नहीं हैं. वो ठीक है लेकिन ऐसे तो हमें टॉर्चर ना करें.
कैसी है फिल्म
हेडलाइन पढ़ने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि फिल्म कैसी है? वैसे तो ये फिल्म फर्स्ट हाफ में देखकर ही लगा था कि बाकी की क्या देखनी लेकिन बाहर ट्रैफिक जाम था और फोन पर कुछ काम भी निपटाने थे तो सिनेमा हॉल में बैठे रहे.सिरदर्द होता रहा और कॉफी पीते रहे. फर्स्ट हाफ देखकर आपको लगता है कि ऐसी क्या मजबूरी थी इस फिल्म को बनाने की. अगर मिथुन को अपने बेटे को लॉन्च ही करना था तो थोड़ा इंतजार कर लेते, इससे तो बेहतर कुछ भी मिल जाता. ये फिल्म घटिया फिल्मों के दर्जे को और ऊंचा करती है. पहले से खराब फिल्म के बीच गाने आते रहते हैं जो इरिटेट करते हैं. सेकेंड हाफ पहले के मुकाबले हल्का सा बेहतर है लेकिन इतना नहीं कि झेला जाए.
एक्टिंग
इन दिनों काफी सारे एक्टिंग स्कूल खुल गए हैं और मिथुन दा को तो फीस में डिस्काउंट भी मिल जाता. तो उन्हेें बेटे को पहले किसी अच्छे स्कूल में भेजना चाहिए था और अगर भेजा तो बेटे ने वहां पढ़ाई में ध्यान नहीं दिया. ऐसा लगा ही नहीं कि वो हीरो बनने लायक हैं. लोग टिकट लेकर उन्हें क्यों देखेंगे? उनमें हीरो जैसी कोई बात नहीं. डायलॉग ऐसे बोले हैं जैसे किसी के पापा ने नींद से उठाकर जबरदस्ती सुबह दुकान पर बैठा दिया हो. अमरीन नमाशी से बेहतर हैं लेकिन इतनी नहीं कि उनकी एक्टिंग को अच्छा कहा जाए. हालांकि लॉन्च में कई सितारे वैसा असर नहीं छोड़ा पाते. बाद में चल भी जाते हैं. लेकिन यहां तो मामला कुछ ज्यादा ही डाउन है. फिल्म में जॉनी लीवर आते हैं. एंटरटेन करने की कोशिश करते हैं. एक सीन में राजपाल यादव आते हैं. लेकिन ऐसी घटिया फिल्म में ये लोग भी कुछ खास नहीं कर पाते
म्यूजिक
हिमेशा रेशमिया ने इस फिल्म का म्यूजिक दिया है. लेकिन हिमेश के स्टैंडर्ड के हिसाब से म्यूजिक नहीं है. ऐसा लगा जैसे हिमेश ने 10000 बार रिजेक्ट हुए सारा गाने यही डंप कर दिए या फिर उन्होंने किसी मजबूरी में काम किया
डायरेक्शन
ये राजकुमार संतोषी की सबसे खऱाब फिल्मों में से एक मानी जाएगी.इससे खऱाब काम ना उन्होंने किया है ना ही वो कर सकते हैं. ऐसी फिल्म को देखने के बाद बॉयकॉट बॉलीवुड वाले भी भाग जाएंगे. क्योंकि इसके बॉयकॉट की जरूरत ही नहीं है और अगर इसके बाद नेपोटिज्म पर हल्ला होता है तो प्रताड़िता दर्शकों की आवाज समझ जानी चाहिए
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