Bastar Review: नक्सलवाद और नक्सलियों पर कई फिल्में बनी हैं. कई तरह की बातें की जाती हैं, कई तरह के नैरेटिव हैं. अब विपुल शाह द केरल स्टोरी के बाद नक्सल स्टोरी लाए हैं. विपुल शाह ये फिल्म जो कुछ दिखाती है वो देखने के लिए शायद हिम्मत चाहिए और जिस तरह से दिखाती है वो भी देखने के लिए हिम्मत चाहिए तो कमजोर दिल वाले शायद ये फिल्म नहीं देख पाएंगे. ऐसी फिल्मों को अक्सर एजेंडा और प्रोपेगैंडा कहा जाता है. इनकी कहानी पर सवाल उठाया जाता है लेकिन फिल्म को प्रोड्यूसर विपुल शाह एबीपी न्यूज पर कह चुके हैं कि जिसे भी फिल्म की रिसर्च और तथ्यों पर बहस करनी हो वो तैयार हैं, हम इस फिल्म को क्राफ्ट के नजरिए से रिव्यू करेंगे. 


कहानी 
बस्तर द नक्सल स्टोरी कहानी है बस्तर की और बस्तर में फैले नक्सलवाद की. बस्तर में हुए नक्सलवादी हमलों को फिल्म में काफी दहशत भरे तरीके से दिखाया गया है छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओ आतंकियों ने सीआरपीएफ कैंप पर हमला कर 76 सैनिकों की हत्या कर दी थी. लेकिन ये कहानी इससे भी बड़ी है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नक्सलियों ने वहां अपनी एक अलग सत्ता बना ली है. कैसे उन्होंने वहां के लोगों की जिंदगी तहस नहस कर दी है. आईपीएस ऑफिसर नीरजा माधवन (Adah Sharma)नक्सलवादियों को कैसे खत्म करती हैं, कैसे वो देश के सिस्टम से लड़ती हैं यही फिल्म की कहानी है. औरे ये कहानी बड़े खौफनाक तरीक से पर्दे पर पेश की गई है.


कैसी है फिल्म
एक लाइन में कहूं तो ये फिल्म परेशान करने वाली है. फिल्म में कई ऐसे सीन आते हैं कि आप आंखें बंद कर लेते हैं. फिल्म में नक्सलियों के खौफ को जिस तरह से दिखाया गया है वो आपको हिला डालता है. आप सिहर जाते हैं. ये फिल्म आपको हिला डालती है. आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारे देश में ये सब हो रहा है और इस तरह से हो रहा है. कई सीन देखकर आपको घिन आती है. आपका मन करता है थिएटर से बाहर चले जाएं लेकिन फिर आप देखना चाहते हैं कि ये दहशत किस हद तक जाती है. हर थोड़ी देर बाद एक ऐसा सीन आता है जो आपको झकझोरता है, हिलाता है, सोचने पर मजबूर करता है. आपको गुस्सा आता है, दया आती है, तरस आता है. कई तरह के इमोशन्स से आप दो चार होते हैं. 


एक्टिंग
द केरल स्टोरी से अदा शर्मा की अदाकारी का जो स्तर ऊंचा हुआ था ये फिल्म उसे और आगे ले जाती है. अदा शर्मा ने अपने काम से एक बार फिर दिल जीत लिया है. आईपीएस नीरजा माधव के जिंदगी को अदा ने जिया है, अदा हर सीन में असर छोड़ती हैं, एक प्रेग्नेंट महिला अफसर अपने जोश और जुनून को कभी कम नहीं होने देती, उनकी आंखों में आप गुस्सा महसूस करते हैं, उनकी बॉडी लैंग्वेज में आप नक्सलियों के खात्मे का जज्बा महसूस करते हैं, लगता नहीं कि अदा एक्टिंग कर रही हैं, ऐसा लगता है कि वो इस किरदार को जी रही हैं और जैसे उन्होंने असल जिंदगी में कभी इस दर्द को महसूस किया हो, इसके अलावा सपोर्टिंग एक्टर्स में शिल्पा शुक्ला, राइमा सेन, यशपाल शर्मा और बाकी के सारे एक्टर्स ने अच्छा काम किया है. 


डायरेक्शन
इस फिल्म को डायरेक्टर सुदीप्तो सेन का कहना है कि इस फिल्म पर रिसर्च तो वो बचपन से कर रहे हैं क्योंकि ये सब उन्होने छोटी उम्र से देखा है और फिल्म देखकर आपको ये महसूस भी होता है. ये भी लगता है कि कोई डायरेक्टर आतंक को इतने क्रूर तरीके से कैसे दिखा सकता है, फिल्म पर सुदीप्तो की पकड़ तेज है. फिल्म कहीं ढीली नहीं पड़ती है, वो हर थोड़ी देर में आपको चौंकाते है. और यही डायरेक्टर की कामयाबी है.


इसी टीम ने द केरल स्टोरी बनाई थी जिसके बाद खूब हंगामा हुआ था. खूब डिबेट हुई थी, इसपर भी होनी चाहिए क्योंकि एक बड़ा तबका ऐसा भी होगा जो ये सब नहीं जानता वो इसका सच जानना चाहता है, इसकी रिसर्च के बारे में सवाल करना चाहता होगा. विपुल शाह की तारीफ करनी होगी कि वो ऐसी फिल्मों में पैसा लगा रहे हैं. ऐसी कहानियां सामने ला रहे हैं जिन्हें सामने लाने की हिम्मत कम फिल्मकार कर पाते हैं.


कुल मिलाकर फिल्म जबरदस्त है और देखनी चाहिए और इसे देखने के बाद जो सवाल हों वो भी पूछे जाने चाहिए.