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Bhoot Police Review: थोड़े भूत और थोड़ी कॉमेडी, ज्यादा की न करें उम्मीद, सैफ-अर्जुन के फैन देख सकते हैं फिल्म

Bhoot Police Review: यह एक औसत फिल्म है जो न ठीक से डरा पाती है और न सही से हंसा पाती है. भूत पुलिस उतनी ही साधारण फिल्म है जितना इसका लेखन और निर्देशन है.

Bhoot Police Review: जब जमाना आगे बढ़ रहा है तो भूत-प्रेतों की कहानियों में भी तरक्की दिखनी चाहिए. उनका अंदाज-ए-बयां वक्त के हिसाब से होना चाहिए. मगर बॉलीवुड की हॉरर फिल्मों में अक्सर ऐसा नहीं होता. उदाहरण के लिए भूत पुलिस को देखिए. तांत्रिकों के लिए भूत पुलिस निश्चित ही आकर्षक संबोधन है लेकिन फिल्म में दर्शकों को बांधने वाले नएपन का खासा अभाव है. कहानी-वीएफएक्स से बढ़िया हॉरर फिल्म बनाई जा सकती है और तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर वे नजर भी आती हैं, मगर निर्देशक पवन कृपलानी की यह भूतिया फिल्म 1990 जैसा कंटेंट दिखाती है. रागिनी एमएमएस (2011) और फोबिया (2016) जैसी प्रभावी हॉरर फिल्में बना चुके पवन पिछली फिल्मों से कमजोर साबित हुए हैं. उनकी इस कहानी में अपना समय तक नजर नहीं आता.

डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई भूत पुलिस लगभग दो घंटे की है. जिसमें दो भाई हैं. दो बहनें हैं. सगे भाइयों  विभूति  वैद्य (सैफ अली खान) और चिरौंजी वैद्य (अर्जुन कपूर) के पिता तांत्रिक थे. भाइयों के पास विरासत में मिली पांच हजार साल पुरानी किताब है. जिसमें भूतों को वश में करने, पराजित करने और इस संसार से मुक्त करने के सूत्र हैं. किताब की पुरानी भाषा पढ़ी नहीं जा सकती. विभूति ने उम्र में अपने से कहीं छोटे चिरौंजी को पाल-पोस कर बड़ा किया और दोनों भूत भगाने के लिए यहां-वहां बुलाए जाते हैं.


Bhoot Police Review: थोड़े भूत और थोड़ी कॉमेडी, ज्यादा की न करें उम्मीद, सैफ-अर्जुन के फैन देख सकते हैं फिल्म

दोनों फीस के साथ जीएसटी भी मांगते हैं. विभूती मानता है कि भूत-प्रेत नहीं होते और दुनिया वहम में जीती है. जबकि चिरौंजी का पारलौकिक संसार और किताब में पूरा विश्वास है. दोनों सदा प्यार भरी नोंक-झोंक में उलझे रहते हैं कि उन्हें ढूंढते हुए एक दिन भूत-मेले में धर्मशाला के नजदीक सिलावट इस्टेट के चाय बागानों की मालकिन माया (यामी गौतम) पहुंचती है. विभूति-चिरौंजी के पिता ने 27 साल पहले उनके इस्टेट को एक प्रेतनी, जिसे स्थानीय भाषा में कचकंडी कहते हैं, से मुक्त किया था. वह वापस आ गई है. दोनों भाई जाते हैं तो पता चलता है कि माया की बहन कनिका (जैकलीन फर्नांडिस) भी है. वह माया से ठीक विपरीत इन बातों को नहीं मानती और गुजर चुके पिता की जायदाद में अपना हिस्सा लेकर मॉडर्न जिंदगी जीना चाहती है. क्या है पूरा मामला? क्या सचमुच कचकंडी है? क्या ड्रामा चल रहा है? क्या सचमुच भूत हैं? भूत झूठ हैं तो क्या है पूरा मामला? भूत सच हैं तो विभूती-चिरौंजी कुछ कर पाते हैं या नहीं?

फिल्म इन सवालों के जवाब देती है. निर्देशक ने जवाबों को कॉमिक फ्लेवर दिया है. विभूती-चिरौंजी इस्टेट के लोगों से ‘गो कचकंडी गो... गो कचकंडी गो’ नारे लगवाते हैं. ठीक ‘गो कोरोना गो’ की तर्ज पर. सैफ हर बात को हल्के-फुल्के-मजाकिया ढंग में लेते नजर आते हैं, वहीं अर्जुन का किरदार संजीदा है. उसे विश्वास है कि दोनों भाई काल भैरव तांत्रिक परिवार की सातवीं पीढ़ी हैं. फिल्म की कई बातें देख कर लगता है कि लेखक-निर्देशक ने नया करने के लिए परिश्रम नहीं किया. वह पुराने फार्मूलों पर अटके रहे. भूतों का अस्तित्व बताने को चिरौंजी किताब से पढ़ कर सुनाता हैः जब किसी मृतात्मा का अंतिम संस्कार नहीं होता तो वह अवशेषों से जुड़ कर कचकंडी बन जाती है. इस संवाद के साथ कहानी के कई सिरे खुल जाते हैं.

भूत पुलिस उतनी ही साधारण फिल्म है जितना इसका लेखन-निर्देशन. वह चिर-परिचित-पुरानी बातें दोहराती हैं. जैसे विभूति की यह बात कि ‘बेड के नीचे भूतों की फेवरेट जगह होती है.’ फिल्म में इक्का-दुक्का बैक स्टोरी हैं लेकिन प्रभावित नहीं करतीं. सैफ और अर्जुन ने अपनी भूमिकाएं ठीक से निभाई हैं. उनके लिए यहां प्रतिभा दिखाने जैसा कुछ नहीं था, जिसके लिए परिश्रम करें. सो, दोनों ने सिर्फ अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल किया और वह यहां दिखती है.


Bhoot Police Review: थोड़े भूत और थोड़ी कॉमेडी, ज्यादा की न करें उम्मीद, सैफ-अर्जुन के फैन देख सकते हैं फिल्म

यामी और जैकलीन की भूमिकाओं में दम नहीं है. खास तौर से जैकलीन की. दो हीरो, दो हीरोइन के बावजूद आप यहां रोमांस-नाच-गाने और ग्लैमर की उम्मीद न करें. इन बातों का यहां सूखा पड़ा है. जावेद जाफरी पुलिस के रूप में दोनों ढोंगी-बाबा टाइप भाइयों को पकड़ने के लिए पीछे लगे हैं. उनका ट्रेक कुछ रोचक है. लेकिन राजपाल यादव एक ही सीन में खप गए. अमित मिस्त्री ठीकठाक हैं. फिल्म में एडिटिंग की खूब गुंजाइश बाकी थी और वीएफएक्स औसत है. भूत पुलिस न तो डरा ही पाती है और न हंसा पाती है.

आप कहेंगे इससे बढ़िया और डरावनी कहानियां टीवी के हॉरर कार्यक्रमों में देखी हैं. इन बातों के बावजूद जिन दर्शकों को कॉमिक-भूतिया विषय अच्छे लगते हैं, जिनके पास काफी समय है, वह फिल्म देख सकते हैं. 2020 में सड़क 2, लूटकेस, खुदा हाफिज और लक्ष्मी जैसी सितारों से सजी फिल्मों के खराब रिकॉर्ड के बाद, डिज्नी हॉटस्टार 2021 में भी अभी तक हिंदी-दर्शकों के लिए हॉट एंटरटेनमेंट नहीं ला सका है. द बिग बुल, अकेले हम अकेले तुम, शादीस्तान, कॉलर बॉम्ब, हंगामा 2 से लेकर भुज तक कोई अच्छा रिपोर्ट कार्ड नहीं है. भूत पुलिस से भी इसमें सुधार की कोई संभावना नहीं है.

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