Black Warrant Review: जेल, ये नाम सुनकर किसी को भी डर लग जाए. ज्यादातर लोगों ने जेल फिल्मों में देखी है, लेकिन क्या जेल वैसी होती है जैसी फिल्मों या फिर स्क्रीन पर दिखाई जाती है. कैसी होती है जेल, क्या होता है ब्लैक वॉरंट, जज किसी को फांसी की सजा सुनाने के बाद अपने पेन की निभ क्यों तोड़ देते हैं, जेल के अंदर का माहौल क्या होता है, क्या वाकई जेल से क्राइम सिंडिकेट चलते हैं जैसा अक्सर खबरों में सुनाई देता है. नेटफ्लिक्स की ये नई सीरीज Black Warrant - confession of a tihar jailor नाम की किताब पर बनी है जिसे जेलर सुनील गुप्ता और जर्नलिस्ट सुनेत्र चौधरी ने लिखा था और ये सीरीज वाकई आपको जेल में ले जाती है.
कहानी
तिहाड़ जेल में तीन नए अफसर आते हैं, वो जेल और जेल के कायदों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. जेल में कई गैंग हैं जो एक दूसरे के दुश्मन है, इस बीच रंगा बिल्ला नाम के दो अपराधियों का ब्लैक वॉरंट जारी होता है यानि उन्हें फांसी की सजा सुनाई जाती है. जेल में फांसी की तैयारी कैसे होती है, जेल में काम कर रहे हैं इन अफसरों के परिवारों पर क्या बीतती है, इनकी निजी जिंदगी में क्या उथल पुथल मचती है. 7 एपिसोड की ये सीरीज तिहाड़ का पूरा काला चिट्ठा खोलती है, लगभग 40 से 50 मिनट का एक एपिसोड है और इसमें आपको 80 के दशक की तिहाड़ का वो सच जानने को मिलता है जो अब से पहले पर्दे पर नहीं दिखा.
कैसी है सीरीज
ये सीरीज काफी जबरदस्त है, इसकी खासियत है इसकी कहानी, इसमें कुछ नया देखने को मिलता है. जेल हमने फिल्मों में देखी है लेकिन उसे हल्के फुल्के तरीके से दिखाया गया है. यहां आपको वो डिटेल्स मिलती हैं जो आपको हैरान करती हैं. जेल की राजनीति से लेकर जेल में भ्रष्टाचार और जेल के खाने तक, कैदियों से लेकर अफसरों की निजी जिंदगी तक, वो सब जो आपने स्क्रीन पर नहीं देखा, ये सीरीज काफी कसी हुई है. आपको कहीं बोर नहीं करती, कहीं खिंची हुई नहीं लगती, कई चीजों आपको हैरान करती हैं. ये बिल्कुल रियल लगती है, आपको ऐसा लगता है जैसे आप तिहाड़ जेल में पहुंच गए हों. इस सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे जेलर सुनील कुमार गुप्ता जेल को सुधारने की कोशिश करते हैं. अब वो इसमें कितना कामयाब होते हैं ये आपको सीरीज देखकर पता चलेगा, इस सीरीज से इस साल की शुरुआत नेटफ्लिक्स ने धमाकेदार तरीके से की है.
एक्टिंग
जहान कपूर ने जेलर सुनील गुप्ता के किरदार में जान डाल दी है, वो कमाल के एक्टर हैं. एक नए नवेले अफसर की झिझक, जो जेल का अफसर है लेकिन उसे गाली देना नहीं आता, उसकी ईमानदारी, उसकी मासूमियत, सिस्टम के खिलाफ उसका गुस्सा, जहान ने इस किरदार को ऐसे निभाया है कि आप सुनील गुप्ता को भले नहीं जानते हों लेकिन वो आपको सुनील गुप्ता लगते हैं. जहान शशि कपूर के पोते और एक्टर कुनाल कपूर के बेटे हैं और कपूर परिवार का ये चिराग भी एक्टिंग के मामले में अपनी रौशनी अच्छे से बिखेर रहा है. राहुल भट इन तीनों जूनियर अफसरों के सीनियर हैं और उनका काम गजब का है. वो इस रोल में जबरदस्त लगे हैं, उनके कैरेक्टर में ग्रे शेड्स हैं और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन्स उनके किरदार के साथ पूरा इंसाफ करते हैं. परमवीर चीमा ने भी अपने किरदार को कमाल तरीके से निभाया है. एक ऐसा अफसर जिसकी निजी जिंदगी में भी जद्दोजहद चल रही है. इस किरदार के साथ परमवीर ने फुल जस्टिस की है. अनुराग ठाकुर का काम काफी जबरदस्त है, हरियाणा का एक लड़का जेलर बनता है. अपने देसी अंदाज से अनुराग ने दिल जीत लिया है, सिद्धांत गुप्ता चार्ल्स शोभराज बने हैं और वो भी अपनी एक्टिंग से चौंकाते हैं. राजेंद्र गुप्ता ने कमाल का काम किया है, राजश्री देशपांडे ने जर्नलिस्ट का किरदार अच्छे से प्ले किया है, तोता रॉय चौधरी भी इम्प्रेस करते हैं.
डायरेक्शन
इस सीरीज को विक्रमादित्य मोटवानी और सत्यांशु सिंह ने मिलकर बनाया है और इन्होंने अरकेश अजय, अंबिका पंडित और रोहिन रविंद्रन के साथ मिलकर इसे डायरेक्ट किया है यानि इसे 5 लोगों ने डायरेक्ट किया है. इन लोगों को तालमेल काफी अच्छा है, ये सीरीज एक ही ढर्रे पर चलती हैं, ऐसा नहीं लगता है कि पांचों लोग इसे अपने अपने तरीके से चला रहे हैं. सीरीज को सधे हुए अंदाज में बनाया गया है, बेकार की हीरोपंती नहीं दिखाई गई, चीजों को रियल रखा गया है और यही इसकी खासियत है.
कुल मिलाकर ये सीरीज देखने लायक है, जरूर देखिए
रेटिंग- 3.5 स्टार्स