Blackout Review: ये फिल्म आपके दिमाग का शॉर्ट सर्किट कर सकती है, जनहित में बताया जाए कि ये किस मजबूरी में बनाई गई
Blackout Review: विक्रांत मैसी और मौनी रॉय की फिल्म ब्लैकआउट आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है. देखने से पहले पढ़ लीजिए इसका रिव्यू.
देवांग भावसर
विक्रांत मैसी, मौनी रॉय, सुनील ग्रोवर
ओटीटी
Blackout Review: कई सितारे और फिल्ममेकर कई बार ये खुलासा कर चुके हैं कि कुछ फिल्में वो मजबूरी में करते हैं. कभी पैसे की मजबूरी, कभी किसी से रिश्ते निभाने की और कभी कोई और, ये भी एक मजबूर फिल्म है. किस मजबूरी में बनाई गई, सितारों ने किस मजबूरी में ये फिल्म की, ये वजह सामने आनी जरूरी है क्योंकि ये फिल्म टाइमपास भी नहीं करती. टाइम खराब करती है, हमारा तो हो गया, आपका ना हो, इसके लिए ये रिव्यू पढ़ लीजिए.
कहानी
ये कहानी है पुणे की एक रात की, जहां रात को बिजली चली जाती है, और फिर एक रिपोर्टर विक्रांत मैसी अपनी पत्नी के लिए अंडा पाव लेने निकलते हैं. फिर होते हैं एक के बाद एक हादसे, चोरों की एक वैन से उनकी गाड़ी टकरा जाती है. उनसे एक मर्डर हो जाता है, उसे एक शराबी सुनील ग्रोवर देख लेता है और फिर जो होता है वो मत ही देखिएगा क्योंकि वो देखने लायक है ही नहीं.
कैसी है फिल्म
शुरुआत में लगता है ये एक ठीक ठाक फिल्म है. कुछ ट्विस्ट एंड टर्न आते हैं जो उम्मीद जगाते हैं कि फिल्म में आगे मजा आएगा लेकिन फिर उम्मीदों का ऐसा शॉर्ट सर्किट होता है कि आपको लगता है अगर ब्लैकआउट हो जाता और आप अकेले अंधेरे में भी टाइमपास करते तो इससे बेहतर टाइमपास हो सकता है. कुछ वक्त के बाद फिल्म इतने बचकाने तरीके से आगे बढ़ती है कि आपको समझ नहीं आता कि ये फिल्म क्यों बनाई गई और ये क्या कहना चाहते है. किसी बहुत हल्की कॉमेडी फिल्म से भी हल्की लगती है ये फिल्म, एक्शन ऐसा लगता है जैसे जिसे देखकर रोना आ जाता है, और क्लाइमैक्स तक आते आते आपके सब्र का ब्लैकआउट हो जाता है.
एक्टिंग
विक्रांत मैसी का कद 12th फेल के बाद काफी बढ़ गया है. ये फिल्म उन्होंने कब की, किस मजबूरी में की, ये वही बता सकते हैं लेकिन उन्होंने फिल्म को खास प्रमोट नहीं किया. इससे समझा जा सकता है कि विक्रांत को फिल्म देखने के बाद क्या लगता होगा. सुनील ग्रोवर जब तक शराबी के किरदार में होते हैं तो अच्छे लगते हैं और वो सस्ते गालिब वाली शायरियां भी मारते हैं जो एंटरटेनिंग लगती हैं लेकिन जैसे ही वो डॉन के किरदार में आते हैं तो उनका सस्ते गालिब वाला किरदार भी महंगा लगने लगता है. मौनी रॉय ने ये फिल्म क्यों की ये मुश्किल सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए कि वो ईमानदारी से जवाब देंगे.
डायरेक्शन
देवांग भावसर ने ये फिल्म डायरेक्ट की है. अच्छे कलाकारों का कैसे बर्बाद किया जाता है, ये ट्रेनिंग इनसे ली जा सकती है. ठीक ठाक शुरुआत के बावजूद इस फिल्म को उन्होंने बहुत खराब तरीके से डायरेक्ट किया.
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