(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bloody Brothers Review: देर से सही लेकिन रोमांच पैदा करती है यह कहानी, सतीश कौशिक के आगे सब फीके
अच्छे लेखकों के बिना वेबसीरीजों का रंग नहीं जम सकता. ब्लडी ब्रदर्स यही बताती है. ठंडी शुरुआत के बाद जब आधी कहानी निकल जाती है,
शाद अली
जयदीप अहलावत, मो. जीशान अयूब, टीना देसाई, सतीश कौशिक, माया अलघ, मुग्धा गोडसे
अगर आप थोड़ा धैर्य रखें तो जी5 पर आई वेब सीरीज ब्लडी ब्रदर्स एंटरटेन कर सकती है. अच्छी बात यह है कि कहानी को बहुत लंबा नहीं खींचा गया है और बात छह एपिसोड में खत्म हो जाती है. ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर जगह की कमी नहीं है और दर्शक भी दिल खोल कर देखते हैं, लेकिन निर्माता-निर्देशकों और क्रिएटिव टीम के लिए संयम जरूरी है. जो वेबसीरीजों में बहुत कम दिखाई देता है. इस लिहाज से ब्लडी ब्रदर्स एक नई शुरुआत हो सकती है. अव्वल तो यह जानना जरूरी है कि यह सीरीज ओरीजनल नहीं हैं, बल्कि ब्रिटिश शो गिल्ट (2019) का भारतीयकरण है.
इसके रूपांतरण की शुरुआत में जरूर लेखकों को मुश्किल आई लेकिन जैसे-जैसे बात आगे बढ़ती है, सधने लगती है. यह कहानी दो भाइयों की दलजीत ग्रोवर (मो.जीशान अयूब) और जग्गी ग्रोवर (जयदीप अहलावत) की है, जो देर रात को एक शादी के रिसेप्शन से लौट रहे हैं. ऊटी की एक लंबी-अंधेरी सड़क पर रफ्तार से जाती उनकी कार के सामने अचानक एक बूढ़ा व्यक्ति आ जाता है. मौके पर ही उसकी मौत हो जाती है. क्या इस एक्सीडेंट को किसी ने देखा? मौके से भागे भाइयों को लगता है कि ऐसा ही हुआ है क्योंकि अखबार में बूढ़े के अंतिम संस्कार की सूचना मौत की वजह कैंसर बताती है. दोनों राहत की सांस लेते हैं. लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियां करवट बदलती हैं और कहानी में रोमांच पैदा होता है. पड़ोसी और सीसीटीवी कैमरा आजकल हर जगह होते हैं. ऐसे में दलजीत और जग्गी क्या बच पाएंगे.
वास्तव में ब्लडी ब्रदर्स की शुरुआत बहुत ठंडी और अतार्किक मालूम पड़ती है. आपको लगता है कि यह सब क्या हो रहा है. फिर पहले तीन एपिसोड करीब-करीब थका देते हैं और जब आपको लगता है कि बस अब और नहीं, तभी ट्विस्ट आता है. माया अलघ और सतीश कौशिक के किरदार एंट्री करते हैं. सीरीज का रंग कुछ जमने लगता है. जयदीप अहलावत, मो. जीशान अयूब और टीना देसाई लीड कास्ट होने के बावजूद रोमांच नहीं पैदा करते. उनकी कहानियों और किरदारों पर लेखकों को मेहनत करने की जरूरत थी. तीनों का ग्राफ हर लिहाज से लगभग सपाट है. टीना देसाई के किरदार में जरूर परतें हैं, लेकिन वे उनमें फर्क नहीं पैदा कर पातीं. जबकि माया अलघ और सतीश कौशिक न केवल अपने किरदारों में बढ़िया हैं, बल्कि उनका अंदाज भी आकर्षक है. खास तौर पर हांडा नाम के डॉन नुमा व्यक्ति के रूप में सतीश कौशिक ने कमाल किया है. उनका यह काम याद रहने जैसा है. उन्होंने अपने अभिनय से तो यहां जान फूंकी ही है, लेखकों की टीम में जिसने भी उनके संवाद लिखे, वे रोमांचक हैं. जैसे, ‘न हम हल्के हैं, न हमें हल्की जुबान पसंद है’ और ‘हम खुद को भी हांडा साहब बुलाते हैं’.
यहां हांडा साहब का एक संवाद और हैः ‘ये इश्क बड़े कमाल की चीज है, और अगर एक औरत को दूसरी औरत से हो जाए, और भी कमाल की चीज है.’ असल में ओटीटी की कहानियों में समलैंगिक संबंधों के ट्रैक का ट्रेंड लगातार जोर पकड़ रहा है. विवाहेतर संबंधों के साथ-साथ समलिंगी रिश्तों की यह तस्वीर हाल की वेबसीरीजों में खूब देखने मिल रही है. इसका बड़ा कारण संभवतः यही है कि मेकर्स मानते हैं, दर्शक मोबाइल पर इन्हें पर्सनल स्पेस में देखता है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या कहानी में सचमुच इस ट्रैक के लिए जगह है? ऐसा नहीं होने पर कहानी खराब होती है. जो ब्लडी ब्रदर्स में नजर आता है.
ब्लडी ब्रदर्स की एक समस्या यह है कि लेखकों के साथ निर्देशक शाद अली असमंजस में हैं कि पूरी सीरीज की टोन क्या रखें. इसे थ्रिलर बनाएं, सस्पेंस बनाएं या फिर कॉमेडी. आखिरकार वे थोड़ा-थोड़ा सब मिला देते हैं. सीरीज एक बार फिर स्पष्ट कर देती है कि प्लेटफॉर्म या मेकर्स चाहे विदेशी सीरीजों/फिल्मों का रीमेक या भारतीय रूपांतरण करें अथवा ओरीजनल आइडिये लाएं, अगर उनके पास लेखकों की अच्छी टीम नहीं होगी तो कंटेंट में जान नहीं आएगी. ब्लडी ब्रदर्स में संभावनाएं दिखती हैं, लेकिन वे चिंगारियों से आगे नहीं बढ़ पाती. कुल मिला कर यह ऐसी सीरीज है, जिसमें आप शुरुआत का मुद्दा देखकर बीच में सब छोड़ दें और चौथे एपिसोड से आगे देखें. लेकिन यदि आप खाली बैठे-बैठे वक्त काटना चाहते हैं तो खुद को बहलाने के लिए पूरी देख सकते हैं. पसंद है आपकी क्योंकि डाटा है आपका.
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